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कोरोनाकाल में न दिन का पता, न रात की फिक्र; कुछ इस तरह मदद में लगी रहीं ये IAS अधिकारी

नितिका खंडेलवाल का नाम उन महिला अधिकारियों में गिना जाता है जो नारी सशक्तीकरण की मिसाल हैं। वर्ष 2015 बैच की आइएएस अधिकारी नितिका यूं तो महज 2017 से फील्ड में तैनात हैं लेकिन उनका जज्बा और जोश इस सेवा के छोटे अंतराल को भी बड़ा बना देता है।

By Edited By: Updated: Sat, 24 Oct 2020 06:08 PM (IST)
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कोरोनाकाल में न दिन का पता, न रात की फिक्र।
देहरादून, सुमन सेमवाल। नितिका खंडेलवाल का नाम उन महिला अधिकारियों में गिना जाता है, जो नारी सशक्तीकरण की मिसाल हैं। वर्ष 2015 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) की अधिकारी नितिका यूं तो महज 2017 से फील्ड में तैनात हैं, लेकिन उनका जज्बा और जोश इस सेवा के छोटे अंतराल को भी बड़ा बना देता है। खासकर कोरोनकाल में उनकी सक्रियता का लोहा वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं। 

देहरादून की मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) की जिम्मेदारी संभाले उन्हें कुछ ही वक्त बीता था कि कोरोना वायरस का संक्रमण चुनौती बनकर खड़ा हो गया। 22 मार्च को जनता क‌र्फ्यू के साथ लॉकडाउन शुरू हुआ तो उनके कंधे पर अचानक से बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी। बड़ी आबादी वाले जिले में लाखों व्यक्तियों के सामने पेट भरने का भी संकट खड़ा होने लगा था। जिलाधिकारी ने उन्हें ऐसे जरूरतमंद व्यक्तियों को राशन और भोजन का इंतजाम कराने की जिम्मेदारी सौंपी दी। लोक सेवक के रूप में अल्प कार्यकाल में इस तरह की जिम्मेदारी निभाना किसी चुनौती से कम नहीं था, मगर नितिका खंडेलवाल ने एक कदम आगे बढ़कर मोर्चा संभाला और एक सशक्त टीम तैयार कर जरूरतमंदों की सेवा में जुट गईं। 
उनकी ड्यूटी कभी अल सुबह छह बजे शुरू हो जाती तो कभी रात के 10 बजे तक भी काम खत्म नहीं होता। अवकाश नाम की जैसे कोई चीज ही न हो। जब तक हालात सामान्य नहीं हो गए, तब तक नितिका ने अपनी टीम के साथ राशन व भोजन वितरण का काम जारी रखा। तमाम सामाजिक संगठनों व व्यक्तिगत स्तर पर भी सहयोग करने वाले व्यक्तियों को एकजुट कर जरूरतमंदों की सेवा के लिए मदद के हाथ बढ़ाए। 
लॉकडाउन की अवधि में एक लाख 15 हजार से अधिक व्यक्तियों/परिवारों को राशन की अन्नपुर्णा राशन किट और एक लाख 2.5 लाख से अधिक व्यक्तियों को भोजन मुहैया कराया गया। एक परिवार की तरह इस जिम्मेदारी को निभाने के बीच लॉकडाउन से छूट मिलने लगी तो उनके कंधे पर देहरादून में फंसे दूसरे राज्यों के निवासियों को घर भेजने की जिम्मेदारी भी आ गई। इस काम को भी सीडीओ खंडेलवाल ने बखूबी निभाया और ट्रेनों से ही नौ हजार से अधिक व्यक्तियों को उनके घर भेजा। इसके अलावा अन्य माध्यम से भी फंसे व्यक्तियों को गंतव्य तक पहुंचाने का काम किया गया। 
नितिका खंडेलवाल कहती हैं कि आज की महिलाएं अधिक सशक्त हैं और घर से लेकर बाहर तक की जिम्मेदारी बखूबी निभाना जानती हैं। फिर जब कोई महिला अधिकारी बन जाती है तो वहा सभी तरह के लिंगभेद खत्म हो जाते हैं। बतौर प्रशासनिक अधिकारी नितिका का मानना है कि बिना किसी मुश्किल के हर काम को अंजाम देना और हर तरह के निर्णय करना ही सही अर्थो में महिला सशक्तीकरण है। हॉस्टल में बीते तीन माह, परिवार से रही दूरी जब नितिका खंडेलवाल ने सीडीओ देहरादून का चार्ज लिया तो उन्हें सरकारी आवास आवंटित नहीं हो पाया था। 
सामने कोरोना संक्रमण की रोकथाम और जरूरतमंदों की मदद की जिम्मेदारी खड़ी थी तो आवास के सवाल को उन्होंने पीछे छोड़ दिया। उन्होंने हॉस्टल में शिफ्ट होना अधिक बेहतर समझा। उनका परिवार दिल्ली में रहता है और उन्होंने तय किया कि मुश्किल समय में उन्हें फिलहाल अलग ही रहना चाहिए। लिहाजा, परिवार को लंबे समय तक दूर रखकर वह जनता की सेवा में डटी रहीं। कोरोना की चुनौती से सीखने को मिला मुख्य विकास अधिकारी नितिका खंडेलवाल का कहना है कि कोरोनाकाल में उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। यह संकट आधुनिक युग के किसी भी व्यक्ति के लिए अभूतपूर्व रहा। हालाकि, इस दौरान जनता के लिए जितना काम किया, वह आगे की सेवा के लिए भी बड़े अनुभव से कम नहीं है।
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