तस्वीरों में देखें देवभूमि में मौजूद मां दुर्गा के ऐसे पांच मंदिर, जहां नवरात्रों पर जुटता है भक्तों का रेला, मान्यता और कहानी बेहद अद्भुत
वभूमि उत्तराखंड में मां दुर्गा के कई मंदिर स्थित हैं जहां साल भर भक्तों की भीड़ जुटती है। तीर्थनगरी हरिद्वार में मां मनसा देवी का मंदिर स्थित है। चम्पावत जनपद के टनकपुर कस्बे से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी में मां पूर्णागिरि विराजमान हैं।
By Nirmala BohraEdited By: Updated: Sat, 09 Apr 2022 07:14 AM (IST)
जागरण संंवाददाता, देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में मां दुर्गा के कई मंदिर स्थित हैं, जहां साल भर भक्तों की भीड़ जुटती है। वहीं नवरात्र पर यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। मां दुर्गा के विभिन्न रूपों के इन धामों की मान्यता और कहानी अद्भुत है। दैनिक जागरण आपको ऐसे ही मंदिरों के दर्शन करवा रहा है।
मनसा देवी, हरिद्वार
तीर्थनगरी हरिद्वार में मां मनसा देवी का मंदिर स्थित है। पहाड़ों पर झुंझुनू गांव में बसे इस मंदिर में पवित्र धागा बांधकर मन्नत मांगने की प्रथा है और मन्नत पूरी होने के बाद भक्त यहां वापस आकर धागे को खोलते हैं। मंदिर के नाम के पीछे मान्यता है कि यहां आने वाले भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है।जानकारी के मुताबिक 1975 में सेठ सूरजमल ने इस मंदिर को बनवाया था। मां दुर्गा ने उनके सपने में आकर इस मंदिर को बनाने की इच्छा जताई थी। 41 कमरे, श्री लंबोरिया महादेवजी मंदिर, श्री लंबोरिया बालाजी मंदिर और सिंहद्वार वाले इस मंदिर में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है। विशेषकर नवरात्रों में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
नवरात्रों में मां पूर्णागिरि धाम में उमड़ता है भक्तों का रेला चम्पावत जनपद के टनकपुर कस्बे से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी में मां पूर्णागिरि विराजमान हैं। यहां नवरात्रों में भक्तों का रेला उमड़ता है। नवरात्र के मौके पर यहां विशेष पूजा अर्चना का भी आयोजन होता है। धाम में इन दिनों श्रद्धालुओं की आवाजाही बढ़ गई है। जिससे मेला क्षेत्र का माहौल भी भक्तिमय हो गया है।
पूर्णागिरि के दर्शनों के बाद श्रद्धालु नेपाल के ब्रह्मादेव में सिद्धनाथ मंदिर के दर्शन को जाते हैं। जिससे नेपाल के ब्रह्मादेव में भी श्रद्धालुओं की आवाजाही से काफी रौनक बनी हुई है। शक्तिपीठ मां पूर्णागिरि धाम की यह स्तुति श्रीमद्देवी भागवत पुराण में की गई है।पुराणों में उल्लेख है कि जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को जला डाला तो भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे। इस दौरान मां की नाभि अन्नपूर्णा चोटी पर गिर गई। जहां नाभि गिरी उस स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली।
मां वाराही धाम, देवीधुराचम्पावत जिले के मां वाराही धाम देवीधुरा का मंदिर भारत के गिने-चुने वैष्णवी मंदिरों में से एक है। पौराणिक मान्यता है कि जब हिरणाक्ष्य पृथ्वी को पाताल लोक ले जा रहा था तो पृथ्वी की पुकार सुन भगवान विष्णु ने वाराहा का रूप धारण कर पृथ्वी को अपने बाम अंग में लेकर डूबने से बचाया था, तभी से पृथ्वी स्वरूपा वैष्णवी वाराही कहलाई।
मान्यता है कि यही मां वाराही अनादि काल से गुफा में रहकर भक्तों की मनोकामना पूरी करती आ रही है। मान्यता है कि जो सच्चे मन से मां की गर्भगुफा में मां स्मरण करते हैं, मां उनकी मनोकामना शीघ्र पूरी करती है।हाटकालिका मंदिर, गंगोलीहाट लोगों की आस्था का केन्द्र महाकाली मंदिर अनेक रहस्यमयी कथाओं को अपने आप में समेटे हुये है। भक्तजन बताते हैं यहां श्रद्धा से की गई पूजा का विशेष महात्म्य है। इसलिये वर्ष भर यहां बड़ी संख्या में श्रद्वालु पहुंचते हैं।
छठी शताब्दी में आदि जगत गुरू शंकराचार्य जब अपने भारत भ्रमण के दौरान जागेश्वर आये तो शिव प्रेरणा से उनके मन में यहां आने की इच्छा जागृत हुई। लेकिन जब वे यहां पहुंचे तो नरबलि की बात सुनकर शंकराचार्य ने इस दैवीय स्थल की सत्ता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।जब विश्राम के बादशंकराचार्य ने देवी जगदम्बा की माया से मोहित होकर मंदिर शक्ति परिसर में जाने की इच्छा प्रकट की तो मंदिर शक्ति स्थल पर पहुंचने से ही कुछ दूर वह आगे नहीं बढ़ पाये और अचेत होकर गिर पड़े, उनकी आवाज भी बंद हो गई।
अपने अंहभाव व कटु वचन के लिये शंकराचार्य को पश्चाताप हो रहा था। माता से क्षमा याचना के बाद उन्हें मां भगवती की आभा का अहसास हुआ। चेतन अवस्था में लौटने पर योगसाधना के बल पर उन्होंने शक्ति के दर्शन किये और महाकाली के रौद्रमय रूप को शांत किया शक्ति को कीलनं कर प्रतिष्ठिापित किया। मान्यता है कि यहां धनहीन, पुत्रहीन, सम्पत्तिहीन और सांसारिक मायाजाल से विरक्त लोग मुक्ति की इच्छा से आते हैं और मनोकामना पूर्ण पाते हैं।
धारी देवी मंदिर, श्रीनगर ईष्ट देवी और कुल देवी के रूप में श्रद्धालु मां धारी देवी की पूजा करते हैं। धारी देवी को श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली माना जाता है। श्रीनगर से लगभग 14 किमी दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कलियासौड़ के समीप सिद्धपीठ मां धारी देवी को पौराणिक कथानकों के अनुसार द्वापर युग से ही माना जाता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार यहीं पर मां काली शांत हुई थी और तभी से यहां पर कल्याणी स्वरूप में मां की पूजा की जाती है। आद्य शक्ति के रूप में मां धारी देवी की पूजा की जाती है। यहां वर्षभर विशेषकर नवरात्रों के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।सिद्धपीठ धारी देवी में जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं मां धारी देवी उसे पूर्ण करती है। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु पुन: यहां आकर घंटी और श्रीफल श्रद्धा से चढ़ाते हैं। पूर्व में यहां मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पशुबलि प्रथा थी।
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- Madan Kaushik (@madankaushikbjp) 8 Apr 2022