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आसन वेटलैंड में बढ़ी विदेशी परिंदों की संख्या, जुट रही पक्षी प्रेमियों की भीड़

रिजर्व आसन वेटलैंड में प्रवास के लिए परिंदों की प्रजातियां बढ़ने से संख्या बढ़कर करीब तीन हजार हो गई है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 16 Nov 2019 08:24 PM (IST)
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आसन वेटलैंड में बढ़ी विदेशी परिंदों की संख्या, जुट रही पक्षी प्रेमियों की भीड़
देहरादून, जेएनएन। देश के पहले कंजरवेशन रिजर्व आसन वेटलैंड में प्रवास के लिए परिंदों की प्रजातियां बढ़ने से संख्या बढ़कर करीब तीन हजार हो गई है। इससे आसन झील परिंदों से गुलजार हो गई है। वहीं, पक्षी प्रेमियों के जुटने से भी आसन वेटलैंड क्षेत्र में रौनक है। वर्तमान में सुर्खाब, ग्रे लेग गीज, कारमोरेंट समेत करीब 22 प्रजातियों के परिंदे प्रवास पर हैं। आधा नवंबर गुजरने के बाद भी दुर्लभ प्रजाति के पलाश फिश इगल का जोड़ा अभी तक नहीं आया है। 

प्लास फिश इगल का जोड़ा हर साल आसन वेटलैंड में आता है और सेमल के पेड़ पर अपना आशियाना बनाकर रहता है, लेकिन प्रवास का काफी समय निकलने के बाद भी अभी तक यह जोड़ा नहीं आया है। वर्तमान में सुर्खाब, ग्रे लेग गीज, कारमोरेंट, कामन पोचार्ड, टफ्ड, गैडवाल, रेड नेप्ड आइबीज, कामन कूट, स्पाट बिल्ड डक, पर्पल हेरोन, लिटिल ग्रेब, ग्रे हेरोन, कामन मोरहेन, ग्रेट कारमोरेंट, कामन टील समेत करीब 22 प्रजातियों के परिंदे ही उत्तराखंड के मेहमान बने हैं, जिसमें सबसे ज्यादा संख्या सुर्खाब की है। 

सोने से दमकते पंखों वाले रुड़ी शेलडक यानि सुर्खाब पक्षी प्रेमियों को सबसे ज्यादा भाता है। आसन वेटलैंड में अक्टूबर से मार्च तक विदेशी परिंदों का प्रवास रहता है। जैसे-जैसे ठंड बढ़ती है। प्रवासी परिंदों की प्रजातियां और संख्या में भी इजाफा होता रहता है। वर्ष 2015 से 2019 तक इनकी संख्या में क्रमश: 5796, 5635, 4569, 6008 और 6170 रही। पिछले एक साल 162 परिंदे बढ़े। वहीं, चकराता वन प्रभाग के डीएफओ दीप चंद आर्य के निर्देश पर आसन रेंजर जवाहर सिंह तोमर प्रवासी परिंदों की सुरक्षा को लेकर रात-दिन की गश्त कर रहे हैं। रेंजर ने बताया कि जल्द ही प्रभाग परिंदों की स्थानीय आधार पर गणना कराएगा। 

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किस साल कितने आए परिंदे 

साल         प्रजाति     परिंदे 

2015        48         5796 

2016        84         5635 

2017        60         4569 

2018        61         6008 

2019-       79         6170 

(नोट: यह आंकड़े वन विभाग के अनुसार हैं) 

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