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Uttarakhand: दून के दामन पर 'भीख' का दाग, सड़कों पर हाथ पसारे भटकती जिंदगियां

Uttarakhandकेंद्र सरकार ने पिछले दिनों देशभर के 30 शहरों को भिक्षावृत्ति से मुक्त करने के आदेश दिए थे। हालांकि इन शहरों में देहरादून का नाम शामिल नहीं है लेकिन देहरादून भिक्षावृत्ति के जाल से अछूता भी नहीं है। शहर के तमाम चौक-चौराहों पर मासूम बच्चों महिलाओं व बुजुर्गों के भीख मांगने का दृश्य आम बात है और नीति नियंता तमाम प्रयासों के बावजूद बेबस नजर आ रहे हैं।

By sandeep joshiEdited By: Swati Singh Updated: Tue, 13 Feb 2024 03:42 PM (IST)
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बहल चौक पर वाहन चालकों से भीख मांगती महिला। जागरण
विजय जोशी, देहरादून। भिक्षावृत्ति सभ्य समाज के लिए अभिशाप है। इसी के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने पिछले दिनों देशभर के 30 शहरों को भिक्षावृत्ति से मुक्त करने के आदेश दिए थे। हालांकि, इन शहरों में देहरादून का नाम शामिल नहीं है, लेकिन देहरादून भिक्षावृत्ति के जाल से अछूता भी नहीं है।

शहर के तमाम चौक-चौराहों पर मासूम बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गों के भीख मांगने का दृश्य आम बात है और नीति नियंता तमाम प्रयासों के बावजूद बेबस नजर आ रहे हैं। अफसोस यह है कि समानता, शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार इनके लिए कोई मायने नहीं रखता।

बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी जता चुका है चिंता

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी समेत शासन और जिला प्रशासन समय-समय पर अभियान चलाकर कार्रवाई का दावा जरूर करते हैं, लेकिन इन प्रयासों को कभी शत प्रतिशत सफलता नहीं मिल पाती। देहरादून समेत प्रदेश के तमाम बड़े शहरों में बढ़ती भिक्षावृत्ति पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी चिंता जता चुका है।

भीख मांगने वालों में ज्यादातर बच्चे और महिलाएं

चौक-चौराहों, धर्म स्थलों, बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर भीख मांगने वालों को न तो मुख्य धारा से जोड़ने में सफलता मिल पा रही है, न बच्चों को भिक्षावृत्ति में धकेलने वाले गिरोह पर ही कोई शिकंजा कसा जा रहा है। दून में सार्वजनिक स्थलों पर ज्यादातर बच्चे और महिलाएं ही भिक्षावृत्ति में लिप्त मिलते हैं। यह हर किसी के लिए चिंताजनक है कि जिन हाथों में किताबें होनी चाहिएं, वह भीख मांग रहे हैं।

भिक्षावृत्ति रोकना बड़ी चुनौती

सरकारी इंतजाम के अभाव में भिक्षावृत्ति रोकना बड़ी चुनौती बना हुआ है। सार्वजनिक स्थलों पर भिक्षावृत्ति से पर्यटक, स्थानीय नागरिक और व्यापारी भी परेशान हैं।

चौराहों पर रुकते ही घेर लेते हैं

दून में राजपुर रोड, कारगी चौक, प्रिंस चौक, दर्शन लाल चौक, शिमला बाईपास, राजपुर रोड, रिस्पना पुल, रेलवे स्टेशन, आईएसबीटी, बिंदाल पुल सहित कई चौक-चौराहों पर भीख मांगने वालों का जमावड़ा लगा रहता है। उनकी नजरें चौक पर रुकने वाले वाहन सवारों या आसपास के होटल व दुकानों से निकलने वाले व्यक्तियों पर रहती हैं। हाथ पसारे ये बच्चे और महिलाएं काफी दूर तक पीछा भी करते हैं। इसके अलावा धर्म स्थलों के बाहर भी इनका डेरा रहता है। यही नहीं पर्यटक स्थल मसूरी, सहस्रधारा, टपकेश्वर, गुच्चुपानी में भी ये लोग आगे-पीछे मंडराते रहते हैं।

बाहरी राज्यों से लाकर दून में मंगवाते हैं भीख

दून में भिक्षावृत्ति के पीछे कुछ गिरोह सक्रिय हैं। पुलिस भी इस बात को नहीं नकारती। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से बच्चों को लाकर दून में भीख मंगवाई जाती है। हालांकि, इसमें बच्चे के अभिभावकों की भी सहमति होती है। बच्चे भीख मांगकर जो पैसा जुटाते हैं, उसमें से कुछ हिस्सा उसके अभिभावक को भेजा जाता है। बाकी पैसा गिरोह अपने पास रखता है और बच्चे को इसके बदले खाने के लिए खाना और रहने के लिए छत दी जाती है। बाहरी राज्यों के कुछ महिलाएं व बुजुर्ग भी दून में अस्थायी बस्तियों में रहते हैं और यहां भिक्षावृत्ति कर जीवन यापन कर रहे हैं।

नशे की लत भी करा रही भिक्षावृत्ति

नशे की लत को पूरा करने के लिए भी भिक्षावृत्ति की जा रही है। दून में ऐसे कई युवक और बुजुर्ग चौराहों पर दिख जाते हैं, जो पूरा दिन नशे में रहते हैं। भीख मांगकर वो मादक पदार्थ खरीदते हैं और कहीं भी फुटपाथ पर सो जाते हैं। नशे का कारोबार करने वाले ऐसे व्यक्तियों से नशा तस्करी भी कराते हैं। पैसे का लालच देकर बच्चों को भी इस धंधे में शामिल कर लिया जाता है। कई संस्थाएं इन बच्चों को नशे और भिक्षावृत्ति के चंगुल से छुड़ाने का प्रयास तो करती हैं, लेकिन संसाधनों का अभाव आड़े आ जाता है।

भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम का भी असर नहीं

उत्तराखंड सरकार ने भिक्षावृत्ति रोकने के लिए भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम लागू किया है। इस अधिनियम में सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगना अपराध की श्रेणी में आता है। बगैर वारंट गिरफ्तारी व दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर सजा की अवधि पांच साल तक हो सकती है। हालांकि, इस सख्ती के बावजूद भिक्षावृत्ति रोकने में सरकार नाकाम रही है।

सरकार के प्रयास और इंतजाम नाकाफी

मदर्स एंजल चिल्ड्रन सोसायटी चला रहे जहांगीर आलम का कहना है कि शहर में बच्चों को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने को उनकी संस्था भी प्रयास कर रही है। महिलाओं की गोद में दिखने वाले बच्चे उनके नहीं होते। बाहरी राज्यों से इन्हें भिक्षावृत्ति कराने के लिए लाया जाता है। बच्चों को रेस्क्यू किया जाता है, लेकिन उनके रहने-खाने व शिक्षा की उचित व्यवस्था न होने के कारण कुछ समय बाद बच्चे दोबारा भिक्षावृत्ति में लग जाते हैं। भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए व्यापक प्रयास की आवश्यकता है।

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