सड़कों पर आए दिन होने वाले जुलूस-प्रदर्शन से लोग त्रस्त Dehradun News
दून की मुख्य सड़कों पर आए दिन होने वाले जुलूस-प्रदर्शन और धार्मिक आयोजनों से विकट होती जा रही यातायात व्यवस्था से लोग त्रस्त हो चुके हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 20 Aug 2019 04:25 PM (IST)
देहरादून, सुमन सेमवाल। दून की मुख्य सड़कों पर आए दिन होने वाले जुलूस-प्रदर्शन और धार्मिक आयोजनों से विकट होती जा रही यातायात व्यवस्था से लोग त्रस्त हो चुके हैं। सरकार, शासन और प्रशासन से उम्मीद छोड़ चुके लोगों की आस अब सिर्फ न्यायालय पर टिक गई है। इस दिशा में देहरादून के जागरूक नागरिक विजय कुमार उनियाल पहल भी कर चुके हैं। उन्होंने पहले जिलाधिकारी कार्यालय से आरटीआइ में सड़कों पर हुए जुलूस-प्रदर्शन और धार्मिक आयोजनों की जानकारी मांगी और फिर एक आग्रह पत्र तैयार कर पूरा ब्योरा नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। यातायात सुधार की दिशा में की जा रही दैनिक जागरण की पहल से प्रभावित अब दून के अधिवक्ता अमित तोमर ने भी शहर के ज्वलंत मुद्दे पर जनहित याचिका दायर करने की तैयारी कर ली है। इसके अलावा भी दून के तमाम लोग दैनिक जागरण की ओर से उपलब्ध कराए गए मंच (सुझाव आमंत्रण) पर बेबाकी से अपनी राय रख रहे हैं कि मुख्य सड़कों पर किसी भी तरह के आयोजनों की अनुमति देना लाखों की आबादी के अधिकारों का हनन है। सरकार ने भले ही अभी इस दिशा में कोई निर्णय लेने का साहस न दिखाया हो, मगर लोगों को पूरी उम्मीद है कि न्यायालय इस अहम मसले पर कोई न कोई उचित आदेश जरूर जारी करेगा। क्योंकि दून की सड़कों पर अतिक्रमण हटाने का जो महाभियान पिछले साल के अंतिम महीनों में चलाया गया था, वह भी हाईकोर्ट के ही सख्त आदेश की देन है।
आरटीआइ: दून की सड़कों पर रोजाना सात से अधिक आयोजन
विजय कुमार उनियाल ने जिलाधिकारी कार्यालय से अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच दून की सड़कों पर जुलूस/रैली, प्रदर्शन व धार्मिक आयोजनों की जानकारी मांगी थी। कलक्ट्रेट के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी की तरफ से मुहैया कराई गई जानकारी में बताया गया कि इस एक साल की अवधि में 2642 आयोजनों को अनुमति प्रदान की गई। इस तरह देखें तो रोजाना सात से अधिक जुलूस-प्रदर्शन व धार्मिक आयोजन सड़कों पर किए गए। इसके बाद यही जानकारी विजय कुमार ने नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी। इसके साथ भेजे गए पत्र में उन्होंने कहा कि सड़कों पर हो रहे इस तरह के आयोजनों से स्कूली बच्चे समय पर अपने घर नहीं पहुंच पाते हैं और बीमार व घायल व्यक्तियों को अस्पताल पहुंचने में विलंब हो जाता है। कई दफा एंबुलेंस तक जाम में फंस जाती है। गर्मियों के समय लोगों को और भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसी तरह बस स्टैंड, एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन के लिए भी लोग लेट हो जाते हैं।
प्रशासन को अनुमति देने से मतलब, रिकॉर्ड तक दुरुस्त नहीं
आरटीआइ में विजय कुमार ने प्रशासन ने हर आयोजन का अलग-अलग ब्योरा मांगा था। जिस पर प्रशासन ने बताया कि इस कार्यालय में राजनीतिक, धार्मिक व अन्य प्रकार के जुलूस-प्रदर्शन का अलग-अलग ब्योरा नहीं है। महज एक ही डाक पंजिका रखी गई है, जिसमें सिर्फ अनुमति ही अंकित की जाती है। इसके साथ ही टका सा जवाब भी दे किया कि सिर्फ धारित सूचनाएं ही दी जा सकती हैं और सूचनाओं को अलग से गठित करने का नियम नहीं है। इस तरह की स्थिति यह भी बताती है कि प्रशासन का काम सिर्फ अनुमति देने तक सीमित है। यह जानने का प्रयास भी नहीं किया जाता है कि किस तरह के प्रदर्शन सड़कों पर अधिक हो रहे हैं। यह आंकड़ा तब रखा जाता है, जब कभी सुधार की कवायद की जा रही है। स्पष्ट है कि आज तक प्रशासन ने शहर के इस बढ़ते मर्ज की रोकथाम के प्रयास ही नहीं किए।
सिटी फीस से लग सकता है जलसे-जुलूसों पर अंकुश
सड़कों पर जलसों, जुलूस व शोभायात्राओं के नाम पर आए दिन लगने वाले जाम को लेकर दैनिक जागरण की इस मुहिम का मैं स्वागत करता हूं। सड़कों पर जलसे-जुलूसों और शोभायात्राओं से लगने वाले जाम की समस्या अब बेहद गंभीर हो चली है। गुजरते समय के साथ न सिर्फ इनकी संख्या बढ़ रही है, बल्कि इनका आकार भी लगातार बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में देहरादून जैसे शहर की जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है और इसी तेजी से सड़कों पर वाहनों की संख्या भी बढ़ी है। यानी जनसंख्या बढ़ोत्तरी के साथ ही शहर की सड़कों पर यातायात का दबाव भी बढ़ा है। ऐसे मौकों पर आमतौर पर प्रशासन और पुलिस द्वारा एडवाइजरी जारी करने अथवा रूट डायवर्ट करने के जो प्रयोग किए जाते रहे हैं, वे पूरी तरह फेल हो चुके हैं। अत: ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए नए और रचनात्मक प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है। पुरानी परंपरागत व्यवस्था की औपचारिकता पूरी करने के बजाए नए विकल्पों पर विचार नहीं किया गया तो आने वाले समय में समस्या और गंभीर हो जाएगी। जब भी सड़कों पर कोई जलसा, जुलूस अथवा शोभायात्रा निकलती है तो इसके दो तरह के नुकसान होते हैं। यातायात जाम और शोभायात्रा गुजरने के बाद सड़क पर फैला कचरा इसके तत्कालिक नुकसान हैं, जबकि वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ऐसा जख्म दे जाते हैं, जो तत्काल तो नजर नहीं आते, लेकिन इसके दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं। अनूप नौटियाल (अध्यक्ष, गति फाउंडेशन) का कहना है कि इस मामले में मैं अपनी तरफ से एक सुझाव देना चाहूंगा और वह सुझाव इस तरह के आयोजनों पर शुल्क लगाने का है। इसे हम सिटी फीस नाम दे सकते हैं। यह शुल्क सरकारी कार्यक्रमों को छोड़कर हर तरह के कार्मिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जलसे-जुलूसों पर लगाया जाने चाहिए। इस फीस में किसी तरह की छूट न दी जाए। जलसे के आकार के अनुसार इसकी फीस पांच हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक हो। इसमें 05 हजार रुपये, 10 हजार रुपये, 25 हजार रुपये, 50 हजार रुपये और 01 लाख रुपये के स्लैब बनाए जा सकते हैं। फीस निर्धारण और वसूली के लिए एक पांच सदस्यीय समिति गठित की जाए। समिति में एक सदस्य जिला प्रशासन का, एक पुलिस का, एक नगर निगम का और दो आम नागरिक हों, जिनमें एक स्त्री और एक पुरुष को शामिल किया जा सकता है। यह समिति दो साल के लिए गठित की जाए। 20 हजार से ज्यादा जलसे और जुलुस वाले उत्तराखंड प्रदेश के लिए सिटी फीस से 15 से 20 करोड़ रुये से ज्यादा का सालाना राजस्व प्राप्त होगा और इसका प्रयोग सड़क व यातायात सुधार के काम में लाया जा सकता है। मेरा मानना है कि इस तरह की सिटी फीस से पहला फायदा तो यह होगा कि अभी तक जिस तरह से कोई भी संगठन जुलूस आदि निकाल लेता है, फीस निर्धारित होने के बाद वैसा नहीं होगा और काफी संख्या में संगठन इस तरह के जलसे-जुलूस और शोभायात्राएं सड़कों पर निकालने को लेकर हतोत्साहित भी होंगे। इसके अलावा इससे एक अच्छी आय भी होगी, जिसे इन आयोजनों से हुए नुकसान की भरपाई में लगाया जा सकता है। यह भी पढ़ें: सड़कों पर आंदोलन में कार्मिक संगठन आगे, इससे जाम की स्थिति हो जाती विकट दूनवासियों के बोल
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- डॉ. केसी शर्मा (देहरादून निवासी) का कहना है कि सड़कों की मौजूदा चौड़ाई में सामान्यत: भी ट्रैफिक बामुश्किल चल पाता है। ऐसे में जुलूस-प्रदर्शन आदि से स्थिति और विकट हो जाती है। सरकार को इस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। इसके अलावा हमारे क्षेत्र आर्यनगर वाली गली के पास सड़क संकरी है और फुटपाथ भी नहीं हैं। इसके पास बिजली के दो खंभों ने भी सड़क को घेर रखा है। इनकी शिफ्टिंग कराई जानी चाहिए।
- विनोद जोशी (सामाजिक कार्यकर्ता) का कहना है कि अस्था और अपनी मांगों के नाम पर लाखों लोगों की राह रोकना कौन की आस्था और हक की लड़ाई है। इस बात को उन संगठनों को समझना चाहिए जो सड़कों पर आयोजन करते हैं। अब समय आ गया है कि सरकार नियमों के अनुसार ही आयोजनों को अनुमति प्रदान करे। इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में शहर की दशा बेहद खराब हो जाएगी।