कैसे मिले लक्ष्य, जब सुविधाएं ही 'गोल', दिया जाए ध्यान तो शिखर तक पहुंचेगा उत्तराखंड प्रदर्शन
विडंबना यह है कि उत्तराखंड की प्रतिभाओं को अपेक्षित प्रोत्साहन और सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। उन्हें अभ्यास के लिए सुविधा संपन्न मैदान तक मुहैया नहीं हो पाते। ऊबड़-खाबड़ मैदान पर अभ्यास कर इन खिलाड़ियों का पदक लाना बताता है कि सुविधाएं मिलें तो उनका प्रदर्शन शिखर तक पहुंचेगा।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sun, 29 Aug 2021 11:05 AM (IST)
जागरण संवाददाता, देहरादून। हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य के साथ खेल प्रतिभाओं से भी संपन्न है। खेल के मैदान में राज्य की प्रतिभाएं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान भी बना रही हैं। विडंबना यह है कि इन प्रतिभाओं को अपेक्षित प्रोत्साहन और सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। उन्हें अभ्यास के लिए सुविधा संपन्न मैदान तक मुहैया नहीं हो पाते। विषम परिस्थितियों में ऊबड़-खाबड़ मैदान पर अभ्यास कर इन खिलाड़ियों का पदक लाना बताता है कि अगर सुविधाएं मिलें तो उनका प्रदर्शन शिखर तक जरूर पहुंचेगा।
हरियाणा जैसे राज्यों की तरह उत्तराखंड के खिलाड़ियों को भी सुविधाएं मिलें तो वह ओलिंपिक और विश्व चैंपियनशिप जैसे बड़े टूर्नामेंट में भी झंडे गाड़ेंगे। प्रदेश सरकार कई दफा जाहिर कर चुकी है कि उसका खेलों पर विशेष फोकस है। खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के दावे भी किए जाते हैं। इतना ही सच यह भी है कि इन दावों को धरातल पर उतारना अभी बाकी है। प्रतिभाओं को तराशने और तराशने के लिए हर वर्ष खेल महाकुंभ का आयोजन तो किया जाता है, मगर यहां भी अव्यवस्था हावी रहती है। खिलाड़ियों को ऐसे मैदान पर भी दौड़ना पड़ा है, जहां कांच के टुकड़े बिखरे थे। सरकार को इस दिशा में गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है। खेलों और खिलाड़ियों के विकास के लिए प्रभावी खाका खींचने के साथ ढांचागत व्यवस्था को बेहतर किए जाने की जरूरत है।
कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर बड़ी कमजोरी
सिस्टम भले ही खेलों को बढ़ावा देने के तमाम दावे करे, मगर सच्चाई इससे इतर है। वर्तमान में उत्तराखंड में एक भी एक्सीलेंस विंग नहीं है, जहां खिलाड़ियों को बड़ी प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जा सके। राज्य में स्पोर्ट्सर्स अथारिटी आफ इंडिया (साई) का सेंटर तक नहीं है। जहां खिलाड़ियों को प्रोफेशनल कोर्स कराए जा सकें और उनकी डाइट व अभ्यास पर ध्यान दिया जा सके। सरकार को प्रदेश में साई का सेंटर खुलवाने के लिए प्रयास करना चाहिए। जिससे राज्य में खिलाड़ियों की नई पौध को अनुभवी कोच का मार्गदर्शन मिल सके।
अनुभवी प्रशिक्षकों की कमी
कहने के लिए उत्तराखंड में हर खेल के प्रशिक्षक हैं, मगर ऐसे कोच नहीं के बराबर हैं, जिन्हें माडर्न तकनीक की जानकारी हो। अनुभवी प्रशिक्षकों की यह कमी यहां के खिलाड़ियों को खोखला कर रही है। खेल विशेषज्ञों की मानें तो खिलाड़ी एक उम्र तक ही अपने खेल में बदलाव व सुधार कर सकता है। इसलिए सही समय पर खिलाड़ियों को उचित प्रशिक्षण मिलना जरूरी है। ऐसा नहीं होने के कारण ही राज्य के जो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक लाते हैं, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह प्रदर्शन दोहरा नहीं पाते। कई बार प्रदेश की सरकारें विदेशी कोच लाने की घोषणा कर चुकी हैं, लेकिन इस घोषणा को हकीकत में नहीं बदला जा सका। वर्ष 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खेल महाकुंभ के उद्घाटन समारोह में भी अनुभवी प्रशिक्षकों को लाने की घोषणा की थी।
खेल के बजट संग न हो 'खेल' हरियाणा व अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तराखंड का खेल बजट बहुत कम रहता है। इस वर्ष हरियाणा का खेल बजट करीब 400 करोड़ रुपये था तो उत्तराखंड का 150 करोड़। इस बजट का भी अधिकांश हिस्सा निर्माण कार्यों में खर्च हो जाता है। खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए तय किए गए बजट में जिम्मेदारों की ही गिद्ध दृष्टि लगी रहती है। खेल महाकुंभ 2020 में भी इस तरह का मामला सामने आया था। जब पौड़ी में जिला स्तरीय खेल कराए बिना ही जिम्मेदारों ने अपने चहेते खिलाडिय़ों को राज्य स्तरीय खेल महाकुंभ में उतार दिया। मामला संज्ञान में आने पर खेल मंत्री ने जांच बैठाई, मगर कुछ दिन बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
फाइलों में कैद फुटबाल एकेडमी एक समस्या यह भी है कि राज्य में खेल बजट का समय पर इस्तेमाल नहीं किया जाता। विभागीय अधिकारियों के इस सुस्त रवैये से बजट ठंडे बस्ते में चला जाता है। उदारहण के लिए खेल मंत्री अरविंद पांडे ने खेल महाकुंभ 2018-19 में राज्य खेल फुटबाल को प्रोत्साहन देने के लिए प्रदेश में फुटबाल एकेडमी खोलने की घोषणा की थी। दावा था कि इससे फुटबाल के क्षेत्र में प्रतिभाओं को तराशा जाएगा। खेल महाकुंभ के समापन समारोह में यूजेवीएनएल के महाप्रबंधक ने एकेडमी के लिए सीएसआर के तहत 35 लाख रुपये का चेक भी खेल मंत्री को प्रदान किया। इसके अलावा अन्य मदों से भी एकेडमी के लिए धनराशि मिली है। खेल महाकुंभ के नोडल विभाग युवा कल्याण विभाग के पास एकेडमी के लिए करीब 40 लाख रुपये की धनराशि जमा है। बावजूद इसके एकेडमी के लिए अब तक जमीन ही तलाशी नहीं जा सकी।
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