New Year 2020 Biggest Challenges of uttarakhand Govt: गांव को आज भी है नई सुबह का इंतजार
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड के 7797 गांवों की नई सुबह का इंतजार अभी भी खत्म नहीं हुआ है। गांव वीरान हो रहे हैं तो खेत खलिहान बंजर में तब्दील।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 31 Dec 2019 02:28 PM (IST)
देहरादून, सतेंद्र डंडरियाल। देश को आजाद हुए 72 साल गुजर गए, लेकिन विषम भूगोल वाले उत्तराखंड के 7797 गांवों की नई सुबह का इंतजार अभी भी खत्म नहीं हुआ है। गांव वीरान हो रहे तो खेत खलिहान बंजर में तब्दील। यदि गांवों की खुशहाली को कदम उठाए गए होते तो आज 1702 गांव जनविहीन नहीं होते। अभी भी 63.41 फीसद लोगों की मासिक आय महज पांच हजार रुपये से कम नहीं रहती। बेहतर भविष्य की आस में लोग अपनी जड़ें छोड़ने को विवश नहीं होते। आखिरकार, 19 साल बाद अब नीति नियंताओं को भी ये बात समझ आई है और सरकार का ध्यान ग्रामोत्थान की तरफ गया है। पलायन थामने को उपाय करने के साथ ही गांवों को सरसब्ज बनाने पर मंथन चल रहा है। यदि इस दिशा में गंभीरता से काम हुआ तो 2020 गांवों के लिए उम्मीद की नई किरण लेकर आएगा।
ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब विषम परिस्थितियों के बावजूद उत्तराखंड के गांवों में खासी रौनक रहा करती थी। भौतिक अभाव जरूर था, मगर भावनात्मक लगाव हर किसी को जड़ों से जोड़े रखता था। वक्त ने करवट बदली और सुविधाओं के अभाव में यहां के गांवों से भी पलायन का सिलसिला शुरू हुआ। तीर्थाटन व रोजगार के लिए पलायन को बुरा नहीं कहा जा सकता, मगर यहां तो स्थिति ऐसी बनी कि जिसने एक बार गांव छोड़ा, दोबारा मुड़कर नहीं देखा।
खुद पलायन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में अब तक 1702 गांव पूरी तरह निर्जन हो गए हैं। 540 गांव ऐसे हैं, जहां वर्ष 2011 के बाद पलायन के चलते आबादी 50 फीसद से भी कम हो गई है। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य समेत मूलभूत सुविधाओं के अभाव मेंं लोग गांव छोडऩे को मजबूर है। साफ है कि यहां मजबूरी का पलायन है, जिसके लिए कोई और नहीं बल्कि सिस्टम जिम्मेदार है।
यदि सिस्टम ने संजीदगी बरती होती तो वर्तमान में गांवों में रह रहे 63.41 लोगों की मासिक आय पांच हजार से बढ़कर कहीं आगे निकल गई होती। ऐसी ही स्थिति गांव के उत्थान की अन्य योजनाओं की भी है। ऐसा नहीं है कि गांव के विकास को योजनाएं न बनी हों। योजनाएं तो खूब बनीं, लेकिन धरातल पर इनके क्रियान्वयन को शायद ही कभी गंभीरता से लिया गया हो। वह भी यह जानते हुए कि सूबा अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से सटा है और ऐसे में गांवों का खाली होना किसी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता।
अब जबकि केंद्र सरकार ने ग्रामीण विकास पर फोकस करने की ठानी है तो राज्य में भी हलचल हुई। राज्य में पलायन आयोग बना और वह निरंतर अपनी सिफारिशें राज्य को दे रहा है। सरकार ने भी कई योजनाओं का एलान किया है। यही नहीं, नीति आयोग ने भी यहां के पलायन को संजीदगी से लिया है। ऐसे में उम्मीद जगी है कि नया साल ग्रामोत्थान के लिए नई सुबह लेकर आएगा।
योजनाएं, जो चढ़ेंगी परवान ग्रोथ सेंटर:- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करने के मकसद से सरकार ने राज्य की सभी 670 न्याय पंचायतों में ग्रोथ सेंटर खोलने का निश्चय किया है। अभी तक 82 को मंजूरी दी जा चुकी है। उम्मीद है कि नए साल में ये 82 ग्रोथ सेंटर अस्तित्व में आएंगे, बल्कि अन्य भी बनेंगे। आजीविका विकास:- आर्थिकी सशक्त करने के मद्देनजर आजीविका विकास पर भी फोकस किया गया है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 28 हजार स्वयं सहायता समूह गठित हो चुके हैं। अब इन्हें सशक्त बनाने की रणनीति धरातल पर उतरेगी।
100 गांव होंगे सरसब्ज:- पलायन से जूझते 100 गांवों को इस साल चिह्नित कर वहां विभिन्न योजनाएं संचालित की जाएंगी। इनके लिए मूलभूत सुविधाओं के विस्तार व आजीविका विकास से जुड़ी कार्ययोजनाएं तैयार हो रही है। उम्मीद है कि इन गांवों में नई सुबह आएगी और पलायन थामने में मदद मिलेगी। 131 ग्रामीण सड़कें:- गांवों को सड़क से जोड़ने के मामले में वन भूमि हस्तांतरण में 131 सड़कें फंसी हुई हैं। हालांकि, इनके लिए औपचारिकताएं तेजी से चल रही हैं। माना जा रहा कि नए साल में इन्हें फॉरेस्ट क्लीयरेंस मिल जाएगी।
जीपीडीपी:- केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी ग्राम पंचायत विकास कार्यक्रम यानी जीपीडीपी भी नए साल से अहम भूमिका निभाएगा। इसमें पंचायत प्रतिनिधि ही तय करेंगे कि वे गांव का कैसा विकास चाहते हैं। जल्द ही इनके प्रशिक्षणों का दौर शुरू होने वाला है। यह भी पढ़ें: गांवों को गोद लेकर इंजीनियर जगा रहे हैं स्वच्छता की अलख, पढ़िए खबर
सीमावर्ती गांवों का विकास:- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद ने देश के सीमांत विकासखंडों के गांवों पर ध्यान केंद्रित किया है। इस कड़ी में उत्तराखंड के चीन व नेपाल की सीमा से सटे गांवों को शामिल किया गया है। उम्मीद है कि नए वर्ष में केंद्र से भी इन गांवों के विकास को बजट आवंटित होगा। यह भी पढ़ें: उत्तराखंड के अंतिम गांव गंगी में बह रही संपन्नता की प्रेरक गंगा, पढ़िए पूरी खबर
ग्रामीण परिवारों की मासिक आय (फीसद में) जिला, 5000 से कम, 5000 से 10000 के बीच, 10000 से अधिक उत्तरकाशी, 80.10, 9.05, 10.84 चमोली, 60.07, 24.71, 15.72 रुद्रप्रयाग, 53.74, 31.32, 14.94 टिहरी, 70.94, 19.47, 9.59 देहरादून, 48.95, 23.95, 27.10 पौड़ी, 59.17, 23.87, 16.96 पिथौरागढ़, 62.83, 19.78, 17.39
बागेश्वर, 66.37, 20.99, 12.64 अल्मोड़ा, 73.30, 16.24, 10.47 चंपावत, 73.12, 14.03, 12.85 नैनीताल, 61.78, 20.90, 17.31 ऊधमसिंहनगर, 65.02, 22.24, 12.74 हरिद्वार, 62.56, 27.00, 10.44 यह भी पढ़ें: नकदी खेती को टिहरी के खुशीराम ने दी नई पहचान, पढ़िए पूरी खबर
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