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Uttarakhand Lockdown: ऑनलाइन ढोल वादन और जागर गायन कर रहे पद्मश्री प्रीतम

उत्तराखंड की पुरातन लोक कला ढोल सागर में पारंगत पद्मश्री प्रीतम भरतवाण लॉकडाउन में भी ऑनलाइन ढोल वादन और जागर के माध्यम से युवाओं को संस्कृति से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Updated: Tue, 05 May 2020 01:25 PM (IST)
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Uttarakhand Lockdown: ऑनलाइन ढोल वादन और जागर गायन कर रहे पद्मश्री प्रीतम
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड की पुरातन लोक कला ढोल सागर में पारंगत पद्मश्री प्रीतम भरतवाण लॉकडाउन में भी ऑनलाइन ढोल वादन और जागर के माध्यम से युवाओं को संस्कृति से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। जागर सम्राट की इस पहल का सभी लोग तहे दिल से अभिनंदन कर रहे हैं। 

इससे उनके चाहने वालों का मनोरंजन तो हो ही रहा है। साथ ही उन्हें राज्य की लोक कला व संस्कृति के संबंध में काफी कुछ सीखने को भी मिल रहा है। खासकर उन युवाओं को जो लोक कला के क्षेत्र में मुकाम हासिल करने की चाहत रखते हैं। 

लोककला में प्रीतम भरतवाण ऐसा नाम है, जो उत्तराखंड की जागर एवं लोक विरासत को सहेजने में लगे हैं। जागर की उनकी विशेष प्रस्तुति के कारण ही उन्हें 'जागर सम्राट' कहा जाता है। लॉकडाउन के चलते इन दिनों सामुदायिक आयोजनों पर पाबंदी है। ऐसे में प्रीतम भरतवाण घर पर रहकर ही लोगों का मनोरंजन करने के साथ उन्हें संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दे रहे हैं। 

अपनी प्रस्तुतियों को वह यूट्यूब और फेसबुक पेज जैसे माध्यमों से लोगों तक पहुंचा रहे हैं। साथ ही इसको लेकर लोगों की प्रतिक्रिया और फरमाइशें भी उन तक पहुंच रही है। पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने बताया कि 22 मार्च को हुए जनता कफ्र्यू पर भी उन्होंने एक गीत तैयार किया था, जिसे यूट्यूब के माध्यम से अपने चाहने वालों तक पहुंचाया। 

इसके बाद उन्होंने लॉकडाउन को लेकर भी एक गीत तैयार किया, जो यू-ट्यूब पर मौजूद है। इस गीत की लोगों ने खूब सराहना की और आगे भी ऐसे कार्यक्रम जारी रखने की अपील की। इसको ध्यान में रखते हुए जागर सम्राट ने दो हफ्ते पहले यू-ट्यूब और अपने फेसबुक पेज पर ढोल व जागर की प्रस्तुति दी। जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं। 

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छह मिनट 15 सेकेंड के इस जागर में ढोल पर उनका साथ चाचा कमलदास ने दिया है। वहीं, सोमवार को उन्होंने यू-ट्यूब पर वैशाख से संबंधित गीत अपलोड कर वैशाख मेले की याद दिलाई। बकौल प्रीतम भरतवाण युवा पीढ़ी के जरूरी है कि वह अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए लिए इससे जुड़े रहें। क्योंकि, यह संस्कृति ही उनकी पहचान है जो उन्हें आगे ले जाने में मदद करेगी। संस्कृति के क्षेत्र में अपना कॅरियर देख रहे युवाओं को इससे काफी मदद भी मिलेगी।

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