उत्तराखंड में खुशहाली कर रही पर्वतीय जिलों से तौबा
देश को आजादी मिलने और फिर अलग उत्तराखंड राज्य बने हुए सत्रह साल के बाद भी पहाड़ पर विकास की गंगा को राह नहीं मिल रही है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 25 Mar 2018 11:38 AM (IST)
देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: खुशहाली पहाड़ से तौबा कर रही है। सुनने में अटपटा लग सकता है, लेकिन सच यही है। देश को आजादी मिलने और फिर अलग उत्तराखंड राज्य बने हुए सत्रह साल के बाद भी पहाड़ पर विकास की गंगा को राह नहीं मिल रही है। ऐसा भगीरथ चाहिए जो इस गंगा को पहाड़ पर चढ़ाकर पलायन के चलते तेजी से भुतहा होते जा रहे गांवों को तृप्त कर सके।
हालात मौजूदा रफ्तार से बने रहे तो हिमालयी राज्य उत्तराखंड के नौ पर्वतीय जिलों और चार मैदानी जिलों के बीच आर्थिक-सामाजिक असमानता बढ़ती जा रही है। गहरी होती इस खाई को पाटना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। राज्य बनने के बाद सबसे ज्यादा लाभ हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों को हुआ है। राज्य सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े यही हकीकत बयां कर रहे हैं।प्रति व्यक्ति आय हो या राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) या आर्थिक विकास दर उत्तराखंड का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से कहीं बेहतर है, लेकिन राज्य की आर्थिकी की इस चमक के पीछे तस्वीर स्याह है। वजह विषम परिस्थितियों वाले उत्तराखंड राज्य में विकास की बयार समान रूप से नहीं बह रही है। बिजली, पानी, सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का इन क्षेत्रों में धीमी रफ्तार से विकास हो रहा है।
शिक्षा की गुणवत्ता में कमी और विकल्पों के अभाव में पलायन का दंश झेलने को मजबूर पर्वतीय जिले आर्थिक विषमताओं का शिकार हैं। प्रति व्यक्ति आय और जीएसडीपी में चार जिलों हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंहनगर व नैनीताल और शेष जिलों में बहुत असमानता है। रुद्रप्रयाग, चंपावत जैसे जिलों से हरिद्वार, देहरादून तकरीबन तिगुना आगे हैं। ये असमानता साल-दर-साल बढ़ रही है। सबसे अधिक गरीब जिले में भी पर्वतीय जिला पौड़ी है। वहां 29.36 फीसद गरीबी है।सामाजिक-आर्थिक विकास के पांच प्रमुख घटकों मूलभूत सुविधाएं, जनसांख्यिकी, शिक्षा, चिकित्सा एवं पुष्टाहार और आर्थिक स्तर के क्रमश: पांच, चार, छह, 11 व 10 घटकों को लेकर जिलेवार तैयार किए गए समग्र सूचकांक (कंपोजिट इंडेक्स) में ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार व देहरादून क्रमश: पहले, दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। वहीं उत्तरकाशी, बागेश्वर और रुद्रप्रयाग क्रमश: तेरहवें, बारहवें व ग्यारहवें स्थान पर हैं। जनसंख्या, आर्थिक स्तर और मूलभूत सुविधाओं के पैमाने पर पर्वतीय जिलों की स्थिति अन्य जिलों की तुलना में खराब है। इन आंकड़ों ने ये भी साफ कर दिया है कि सरकार भले ही पलायन आयोग का गठन कर रिवर्स पलायन की रणनीति बनाने को अपनी प्राथमिकता में शुमार करे, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का विकास और रहन-सहन के स्तर में गुणात्मक बदलाव लाए बगैर पलायन पर अंकुश लगाना मुमकिन नहीं होगा।
जिलेवार प्रति व्यक्ति आय: (रुपये में)
रुद्रप्रयाग-----------------83,521टिहरी---------------------83,662उत्तरकाशी---------------89,190चंपावत-------------------90,596अल्मोड़ा-----------------96,786बागेश्वर-----------------1,00,117पिथौरागढ़---------------1,01,734पौड़ी----------------------1,09,973नैनीताल-----------------1,15,117चमोली----------------- 1,18,448ऊधमसिंहनगर----------1,61,102देहरादून-----------------1,95,925हरिद्वार-----------------2,54,050उत्तराखंड-----------------1,61,102प्रचलित भावों पर जिलेवार सकल घरेलू उत्पाद: (लाख रुपये में)हरिद्वार-----------------58,16,824देहरादून------------------40,57,583ऊधमसिंहनगर-----------37,59,811नैनीताल------------------13,45,261पौड़ी------------------------8,28,356अल्मोड़ा------------------6,60,378टिहरी---------------------6,47,262पिथौरागढ़----------------6,03,799चमोली--------------------5,73,115उत्तरकाशी---------------3,61,225बागेश्वर------------------326782चंपावत-----------------287786रुद्रप्रयाग-----------------2,51,040यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में फिर आबाद होंगे 968 'घोस्ट विलेज'यह भी पढ़ें: 21 वर्ष से कम उम्र वालों को नहीं बेची जा सकेगी शराब
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