परशुराम ने की थी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना, इससे जुड़ी हैं कई मान्यताएं; जानिए
कहा जाता है कि उत्तरकाशी में स्थित विश्वनाथ मंदिर की स्थापना परशुराम ने की थी। ये मंदिर हर साल हजारों तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करता है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 20 Jul 2019 09:06 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। ऋषिकेश से सड़क मार्ग होते हुए 160 किलोमीटर चलकर उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। उत्तरकाशी बस स्टैंड से तीन सौ मीटर की दूरी पर स्थित है विश्वनाथ मंदिर। मंदिर के पास ही एक शक्ति मंदिर और हनुमान मंदिर भी स्थित है। उत्तरकाशी की यात्रा खासकर विश्वनाथ मंदिर की यात्रा के बिना अर्थहीन है, जो प्रत्येक वर्ष हजारों तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करता है और भगवान शिव को समर्पित है। गंगोत्री की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है अगर उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर या वाराणसी के रामेश्वरम मंदिर में पूजा अर्चना न की जाए।
इतिहास भागीरथी नगरी के किनारे उत्तरकाशी में प्राचीन विश्वनाथ मंदिर। इसी कारण उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था। श्रवण मास में विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं और कांवड़ियों की खासी भीड़ रहती है। विश्वनाथ मंदिर परिसर में कांवड़ियों के रुकने की भी व्यवस्था है। केदारखंड में ही बाड़ाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। पुराणों में इसे सौम्य काशी भी कहा गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे। तब से यह नगरी विश्वनाथ की नगरी कही जाने लगी और कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी। टिहरी की महारानी कांति ने सन 1857 में इस मंदिर की मरम्मत करवाई। महारानी कांति सुदर्शन शाह की पत्नी थीं। इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है।
विश्वनाथ मंदिर के महंत जयेंद्र पुरी बताते हैं, भगवान आशुतोष काशी विश्वनाथ उत्तरकाशी के स्थान देवता भी हैं। कलयुग में उत्तरकाशी का खास महत्व है। यहां पर स्वयंभू ज्योर्तिलिंग के रूप में दर्शन दे रहे। भगवान का रूप 56 सेमी ऊंचा दक्षिण की ओर झुका हुआ औरप्राचीन शिवलिंग है। यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है। महाशिवरात्रि पर तो भगवान के दर्शन करने का अपना अलग ही महत्व है।
शिव कथा व्यास वृंदा प्रसाद का कहना है कि विश्वनाथ मंदिर के दायीं ओर शक्ति मंदिर है। इस मंदिर में 6 मीटर ऊंचा और 90 सेंटीमीटर परिधि वाला एक बड़ा त्रिशूल स्थापित है। इस त्रिशूल का ऊपरी भाग लोहे का और निचला भाग तांबे का है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा (शक्ति) ने इसी त्रिशूल से दानवों को मारा था। बाद में इन्हीं के नाम पर यहां इस मंदिर की स्थापना की गई। इसलिए इस मंदिर में शिव और शक्ति दोनों के दर्शन होते हैं। यह भी पढ़ें: यहां भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध व्यक्ति के रूप में दिए थे दर्शन
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