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पर्याप्त बिजली के बावजूद उत्तराखंड में की जा रही कटौती, लोग परेशान

उत्तराखंड में पनबिजली परियोजनाओं से उत्पादन और तमाम स्रोतों से पर्याप्त बिजली का इंतजाम हो रहा है, लेकिन फिर भी अघोषित कटौती जारी है।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 28 Jun 2018 05:23 PM (IST)
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पर्याप्त बिजली के बावजूद उत्तराखंड में की जा रही कटौती, लोग परेशान
देहरादून, [जेएनएन]: सूबे की बिजली मांग लगातार नए रेकॉर्ड बना रही है। पनबिजली परियोजनाओं से उत्पादन और तमाम स्रोतों से पर्याप्त बिजली का इंतजाम हो रहा है, लेकिन फिर भी अघोषित कटौती जारी है। क्योंकि, एडवांस बैकिंग के करार के अनुरूप उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) पंजाब को बिजली दे रहा है, जिसके चलते प्रदेश में कटौती करनी पड़ रही है। 

पूरे मई माह में बिजली के दाम इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में अधिक रहे, जिसके चलते पर्याप्त बिजली यूपीसीएल को नहीं मिल सकी। जून में भी पिछले हफ्ते ऐसी ही स्थिति रही। पिछले हफ्ते के मुकाबले अब बाजार में भी दाम कम हुए और पनबिजली परियोजनाओं से भी उत्पादन बढ़ा है।

सोमवार की बात करें तो बिजली मांग 46.84 मिलियन यूनिट (एमयू) रही, जो अभी तक की सर्वाधिक है। जबकि, सभी स्रोतों से कुल 50 एमयू बिजल मिली। करीब पांच एमयू बिजली पंजाब को दी गई और प्रदेश में 1.57 एमयू की कमी रही। 

ऊर्जा निगम के मुख्य अभियंता एवं प्रवक्ता एके सिंह ने बताया कि सिर्फ औद्योगिक इकाइयों में ही कटौती की जा रही है। 16 जून से एडवांस बैकिंग शुरू की है। करीब पांच एमयू बिजली रोजाना दी जा रही है। रिटर्न बैंकिंग में सर्दियों में प्रदेश को 14 फीसद अधिक बिजली मिलेगी।

दून में भूमिगत बिजली लाइन 

दून के मुख्य मार्गों की सभी बिजली लाइनें भूमिगत करने और श्रीनगर-काशीपुर 400 केवी लाइन निर्माण को लेकर एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) देहरादून पहुंची है। उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) और पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) मुख्यालय में एडीबी अफसरों ने दोनों योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली। 

अब एडीबी के साउथ ईस्ट एशिया के निदेशक दून पहुंचेंगे। दोनों निगमों के अधिकारियों के साथ मुख्य सचिव व सचिव ऊर्जा के साथ भी बैठक प्रस्तावित है। 

उत्तराखंड के लिए दोनों ही परियोजना बेहद अहम हैं। अप्रैल में केंद्र सरकार की इकोनॉमिक अफेयर्स कमेटी इन्हें हरी झंडी दे चुकी है। दून में भूमिगत लाइनों पर करीब 500 करोड़ रुपये और 400 केवी श्रीनगर-काशीपुर लाइन निर्माण में करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। 80 फीसद पैसा एडीबी से मिलेगा। 

यूपीसीएल के निदेशक परियोजना एमके जैन ने बताया कि एडीबी अधिकारियों को बैठक में बताया गया कि योजना क्या रहेगी, कैसे-कैसे और किन इलाकों में लाइनें भूमिगत होंगी। एडीबी के विषय विशेषज्ञों ने कई सवाल भी किए, जिनका तथ्यों के साथ जवाब दिया गया। एडीबी का रुख सकारात्मक है। जल्द ही एडीबी से भी स्वीकृति की औपचारिकता पूरी हो जाएगी। इसके बाद काम शुरू करने की प्रक्रिया यूपीसीएल शुरू करेगा। 

एडीबी ने वापस ले लिया था पैसा 

400 केवी श्रीनगर-काशीपुर लाइन निर्माण के लिए वर्ष 2006-07 में लाइन निर्माण की कसरत शुरू हुई थी। इसके लिए एडीबी से ही अनुदान मिलता था। लेकिन, वर्ष 2017 तक विभिन्न कारणों से निर्माण शुरू नहीं हुआ और एडीबी ने पैसा वापस ले लिया था। क्योंकि,  मार्च 2017 तक काम पूरा होना था, लेकिन तब तक काम शुरू भी नहीं हुआ था। 

अब लाइन निर्माण की अनुमानित लागत 530 करोड़ से बढ़कर दोगुने से भी अधिक हो गई। एडीबी अधिकारियों ने लाइन निर्माण रूट से लेकर सर्वे आदि के बारे में विस्तार से जानकारी ली। 

नियमावली को लेकर शासन में बैठक 

अवर अभियंता की नियमावली को लेकर शासन में बैठक हुई। वर्ष 2015 में यूपीसीएल निदेशक मंडल की बैठक से प्रस्ताव शासन को प्रस्ताव भेजा गया था, तब से यह मसला लंबित है। नियमावली के विभिन्न बिंदुओं पर मंगलवार को हुई बैठक में चर्चा हुई। शासन ने कुछ बिंदुओं पर यूपीसीएल से जवाब मांगा है। 

इस संबंध में दोबारा बैठक होगी। बैठक में सचिव ऊर्जा राधिका झा, निदेशक मानव संसाधन पीसी ध्यानी, निदेशक वित्त एमएल वर्मा समेत तमाम अधिकारी मौजूद रहे। 

छुट्टी से लौटे महाप्रबंधक वित्त 

17 दिन की व्यक्तिगत विदेश यात्रा के बाद उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन  लिमिटेड (यूपीसीएल) के महाप्रबंधक (वित्त) इकबाल खान ने सोमवार को ज्वॉइन कर लिया है। लेकिन, उनके बिना किसी सक्षम अधिकारी को चार्ज दिए बगैर यात्रा पर जाने का मुद्दा शांत नहीं हुआ है। 

वहीं, सचिव ऊर्जा राधिका झा ने बताया कि वह छुट्टी पर थी तो उनके संज्ञान में यह मामला नहीं है। यूपीसीएल उच्चाधिकारियों से इस संबंध में जानकारी ली जाएगी। दरअसल, महाप्रबंधक वित्त सात जून को व्यक्तिगत विदेश यात्रा (लंदन व पेरिस) गए थे। यूपीसीएल प्रबंधन ने 17 दिन का अवकाश स्वीकृत किया था। लेकिन, इतने लंबे अवकाश के बाद भी महाप्रबंधक ने किसी को चार्ज नहीं दिया और न ही उच्चाधिकारियों ने उन्हें इस संबंध में निर्देशित किया। इससे वित्त से संबंधित कामकाज भी खासा प्रभावित रहा।

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