Paddy Crop: धान की फसल में शीत ब्लाइट रोग का प्रकोप, जानिए बचाव के टिप्स
पछवादून में धान की फसल शीत ब्लाइट रोग की चपेट में आ गई है। बरसात के कारण वातावरण में नमी के कारण फफूंद बढ़ने पर धान की फसल को यह हानिकारक रोग लील रहा है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 23 Jul 2020 01:47 PM (IST)
विकासनगर (देहरादून), जेएनएन। पछवादून में गन्ने के बाद धान की फसल शीत ब्लाइट रोग की चपेट में आ गई है। बरसात के कारण वातावरण में नमी के कारण फफूंद बढ़ने पर धान की फसल को यह हानिकारक रोग लील रहा है। देहरादून जिले में 11 से 13 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल के बीच धान की खेती की जाती है। इसमें मैदानी क्षेत्रों में करीब साढ़े सात हजार व पर्वतीय में 2-3 हजार हेक्टेयर के बीच धान की फसल रोपी जाती है। हालांकि, पहले के मुकाबले धान की रोपाई का क्षेत्रफल घटा है। धान में रोग की स्थिति से किसानों की चिंता बढ़ गई है। इसे देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानी ने बचाव के टिप्स दिए हैं।
देहरादून के मैदानी व पर्वतीय क्षेत्रों में धान की फसल प्रमुख रूप से लगाई जाती है। वर्तमान में जब फसल की बढ़वार चल रही है, ऐसे में नमी के कारण फफूंद पनपने से धान की फसल में शीत ब्लाइट रोग का प्रकोप दिखाई देने लगा है। प्रमुख वजह वातावरण में नमी, हवा में प्रदूषण, जल निकास न होने को माना जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानी डॉ. संजय सिंह ने किसानों को टिप्स दिए कि शीत ब्लाइट रोग की रोकथाम को प्रोपीकोनाजाल 500 मिली. को प्रति हेक्टेयर फसल पर छिड़काव करें, साथ ही खेत में जल निकास की भी उचित व्यवस्था की जाए।
फसल चक्र में यदि गेहूं के बाद धान की फसल ली जा रही हो और फसल में जिंक का इस्तेमाल गेहूं की फसल में न किया गया हो तो किसान धान की फसल में 2 किलोग्राम प्रति बीघा की दर से 1 प्रतिशत जिंक सल्फेट का छिड़काव कर सकते हैं। जिंक की कमी से धान की पत्तियों के ऊपर लोहे के जंग जैसा रंग दिखाई देने लगता है और पूरे खेत में चकत्ते के रूप में खेत की बढ़वार रूकी हुई दिखाई पड़ती है। जहां पर किसान बासमती व सुगंधित धान की खेती कर रहे हैं, वहां पर यह ध्यान देना आवश्यक है कि पत्तियों के ऊपर कोई फफूंद जनित बीमारी तो नहीं पनप रही है।
किसान अपने खेत की मेड़ व सिंचाई नालियों की पूरी तरह से सफाई रखें, उन पर कोई घास अथवा खरपतवार न उगने दें। इन खरपतवार में बहुत से कीट पतंगे व रोग फैलाने वाले कवक आश्रय लेते हैं, इसके कारण फसल पूरी तरह से प्रभावित होती है। उन्होंने सलाह दी कि किसान अपनी फसल में विशेषज्ञों की सलाह के बिना उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग न करें। यह भी पढ़ें: हरिद्वार में नकली कीटनाशक की भरमार, कृषि विभाग नींद में
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