इन दो बड़ी नदियों में खनन के चलते घट रही हैं डॉल्फिन, जानिए
गंगा और ब्रह्मपुत्र में पाई जाने वाले डॉल्फिन की संख्या लगातार कम होती जा रही है। एक शोध में ये बात सामने आई है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 24 Aug 2019 08:47 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। गंगा और ब्रह्मपुत्र में पाई जाने वाले डॉल्फिन की संख्या लगातार कम होती जा रही है। अकेले बह्मपुत्र के कांजीरंगा, विक्रमशिला, बिहार क्षेत्र में गंगा में जहां एक समय में प्रति दस किलोमीटर में दस से 13 डॉल्फिन पाई जाती थी। अब यह घट कर पांच से छह रह गई हैं। इसके अलावा मानव के लगातार दखल के चलते डॉल्फिन के व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है। नदियों में लगातार हो रहा खनन और मछलियों का शिकार करना इसका बड़ा कारण है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोध में यह बात सामने आई है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान की शुक्रवार को शोध संगोष्ठी में जल और वन्यजीवों की विलुप्त होती चार प्रजातियों के संरक्षण को लेकर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। जिनमें ये बात सामने आई कि गंगा और ब्रह्मपुत्र में जहां खनन बढ़ा है, वहां डॉल्फिन का घनत्व लगातार कम हुआ है। डॉल्फिन पर लंबे समय से काम कर रहे डॉ. कमर कुरैशी के अनुसार कभी प्रति दस किलोमीटर में 13 डॉल्फिन औसतन पाई जाती थीं, लेकिन अब वे सिर्फ छह के आसपास रह गई हैं। इसके पीछे कारण खनन से उनके नदी में आवास खत्म होना है। इसी तरह इन दोनों नदियों में पानी के जहाजों और बोट की लगातार आवाजाही बढ़ने से डॉल्फिन के व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है। वे पहले जैसी स्वच्छंद नहीं दिख रही हैं। कहा कि लगातार मानव के पानी में दखल से डॉल्फिन और अन्य पानी के जीवों में तनाव भी दिखा है। फैक्ट्रियां, प्रदूषण और अन्य कारण भी डॉल्फिन के आवास खत्म हर रही हैं। वर्तमान में देशभर में सिर्फ 18 सौ ही डॉल्फिन बची हैं।
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संगाई में बढ़ता तनाव चिंताजनक
दुनिया में अकेले मणिपुर में पाए जाने वाली हिरन की प्रजाति संगाई को लेकर भी शोधार्थियों ने शोध पेश किए। शोध में संगाई में तनाव के स्तर के बढऩे की बात सामने आई। हालांकि, अभी इसका कारण पता नहीं लग सका है। शोधार्थी जंगल में मानव के दखल को इसका एक कारण बताते हैं। संगाई दुनिया की सबसे ज्यादा संकट ग्रस्त प्रजातियों में शुमार है। ऐसे में इसमें तनाव का स्तर बढ़ना चिंता जनक है।
ड्यूगांग और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पर भी चर्चा
भारतीय वन्यजीव संस्थान की संगोष्ठी में समुद्र में पाए जाने वाले ड्यूगांग और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण को लेकर भी चर्चा हुई। इसके अलावा शोधार्थियों के शोध पेश होने के बाद छात्रों से सवाल भी किए गए। इस दौरान संस्थान के डीन डॉ. जेएस रावत, डॉ. एसके खंडूरी, डॉ. वाईवी झाला, डॉ. के शिवकुमार और डॉ. जेए जॉन्सन आदि मौजूद रहे।
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