Navratri 2024: घर बैठे करें देवियों के पांच धामों के दर्शन, जुटा भक्तों का रेला; अद्भुत और रहस्यमय कहानी
Navratri 2024 नवरात्रि 2024 की शुरुआत हो चुकी है और मां दुर्गा की उपासना का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर चंबा-मसूरी मोटर मार्ग की सुरकुट पर्वत पर स्थित है। नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटद्वार-दुगड्डा के मध्य बारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित दुर्गा देवी मंदिर की नींव मां के एक मुस्लिम भक्त ने रखी थी। हल्द्वानी के रानीबाग क्षेत्र में मां शीतला देवी का धाम है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। Navratri 2024: शारदीय नवरात्र शुरू हो चुके हैं और मां दुर्गा की उपासना का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। आज दैनिक जागरण आपको उत्तराखंड में स्थित देवियों के ऐसे पांच मंदिरों के दर्शन करवाने जा रहा है जिनकी कहानी अद्भुत और रहस्यमय है। आइए करते हैं इनके दर्शन...
सिद्धपीठ मां सुरकंडा
- सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर चंबा-मसूरी मोटर मार्ग की सुरकुट पर्वत पर स्थित है।
- सुरकंडा प्रसिद्ध सिद्धपीठों में एक है।
- देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु वर्ष भर माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं।
- नवरात्रि पर दर्शन के लिए यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
- कहा जाता है कि राजा दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में भव्य यज्ञ का आयोजन किया था।
- उन्होंने इस आयोजन में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
- भगवान शिव को नहीं बुलाए जाने पर माता सती नाराज हो गई और हवन कुंड में समा गई।
- जब भगवान शिव को इसका पता चला तो वे दुखी हो गए और हरिद्वार पहुंचकर सती के शरीर को त्रिशूल में रखकर हिमालय की ओर निकल पड़े।
- बताया जाता है कि इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर का जो हिस्सा गिरा वह स्थान उसी नाम से जाना गया।
- सुरकंडा में सती का सिर गिरा था इसलिए इस सिद्धपीठ को सुरकंडा के नाम से जाना जाता है।
- सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी और मसूरी से 40 किमी की दूरी पर स्थित है।
- मसूरी से आसानी से बस या निजी वाहन से यहां पहुंचा जाता है।
- ऋषिकेश से भी श्रद्धालु करीब 70 किमी की दूरी तय कर यहां पहुंच सकते हैं।
- कद्दूखाल तक बस से पहुंचा जाता है उसके बाद करीब ढ़ाई किमी की पैदल दूरी से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
- अब मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब ढाई साल पहले रोपवे का संचालन शुरू किया गया, जिससे आसानी से मंदिर तक पहुंचा जाता है। लेकिन कई श्रद्धालु पैदल भी मंदिर में जाते हैं।
दुर्गा देवी मंदिर नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग
- नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटद्वार-दुगड्डा के मध्य बारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित दुर्गा देवी मंदिर की नींव मां के एक मुस्लिम भक्त ने रखी थी।
- मंदिर की गुफा में आज भी माता की अखंड जोत प्रज्ज्वलित होती रहती है।
- मंदिर में मां की शक्ति रूप की पूजा होती है।
- नवरात्रों के पर्व पर मंदिर में माता के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।
- अंग्रेजों के शासनकाल में वर्ष 1917 में कोटद्वार से दुगड्डा के मध्य मोटर मार्ग निर्माण का कार्य शुरू हुआ।
- मोटर मार्ग निर्माण का जिम्मा अंग्रेजो की खच्चर कोर के ठेकेदार शफीकउल्ला खान को सौंपा गया।
- मार्ग निर्माण के दौरान दुगड्डा से करीब तीन किमी. पहले एक स्थान पर सड़क निर्माण कार्य में बाधाएं आने लगी।
- स्थिति यह हो गई कि जैसे ही सड़क पर निर्माण कार्य शुरू होता, कोई न कोई बाधाएं उत्पन्न हो जाती।
- लगातार हो रही बाधाओं के कारण सड़क निर्माण कार्य रूक गया।
- तब शफीकउल्ला खां को स्थानीय नागरिकों ने बताया कि इस स्थान पर एक गुफा में ''देवी'' का ''वास'' है व देवी को प्रसन्न किए बिना कार्य सफल नहीं हो सकता। जिसके बाद शफीकउल्ला ने वहां एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया।
- जनपद पौड़ी के अंतर्गत कोटद्वार नगर से तेरह किमी. दूर स्थित दुर्गा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए कोटद्वार से हर वक्त बस व मैक्स सुविधा मुहैया रहती है।
- निजी वाहन से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
- कोटद्वार शहर रेल से भी जुड़ा है।
- दिल्ली के लिए कोटद्वार से सीधी रेल सेवा है।
आस्था व श्रद्धा का केंद्र माता शीतला का धाम
- कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी से लगभग आठ किलोमीटर दूर हरे-भरे जंगल के बीच रानीबाग क्षेत्र में मां शीतला देवी का पावन धाम स्थापित है।
- शीतला मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है।
- यहां वर्षभर भक्त पहुंचते हैं।
- नवरात्र में यहां विशेष आयोजन होते हैं।
- स्कंदपुराण के मुताबिक शीतला देवी का वाहन गर्दभ है।
- वह अपने हाथ में सूप, कलश, झाड़ू व नीम के पत्तों को धारण करती हैं।
- मां शीतला को चेचक (चिकनपाक्स) व इसकी जैसी अन्य बीमारियों की देवी के रूप में वर्णित किया गया है।
- इनका प्रतीकात्मक महत्व है।
- सूप से हवा लगाई जाती है।
- झाड़ू से चिकन पाक्स फोड़ा जाता है।
- नीम के पत्ते फोड़े को सड़ने नहीं देते।
- कुमाऊं में शीतला देवी के गिनती के मंदिर हैं।
- भीमताल के लोगों ने गांव में शीतला माता का मंदिर बनाने का निर्णय लिया।
- ग्रामीण बनारस से मूर्ति ला रहे थे।
- पैदल चलते उन्हें रात हो गई तो रानीबाग की गुलाबघाटी में रात्रि विश्राम को रुके।
- एक व्यक्ति ने इसी स्थान पर मां की मूर्ति स्थापना का स्वप्न देखा और सुबह साथियों को बताया।
- उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और मूर्ति उठाने का प्रयास किया।
- प्रतिमा हिली तक नहीं। बाद में यहीं मंदिर की स्थापना की गई।
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श्रद्धालुओं की झोली भरती है मां पूर्णागिरि
- मां पूर्णागिरि धाम चंपावत जिले के टनकपुर नगर से 24 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी पर स्थित है।
- माता के 52 शक्तिपीठ में शामिल पूर्णागिरि धाम में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
- शारदीय व चैत्र नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
- यह धाम श्रद्धा, विश्वास व भक्ति की त्रिवेणी है।
- शक्तिपीठ पहुंचने से पहले द्वारपाल के रूप में भैरव बाबा का मंदिर है, जहां वर्षभर धूनी जलती है।
- स्कंद पुराण में वर्णित है कि जब सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को जला डाला। जिसके बाद क्रोध में भरे भगवान शिव सती के पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से विचरण कराने लगे।
- इस दौरान टनकपुर के अन्नपूर्णा चोटी पर सती की नाभि गिर गई।
- इतिहास के अनुसार संवत 1621 में गुजरात के श्रीचंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद चंपावत के चंद राजा ज्ञानचंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने में मां पूर्णागिरि से नाभि स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश मिला।
- 1632 में यहां मंदिर की स्थापना हुई।
- पुराणों में पूर्णागिरि को अन्नपूर्णा भी कहा गया है।
- यहां आने वाले भक्त सुख-समृद्धि का आशीर्वाद तो पाते ही हैं, मां अन्न से भी भक्तों को परिपूर्ण करती हैं।
- मां पूर्णागिरि ने महाकाली के रूप में टुन्नी नामक राक्षसी व शुंभ-निशुंभ नामक राक्षस का संहार किया था।
- तब से महाकाली के रूप में मां की पूजा-अर्चना की जाती है।
- पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी।
- अब प्रतीकात्मक रूप में बकरे के बाल काटकर या नारियल फोड़कर रस्म निभाई जाती है।
- सच्चे मन से आने वाले भक्तों को देवी के ज्योतिपुंज के दर्शन भी होते हैं।
धारी देवी मंदिर श्रीनगर
- ईष्ट देवी और कुल देवी के रूप में श्रद्धालु मां धारी देवी की पूजा करते हैं।
- धारी देवी को श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली माना जाता है।
- श्रीनगर से लगभग 14 किमी दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कलियासौड़ के समीप सिद्धपीठ मां धारी देवी को पौराणिक कथानकों के अनुसार द्वापर युग से ही माना जाता है।
- धर्मशास्त्रों के अनुसार यहीं पर मां काली शांत हुई थी और तभी से यहां पर कल्याणी स्वरूप में मां की पूजा की जाती है। आद्य शक्ति के रूप में मां धारी देवी की पूजा की जाती है।
- यहां वर्षभर विशेषकर नवरात्रों के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
- सिद्धपीठ धारी देवी में जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं मां धारी देवी उसे पूर्ण करती है।
- मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु पुन: यहां आकर घंटी और श्रीफल श्रद्धा से चढ़ाते हैं।
- पूर्व में यहां मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पशुबलि प्रथा थी।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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