उत्तराखंड में 'शिखर' पर बाघ, कैमरा ट्रैप में कैद हुर्इं तस्वीरें
विश्व बाघ दिवस पर बाघों को लेकर खुश कर देने वाले आंकड़ें सामने आए हैं। उत्तराखंड में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है। कैमरा ट्रैप में कैद हुर्इ तस्वीरें इसकी तस्दीक करती है।
देहरादून, [केदार दत्त]: 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में बाघ 'शिखर' पर हैं। कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में इनका कुनबा खूब फल-फूल रहा है तो अब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी बाघों ने दस्तक दी है। 12 से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर अस्कोट, केदारनाथ और खतलिंग में इनकी मौजूदगी के पुष्ट प्रमाण मिले हैं। ये इस बात का द्योतक है कि यहां बाघों के लिए हर स्तर पर बेहतर वासस्थल हैं, जिसे बनाए रखने में राज्य सफल रहा है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है और वह है इनकी सुरक्षा की चुनौती। महकमा भी इसी चिंता में घुला जा रहा है। अब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उन स्थानों पर अधिक कैमरा ट्रैप लगाने की तैयारी है, जहां पूर्व में इनकी तस्वीरें कैद हुई हैं।
वन विभाग के पास उपलब्ध रिकार्ड को खंगालें तो उत्तराखंड में 1943 में सबसे पहले 6948 फुट की ऊंचाई पर चकराता के खंडबा में बाघ (टाइगर) की मौजूदगी मिली थी। तब बाघ ने वहां हमले भी किए थे। इसे छोड़ पहाड़ अथवा उच्च हिमालयी क्षेत्र में बाघों की मौजूदगी का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं था। लेकिन, अब ऐसा नहीं है। बाघों ने उच्च हिमालयी क्षेत्र में उन स्थानों पर दस्तक दी है, जहां हिम तेंदुओं का बसेरा है।
पिछले तीन सालों के अंतराल में करीब साढ़े 12 हजार फुट की ऊंचाई पर पिथौरागढ़ के अस्कोट क्षेत्र में लगे कैमरों में बाघों की तीन बार तस्वीर कैद हुई तो केदारनाथ सेंचुरी के मदमहेश्वर में 14 हजार फुट की ऊंचाई पर हिम तेंदुओं के वासस्थल में भी बाघ की मौजूदगी मिली है। 12139 फुट की ऊंचाई वाले खतलिंग ग्लेश्यिर में भी बाघों की तस्वीरें कैमरा ट्रैप में आई हैं।
बाघों के उच्च शिखरों तक पहुंचने से वन्यजीव प्रेमियों के साथ ही वन महकमा उत्साहित जरूर हैं, लेकिन इनकी सुरक्षा की चिंता भी सालने लगी है। फिर यह बेवजह भी नहीं है। कारण राज्य के बाघ पहले ही शिकारियों व तस्करों के निशाने पर हैं। खासकर कुख्यात बावरिया गिरोहों ने नींद उड़ाई हुई है। सूरतेहाल, अब बाघों की सुरक्षा को लेकर अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। वजह, ये कि कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढऩे के मद्देनजर वहां वर्चस्व की जंग तेज हो सकती है। ऐसे में कमजोर बाघ रिजर्व क्षेत्र से बाहर निकलकर दूसरे जंगलों का रुख कर सकते हैं।
वन्य जीव के प्रमुख वन संरक्षक डीवीएस खाती का कहना है कि बाघ बढ़े हैं तो वे दूसरे क्षेत्रों में आशियाने भी तलाशेंगे ही। निश्चित रूप से अब चुनौती अधिक बढ़ गई है। इस कड़ी में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वहां और कैमरा ट्रैप की संख्या बढ़ाई जा रही है, जहां पूर्व में हिम तेंदुओं की मौजूदगी के मद्देनजर कैमरा ट्रैप लगे हैं। इसके साथ ही संबंधित प्रभागों के डीएफओ को बाघों के फुटमार्क देखने को भी कहा गया है। ताकि, सुरक्षा को प्रभावी कदम उठाए जा सकें।
राज्य में बाघ
गणना वर्ष-------------- संख्या
2003---------------------245
2005---------------------241
2008---------------------179
2010---------------------199
2011---------------------227
2014---------------------340
2017---------------------361
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