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उत्तराखंड का ये कैसा विकास? राज्‍य के 77 शहरों में अभी तक नहीं सीवेज नेटवर्क

Uttarakhand Sewage Network उत्तराखंड में शहरी क्षेत्रों में सीवेज नेटवर्क की स्थिति चिंताजनक है। राज्य के 77 शहरों में अभी तक सीवेज नेटवर्क नहीं है और जिन 28 शहरों में है भी वह आधा-अधूरा है। इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और लोगों का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और जल्द से जल्द सभी शहरों में सीवेज नेटवर्क विकसित करना चाहिए।

By kedar dutt Edited By: Nirmala Bohra Updated: Thu, 03 Oct 2024 01:30 PM (IST)
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Uttarakhand Sewage Network: पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के लिए यह स्थिति चिंताजनक। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, जागरण देहरादून। Uttarakhand Sewage Network: केंद्र एवं राज्य सरकारें लगातार ही शहरी क्षेत्रों में ठोस एवं तरल अपशिष्ट के प्रबंधन पर जोर दे रही हैं। शहरी विकास विभाग के तहत ही कई योजनाएं संचालित हो रही हैं तो नदियों में सीवेज की गंदगी न जाने पाए, इसके लिए नमामि गंगे परियोजना चल रही है। बावजूद इसके उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में सीवेज नेटवर्क की स्थिति चिंताजनक है।

राज्य में शहरी क्षेत्र तो बढ़ रहे हैं, लेकिन वहां सीवेज नेटवर्क स्थापित करने की रफ्तार बेहद धीमी है। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वर्तमान में 77 शहर ऐसे हैं, जहां सीवेज नेटवर्क है ही नहीं। निकट भविष्य में नगरीय स्वरूप ले चुकी नौ ग्राम पंचायतें भी शहरी क्षेत्र के रूप में अधिसूचित हो जाएंगी तो यह संख्या बढ़कर 86 पहुंच जाएगी।

हैरत यह है कि जिन 28 शहरों में सीवेज नेटवर्क है भी, वह आधा-अधूरा है। यानी इनमें कोई शहर पूरी तरह से सीवेज नेटवर्क से आच्छादित नहीं है। पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के लिए यह स्थिति बेहतर तो नहीं कही जा सकती।

सीवेज नेटवर्क का होना आवश्यक

मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड की तस्वीर देखें तो यहां कुल क्षेत्रफल का 71.05 प्रतिशत वन भूभाग है और शेष में शहर, गांव व खेती की भूमि है। गंगा, यमुना जैसी सदानीरा नदियों का उदगम भी उत्तराखंड में ही है। इस परिदृश्य में यहां शहरों व गांवों में स्वच्छता के साथ ही यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सीवेज की गंदगी किसी भी दशा में जीवनदायिनी नदियों में न जाने पाए। इसके लिए सीवेज नेटवर्क का होना आवश्यक है, लेकिन इसे लेकर तस्वीर किसी से छिपी नहीं है।

यद्यपि, पिछले 10 वर्षों में नमामि गंगे परियोजना के अलावा शहरी विकास विभाग के अंतर्गत बाह्य सहायतित योजनाओं में सीवेज नेटवर्क विकसित किया जा रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार बेहद धीमी है। मात्र 28 शहरों में ही कुछ क्षेत्रों में सीवेज नेटवर्क इसका उदाहरण है। हैरत देखिये कि राजधानी देहरादून समेत 11 नगर निगमों के क्षेत्र भी पूरी तरह से सीवेज नेटवर्क से आच्छादित नहीं हो पाए हैं। कहा जा रहा है कि बाह्य सहायतित परियोजना के अंतर्गत ऋषिकेश व हरिद्वार शहर अगले साल तक पूरी तरह सीवेज नेटवर्क से जुड़ जाएंगे।

बजट की उपलब्धता है चुनौती

यह सही है कि सीवेज नेटवर्क विकसित करने के लिए बड़े बजट की आवश्यकता होती है। पूर्व में सभी शहरों में सीवेज नेटवर्क के दृष्टिगत कराए गए आकलन में बात सामने आई थी कि इस पर लगभग 20 हजार करोड़ का व्यय आएगा। निश्चित रूप से राज्य के आर्थिक संसाधनों को देखते हुए राशि बहुत बड़ी है, लेकिन इसे लेकर चरणबद्ध ढंग से तो आगे बढ़ा ही जा सकता था। यद्यपि, अब शहरों में सीवेज नेटवर्क के दृष्टिगत गहन अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया है।

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