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विकास के नाम पर गांवों को मिलाया, सड़कों के ख्वाब में ठगे गए ग्रामीण

शहरी क्षेत्र से सटे 72 गांव के करीब सवा दो लाख ग्रामीणों को शहरी नागरिक तो बना दिया, लेकिन अब ग्रामीण चमचमाती सड़कों के ख्वाब में खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

By BhanuEdited By: Updated: Wed, 26 Dec 2018 08:15 PM (IST)
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विकास के नाम पर गांवों को मिलाया, सड़कों के ख्वाब में ठगे गए ग्रामीण
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। विकास के लंबे-चौड़े ख्वाब दिखाकर सरकार ने देहरादून शहरी क्षेत्र से सटे 72 गांव के करीब सवा दो लाख ग्रामीणों को शहरी नागरिक तो बना दिया, लेकिन अब ग्रामीण खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। 

नगर निगम चुनाव के दौरान इन गांवों में चमचमाती सड़कों व जगमगाती लाइटों से लेकर तमाम जन-सुविधाओं के ख्वाब दिखाए गए। दावे किए गए कि कूड़ा उठान के लिए डोर-टू-डोर वाहन सेवा शुरू की जाएगी। जर्जर गलियों व नालियों को ठीक कराया जाएगा, नगर निगम दफ्तर के धक्के न खाने पड़े इसके लिए जोनल दफ्तर तक खोले जाएंगे। जनता ने भी विकास की इन उम्मीदों की आस में चुनाव में दिल-खोल भाजपा को वोट दिया, मगर चुनाव बीतने पर ग्रामीणों को एहसास हो गया कि उन्हें केवल छला गया है। 

गांवों में विकास को लेकर न सरकार एक कदम आगे बढ़ी और न ही नगर निगम। ग्रामीण उसी परिस्थिति में जीवन जी रहे, जैसा ग्राम सभा के वक्त था। वे तो यहां तक बोल रहे कि पहले ज्यादा बेहतर था। कम से कम ग्राम प्रधान, बीडीसी या वार्ड मेंबर को तत्काल पकड़ तो लेते थे। 

ताजा हालात में दो-दो गांव का एक पार्षद है और उनकी भी नगर निगम में कोई सुनवाई नहीं हो रही। निगम के पास नए क्षेत्रों के लिए न सफाई कर्मी हैं, न स्ट्रीट लाइट लगाने वाले। यही नहीं, ग्रामीण तो यह भी बोल रहे कि सरकार के पास जब कोई कार्ययोजना व संसाधन ही नहीं थे तो उन्हें शहर का हिस्सा बनाया ही क्यों गया। 

स्वीकृत सड़क भी नहीं बनी 

नकरौंदा निवासी अजय कुमार के मुताबिक जब हीरा सिंह बिष्ट विधायक थे, उस समय हमारे क्षेत्र की सड़क के निर्माण को मंजूरी मिली थी। ये सड़क आज तक नहीं बनी है। नगर निगम में मिलाने के वक्त यह दावे किए गए थे कि चुनाव के बाद सबसे पहले सड़क व गलियों का निर्माण कराया जाएगा। हम तो उम्मीद में थे कि गांव से शहर में पहुंचकर सुविधाओं का कुछ लाभ तो मिलेगा, मगर सब वोटों की राजनीति है और कुछ नहीं। 

सभी सड़कों पर अतिक्रमण 

नेहरूग्राम निवासी रजनी राणा के अनुसार हमारे गांव में सभी सड़कों पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण हैं। सड़क पर एक साथ दो गाडिय़ां भी मुश्किल से निकलती हैं। शहर में जिस तरह हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण पर कार्रवाई हुई, हमे लगा था कि ऐसी ही कार्रवाई हमारे क्षेत्र में भी होगी। अब हम शहर का हिस्सा हैं लेकिन नगर निगम ने यहां झांका तक नहीं। 

आवारा पशुओं का आतंक 

विवेक विहार नकरौंदा निवासी सीमा तिवारी के अनुसार हमारे क्षेत्र में आवारा पशुओं का बेहद आतंक है। सड़कें भी खराब हैं और स्ट्रीट लाइट की कोई व्यवस्था नहीं। शहरी क्षेत्र का हिस्सा बनकर हमें लगा था कि शहर में मिल रही जनसुविधाओं में कम से कम प्राथमिक सुविधाएं तो हमें तत्काल मुहैया करा दी जाएंगी मगर चुनाव जीतने के बाद किसी ने हमारे क्षेत्र की सुध लेने की सोची तक नहीं। 

कूड़ा उठान की समस्या  

सैनिक कालोनी बालावाला निवासी डॉ. संजय कुमार के अनुसार ग्रामीण इलाकों में सबसे बड़ी समस्या कूड़ा उठान थी। चूंकि, ग्राम सभाओं के पास पर्याप्त संसाधन व बजट का अभाव रहता है, लिहाजा ग्रामीणों ने अपने स्तर पर ही निजी वाहनों से कूड़ा उठान की प्रक्रिया शुरू कराई। हालांकि, यह नियमित नहीं चल पा रही। हमें बताया गया था कि शहर में कूड़ा उठान सुचारू रहता है और इसके निदान के लिए प्लांट भी बन चुका है मगर हमारे यहां नगर निगम ने ऐसा कोई प्रयास अब तक शुरू नहीं किया।  

पूरा हो मकसद 

ओली गांव रायपुर निवासी नीरज राणा के अनुसार गांव में सबसे पहली जरूरत सड़क, नालियों के निर्माण और सफाई व्यवस्था सुचारू करने की है। ये मूलभूत सुविधाएं शुरू हो जाती तो हमें एहसास होता कि हम शहर का हिस्सा बन चुके हैं। गांवों में फिलहाल सबकुछ ग्रामीण निजी सहयोग से कर रहे हैं। यहां तक की गलियों आदि का निर्माण भी खुद कराते हैं, लेकिन यह हमेशा नहीं हो सकता। सरकार को सोचना चाहिए कि जिस मकसद से गांव को शहर में मिलाया गया था, वह मकसद पूरा हो।

सड़कों की स्थिति दयनीय 

रांझावाला निवासी हेमा राणा के मुताबिक हमारे गांव में जीर्ण-शीर्ण सड़कों का अंबार है। ग्राम सभाओं के पास इतना बजट ही नहीं होता कि सड़क का निर्माण करा सके। हां, कभी-कभार विधायक निधि से जरूर सड़कें बनीं लेकिन ये एकाध बार ही हुआ। शेष मूलभूत सुविधाओं के लिए कोई व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। शहर में मिलाने का इतना लाभ तो मिलना चाहिए था कि कोई एक सुविधा तो शुरू की जाती। सफाई तक की व्यवस्था निगम नहीं करा पाया है। 

नहीं हो रहा बदलाव 

बनियावाला निवासी रिटायर्ड कैप्टन वीरेंद्र सिंह रावत के मुताबिक हमसे मूलभूत सुविधाओं बिजली, पानी, सड़क, स्ट्रीट लाइटें और सफाई के दुरुस्त करने के दावे किए गए थे। हालांकि, गांव के जनप्रतिनिधि और बड़ी संख्या में जनता गांव को शहर में मिलाने के फैसले के पक्ष में नहीं थे। 

फिर बाद में सभी ने सोचा कि शायद सरकार जागरूक रहेगी और गांवों की तस्वीर बदलेगी। लेकिन, जागरूक होना तो दूर, जो सुविधाएं पहले मिल रही थी वे भी बंद हो गईं। ग्राम विकास अधिकारी से शिकायत तो कर लेते थे, अब कोसों दूर नगर निगम पहुंचकर भी अधिकारी मिलने से मना कर देते हैं। देखते हैं कब बदलाव आएगा।

एक भी गली नहीं हुई पक्की 

विष्णुपुरम मोथरोवाला निवासी विनय पंत के अनुसार हमारे क्षेत्र में एक भी गली पक्की नहीं बनी हुई है। सैकड़ों परिवार यहां रहते हैं। बारिश में गलियों में पानी भर जाता है और कीचड़ के चलते चलना मुश्किल हो जाता है। मुख्यमंत्री एप से लेकर नगर निगम में शिकायत की जा चुकी है लेकिन फिलहाल तो किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया है। बाकी जनसुविधाओं का भी अभाव है। हर शिकायत के लिए दस किमी दूर नगर निगम जाना पड़ रहा, कम से कम कोई जोनल दफ्तर तो अब तक हमारे आसपास के क्षेत्र में खोल देना चाहिए था, जहां हम हमारी शिकायत दर्ज करा सकें। 

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