उत्तराखंड: अवैध भवनों को वैध करने की स्कीम पर ठिठके कदम, जानिए वजह
अवैध भवनों को वैध करने के लिए उत्तराखंड शासन ने मार्च में वन टाइम सेटेलमेंट (ओटीएस) स्कीम लागू की थी। करीब दो सप्ताह पहले मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने भी इस संबंध में आदेश जारी कर नक्शे दाखिल करने को हरी झंडी दे दी।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Fri, 04 Jun 2021 06:01 PM (IST)
जागरण संवाददाता, देहरादून। अवैध भवनों को वैध करने के लिए उत्तराखंड शासन ने मार्च में वन टाइम सेटेलमेंट (ओटीएस) स्कीम लागू की थी। करीब दो सप्ताह पहले मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने भी इस संबंध में आदेश जारी कर नक्शे दाखिल करने को हरी झंडी दे दी। इसके बाद भी मामला जहां का तहां अटका है। वजह यह कि एमडीडीए में आनलाइन नक्शा दाखिल करने के लिए आटो प्लान लागू है और इसके नियमों में ओटीएस के मुताबिक संशोधन नहीं किया गया है। आटो प्लान में बिल्डिंग बायलाज पहले से दर्ज है, जबकि स्कीम में बायलाज के नियमों में भारी छूट दी गई है।
ओटीएस स्कीम लागू होने के बाद भी नक्शे दाखिल न होने पर गुरुवार को एमडीडीए अधिकारियों ने आर्किटेक्ट के साथ आनलाइन बैठक की। इसमें यह निकलकर आया कि आटो प्लान में यदि वह नक्शे दाखिल करते हैं तो उस पर शिथिलता वाले नियम लागू नहीं होंगे और मौजूदा बायलाज के हिसाब से नक्शे पास नहीं हो पाएंगे।
उत्तराखंड इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा ने कहा कि एमडीडीए को आटो प्लान साफ्टवेयर में ओटीएस के मुताबिक संशोधन या नई व्यवस्था को दर्ज करना होगा। साथ ही इसका लिंक प्राधिकरण की वेबसाइट के होम पेज पर देना होगा। तभी आर्किटेक्ट सुगमता के साथ नक्शा दाखिल कर पाएंगे। दून के विभिन्न आर्किटेक्ट ने ओटीएस में पार्किंग, सेटबैक आदि पर स्थिति स्पष्ट न होने के बिंदु भी उठाए। बैठक में शामिल एमडीडीए सचिव हरबीर सिंह ने आश्वासन दिया कि जल्द आर्किटेक्ट की सभी समस्याओं का समाधान कर दिया जाएगा।
ओटीएस में नक्शा पास करने की डेडलाइन जरूरी बैठक में आर्किटेक्ट ने कहा कि नक्शा पास करने के लिए तय समय सीमा है। सेवा का अधिकार के तहत भी आवासीय श्रेणी के नक्शों के लिए अधिकतम 15 दिन व कामर्शियल श्रेणी के लिए 30 दिन का समय तय है। लिहाजा, ओटीएस में भी यह नियम अपनाया जाए। इससे पहले जो दो ओटीएस स्कीम लागू की गई थीं, उनके तमाम नक्शे एमडीडीए में अब भी लंबित पड़े हैं। एमडीडीए ने न तो इन नक्शों का निस्तारण किया है और न नागरिकों से ली गई धनराशि ही वापस की।
इस तरह के भवन हो सकेंगे वैध जिन भवनों का नक्शा पास नहीं है या जिनका निर्माण स्वीकृत नक्शे से भिन्न किया गया है। इस तरह के सभी भवन मालिक कंपाउंडिंग के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, यह ओटीएस का शासनादेश जारी होने के बाद स्पष्ट हो पाएगा कि अवैध निर्माण को किस सीमा तक वैध किया जा सकता है। दून की बात करें तो एमडीडीए ने यहां करीब 28 हजार भवनों के अवैध निर्माण पर चालान किए हैं। इसके अलावा तमाम भवनों के चालान नहीं किए गए हैं। लिहाजा, अवैध भवनों को वैध बनाने का यह बेहतर अवसर होगा।
कंपाउंडिंग शुल्क निभाएगा अहम भूमिका भवन का नया नक्शा पास कराने में उतना शुल्क नहीं लगता, जितना कंपाउंडिंग में लगता है। इसमें अवैध निर्माण की पेनाल्टी भी शामिल होती है। जनवरी 2019 से पहले कंपाउंडिंग शुल्क में सर्किल रेट के साथ सिर्फ भूतल की गणना की जाती थी और ऊपरी मंजिल पर सामान्य शुल्क लगता था। इसके बाद सर्किल रेट की गणना (पांच से 15 फीसद तक) हर तल के साथ की जाने लगी। इससे शुल्क में काफी इजाफा हो गया। अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने के लिहाज से यह उचित कदम था।
हालांकि, पूर्व में किए जा चुके अवैध निर्माण भी इसकी जद में आ जाने से लोग कंपाउंडिंग से तौबा करने लगे। अब देखने वाली बात यह होगी कि ओटीएस में सरकार अवैध निर्माण को वैध कराने के लिए जनता को कितनी रियायत देती है। इस मामले में उत्तराखंड इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा का कहना है कि कंपाउंडिंग शुल्क पूर्व की भांति लगाए जाएंगे। सर्किल रेट भी वर्ष 2012 के अनुसार लागू होंगे और सेटबैक में अधिकतम छूट दी जाएगी।
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