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लचर व्यवस्था में स्वाइन फ्लू से जंग लड़ रहे मरीज, पढ़िए पूरी खबर

उत्‍तराखंड में स्वाइन फ्लू की दस्तक हो चुकी है। जनवरी से अब तक आठ मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो चुकी है। जिनमें पांच मरीज उत्तराखंड और तीन उप्र के हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 27 Feb 2020 03:08 PM (IST)
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लचर व्यवस्था में स्वाइन फ्लू से जंग लड़ रहे मरीज, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, जेएनएन। स्वाइन फ्लू को लेकर स्वास्थ्य विभाग भले सक्रियता के लाख दावे करे, मगर लचर व्यवस्था के चलते मरीजों की जान सांसत में है। स्थिति ये कि एक तरफ मरीज इस बीमारी से लड़ते हैं तो दूसरी तरफ व्यवस्था से। स्वाइन फ्लू के प्रारंभिक लक्षण के बाद जिन मरीजों के सैंपल जांच के लिए भेजे जाते हैं, उनपर कई दिन बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती। ऐसे में लक्षण के अनुसार ही मरीज का उपचार चलता रहता है। हद ये कि कई बार रिपोर्ट मरीज की मौत के बाद आती है।

प्रदेश में स्वाइन फ्लू की दस्तक हो चुकी है। जनवरी से अब तक आठ मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो चुकी है। जिनमें पांच मरीज उत्तराखंड और तीन उप्र के हैं। राहत की बात यह कि यह सभी स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं। पर चिंता यहां खत्म नहीं होती। बीते तीन साल में प्रदेश में स्वाइन फ्लू से पच्चीस से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। गत वर्ष तो स्वाइन फ्लू ने रिकॉर्ड ही तोड़ दिया था। पिछले साल स्वाइन फ्लू के 246 मामले दर्ज किए गए थे। सवाल यह  कि जांच रिपोर्ट आने में देर क्यों? दरअसल, स्वाइन फ्लू की जांच के लिए सैंपल राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) को भेजे जाते हैं।

यहां से रिपोर्ट आने में कई-कई दिन लग जाते हैं। इस दौरान मरीज का इलाज संदेह के आधार पर ही होता है। यह हाल तब है, जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दून अस्पताल में वायरोलॉजी लैब स्थापित करने को मंजूरी दी हुई है। सरकारी सुस्ती का आलम देखिए कि गत वर्ष दून मेडिकल कॉलेज में वायरोलॉजी लैब शुरू करने की कवायद की गई, लेकिन यह अब तक अपने मुकाम पर नहीं पहुंची है। दून में स्वाइन फ्लू की जांच शुरू करने का सरकार व विभाग ने ढोल खूब पीटा,पर जाने मामला आया गया हो गया। उम्मीद की जानी चाहिए कि आम आदमी की सेहत को लेकर लापरवाह सरकार, देर सवेर जरूर चेतेगी।

क्या होगा लैब का फायदा

वायरोलॉजी लैब स्थापित होने से उत्तराखंड इन्फ्लूएंजा सर्विलांस लैबोरेटरी नेटवर्क (आइएसएलएन) का भी हिस्सा बन जाएगा। अभी तक देश में ऐसी 21 प्रयोगशालाएं हैं। जिन राज्यों में यह सुविधा नहीं है, वह नमूने निकटवर्ती राज्य की प्रयोगशालाओं में भेजते हैं। उत्तराखंड से नमूने दिल्ली भेजे जाते हैं। जिसकी रिपोर्ट आने में कई-कई दिन का वक्त लगता है।

शासन स्तर पर अटका मामला

दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि मेडिकल कॉलेज में चतुर्थ तल पर लैब का आधारभूत ढांचा तैयार कर लिया गया है। वायरोलॉजी लैब की आधारभूत संरचना भी तय मानकों के अनुरूप होती है। जिसे पूरा करने के बाद केंद्र की टीम ने इसका निरीक्षण किया। उन्होंने इसे उपयुक्त पाया है। लैब के लिए मशीन व अन्य उपकरण की खरीद को टेंडर भी हो चुके हैं। जिसके बाद स्वीकृति के लिए फाइल शासन को भेजी गयी है। शासन से स्वीकृति मिलते ही खरीद कर ली जाएगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि लैब जल्द ही क्रियाशील हो जाएगी।

दून में स्वाइन फ्लू की दस्तक से सकते में अधिकारी

राज्य में स्वाइन फ्लू के लगातार आ रहे मामलों से स्वास्थ्य महकमा भी सकते में है। विभाग ने अस्पतालों को खास एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं। अस्पताल प्रबंधन को निर्देशित किया गया है कि स्वाइन फ्लू का कोई भी मरीज आने पर तत्काल इसकी सूचना जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय को दी जाए।

गर्मी का भी असर नहीं

स्वाइन फ्लू के वायरस और मौसम में गहरा संबंध है। कम तापमान और ज्यादा नमी के कारण हवा घनी होती है, जो वायरस के एक्टिव होने में मददगार बनती है। यही कारण है कि स्वाइन फ्लू सर्दियों में असर दिखाता है। यह 30 डिग्री से कम तापमान पर फैलता है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि गर्मी भी वायरस को निस्तेज नहीं कर पा रही है। गत वर्षों में पूरे साल ही स्वाइन फ्लू के केस सामने आते रहे हैं। जिसका कारण बताया गया कि वायरस ने स्ट्रेन बदल दिया है। पर ताज्जुब ये कि सरकार व विभाग की कार्यप्रणाली फिर भी नहीं बदली है।

वर्षवार स्वाइन फ्लू के आंकड़े

  • वर्ष-मामले-मौत
  • 2017-157-19
  • 2018-09-02
  • 2019-246-06
  • 2020-08-00
ये हैं स्वाइन फ्लू के लक्षण

सर्दी, जुकाम, सूखी खांसी, थकान होना, सिरदर्द और आंखों से पानी आना। इसके अलावा स्वाइन फ्लू में सांस भी फूलने लगती है। अगर संक्रमण गंभीर है तो बुखार तेज होता जाता है।

स्वाइन फ्लू के कारण

इंफ्लूएंजा-ए वायरस के एक प्रकार एच1 एन1 से स्वाइन फ्लू उत्पन्न होता है। यह वायरस साधारण फ्लू के वायरस की तरह ही फैलता है। स्वाइन फ्लू का वायरस बेहद संक्रामक है और एक इंसान से दूसरे इंसान तक बहुत तेजी से फैलता है। जब कोई खांसता या छींकता है तो छोटी बूंदों में से निकले वायरस कठोर सतह पर आ जाते हैं। यह वायरस 24 घंटे तक जीवित रह सकता है।

ये बरतें सावधानियां

  • गंभीर बीमारियों से ग्रसित, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले, सर्दी-जुकाम से पीडि़त, बच्चे और बुजुर्गों को विशेष तौर से सावधानी बरतने की जरूरत है।
  • इस बीमारी से बचने के लिए स्वच्छता का खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए। खांसते और छीकते समय टीशू से कवर रखें।
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  • बाहर से आकर हाथों को साबुन से अच्छे से धोएं और सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें।
  • जिन लोगों में स्वाइन फ्लू के लक्षण हों, उन्हें मास्क पहनना चाहिए और घर में ही रहना चाहिए।
  • स्वाइन फ्लू के लक्षण वाले मरीज से संपर्क व हाथ मिलाने से बचें। नियमित अंतराल पर हाथ धोते रहें।
  • जिन लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही हो और तीन-चार दिन से तेज बुखार हो, उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
  • स्वाइन फ्लू के लिए गले और नाक के द्रव्यों का टेस्ट होता है। जिससे एच1एन1 वायरस की पहचान की जाती है। ऐसी कोई भी जांच डॉक्टर की सलाह के बाद कराएं।
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