Reservation in promotion: मांगे पूरी होने पर ही कार्मिकों ने मनाई होली, जानिए कब क्या हुआ
पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने को कर्मचारियों ने इसे कार्मिक एकता की जीत बताते हुए जमकर जश्न मनाया। इस दौरान कार्मिकों ने परेड मैदान में ही होली खेली।
By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Updated: Thu, 19 Mar 2020 12:08 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। 16 दिन से हड़ताल पर डटे कार्मिकों के आगे आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने और पदोन्नति पर लगी रोक हटाने की मांग को सरकार ने मान लिया। इस पर कर्मचारियों ने इसे कार्मिक एकता की जीत बताते हुए जमकर जश्न मनाया। मांग माने जाने पर जनरल-ओबीसी वर्ग के कार्मिकों ने जमकर जश्न मनाया। इस दौरान कार्मिकों ने परेड मैदान में ही होली खेली। इससे पहले बीते 10 मार्च को हड़ताली कर्मचारियों ने होली का बहिष्कार किया था।
लंबे समय से हड़ताल पर बैठे कार्मिक बड़ी संख्या में परेड मैदान में पहुंचे और यहां धरना देने लगे। इसके बाद दोपहर को उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष दीपक जोशी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल की सीएम और मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह से वार्ता हुई। जिसमें मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने तीन मांगों पर सहमति जताई और अन्य पर विचार कर सकारात्मक कार्रवाई का आश्वासन दिया।
इसके बाद यह सूचना परेड मैदान में धरने पर बैठे कार्मिकों को मिली तो यहां खुशी की लहर दौड़ पड़ी। कर्मचारियों ने फूलमालाओं और नारों के साथ प्रतिनिधि मंडल का स्वागत किया। जिसके बाद दीपक जोशी ने हड़ताल स्थगित करने की घोषणा की। इसके बाद कर्मचारियों ने अध्यक्ष दीपक जोशी को कंधे में उठाकर खूब जश्न मनाया। बाद में कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मिलकर उनका आभार भी जताया।
विशेष अवकाश में तब्दील होगी हड़ताल की अवधि
कर्मचारी नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री से वार्ता में सहमति बनी कि कर्मचारियों को हड़ताल की अवधि का विशेष अवकाश दिया जाएगा। इसके अलावा कर्मचारियों पर दर्ज मुकदमे वापस होंगे। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उनके साथ कोई वादाखिलाफी की जाती है तो वे फिर आंदोलन शुरू कर देंगे।एकता बनाए रखने की अपील
राजकीय वाहन चालक महासंघ उत्तराखंड ने भी पदोन्नति में आरक्षण समाप्त किए जाने पर खुशी जताते हुए मुख्यमंत्री का आभार जताया है। संघ के अध्यक्ष अनंत राम शर्मा ने कहा कि महासंघ की ओर से जनरल ओबीसी वर्ग के कार्मिकों की हड़ताल को पूर्ण समर्थन दिया गया था। साथ ही आगामी 20 मार्च को चक्का जाम की भी चेतावनी दी गई थी। जिससे पहले ही सरकार ने मांगों पर सकारात्मक कार्रवाई कर दी। प्रदेश संरक्षक संदीप कुमार मौर्य ने जनरल-ओबीसी वर्ग के तमाम संगठनों को एकता बनाए रखने की अपील की। साथ ही आंदोलन के सफल होने पर बधाई भी दी।
जश्न में कोरोना संक्रमण का भी खौफ गायबपरेड मैदान में धरने पर डटे कार्मिक शासन की ओर से पदोन्नति में आरक्षण समाप्त किए जाने की खुशी में परेड मैदान में जश्न मनाने लगे। जश्न में कार्मिक यह भी भूल गए कि दुनियाभर में कोरोना का वायरस कहर बरपा रहा है। संक्रमण से बचने के लिए उत्तराखंड सरकार ने भी एक स्थान पर 50 से अधिक लोगों के एकत्रित होने पर पाबंदी लगा रखी है। ऐसे में परेड मैदान में हजारों की संख्या में जनरल-ओबीसी वर्ग के कार्मिकों ने कोरोना की फिक्र छोड़ खूब जश्न मनाया।
निष्ठा से करेंगे रुके कार्य जनरल-ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष दीपक जोशी के मुताबिक, ये लड़ाई और हमारी मांगे जायज थीं। जिसके आगे सरकार को झुकना ही पड़ा। यह कर्मचारी एकता की जीत है। पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री का आभार है। हालांकि, अन्य मांगों पर भी उन्होंने सकारात्मक पहल का आश्वासन दे दिया है। अब कर्मचारी हड़ताल के दौरान रुके कार्य को पूरी निष्ठा से पूरा करने का प्रयास करेंगे और प्रदेश के विकास में भागीदार बनेंगे।
सभी विभागों के जनरल-ओबीसी कार्मिकों की जीत जनरल-ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन के प्रांतीय महासचिव वीरेंद्र सिंह गुसाईं के अनुसार, यह सभी विभागों के जनरल-ओबीसी कार्मिकों की जीत है। हमारी लड़ाई व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि सामाजिक थी। यह अपने अधिकारों की लड़ाई थी, जिस पर सरकार ने सकारात्मक कदम उठाया है। हालांकि हड़ताल स्थगित हो गई है, लेकिन यदि कर्मचारियों के साथ किसी प्रकार की वादाखिलाफी की गई तो यह आंदोलन दोबारा भी शुरू किया जा सकता है।
सरकार का धन्यवाद उच्चाधिकार संयोजक मंडल के सदस्य ठाकुर प्रह्लाद सिंह का कहना है कि कर्मचारियों की मांगों पर उचित कदम उठाने पर सरकार का धन्यवाद। सरकार ने सही निर्णय लेकर प्रदेशभर के लोगों की भावना का मान रखा। यह जाति या वर्ग के खिलाफ लड़ाई नहीं थी बल्कि सिस्टम की खामियों के खिलाफ कर्मचारी एकजुट हुए। इस आंदोलन ने यह साबित किया कि हक की लड़ाई के लिए कर्मचारी सबकुछ त्यागने को तैयार हैं।
सरकार के निर्णय का स्वागत उच्चाधिकार संयोजक मंडल के सदस्य पूर्णानंद नौटियाल के मुताबिक, सरकार के इस निर्णय का स्वागत है। यह निर्णय पहले हो जाना चाहिए था। हड़ताल की आवश्यकता न पड़ती तो कई कार्य बाधित न होते। साथ ही कोरोना के प्रकोप के दौरान भी उन्हें हड़ताल को मजबूर होना पड़ा। लेकिन, अब भी सरकार ने यह निर्णय कर सराहनीय कदम उठाया है। प्रदेशभर के लाखों कार्मिकों के इस आंदोलन को सरकार के उचित कदम के बाद स्थगित कर दिया गया है।
एससी-एसटी कार्मिकों के प्रति गंभीर नहीं सरकार: करमरामसरकार ने दबाव में आकर एकतरफा फैसला लिया है। इससे स्पष्ट है कि सरकार एससी-एसटी वर्ग के कार्मिकों के प्रति गंभीर नहीं। यह बातें उत्तराखंड एससी-एसटी इंप्लाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करमराम ने सरकार के प्रति रोष जाहिर करते हुए की।जनरल-ओबीसी वर्ग कि कार्मिकों की लंबी हड़ताल के बाद बुधवार को शासन ने पदोन्नति में आरक्षण समाप्त कर पदोन्नति प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय ले लिया। जिस पर एससी-एसटी वर्ग ने आक्रोश जाहिर करते हुए निर्णय की निंदा की है। फेडरेशन के अध्यक्ष करमराम ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग का हमेशा से ही शोषण होता रहा है। वर्तमान में भी सरकार ने उनकी उपेक्षा कर उन्हें विश्वास में नहीं लिया और एकतरफा कार्रवाई कर दी।
आरोप लगाया कि सरकार ने उनका पक्ष जाने बगैर और उन्हें विश्वास में लिए बिना यह कार्रवाई की है, जो कि एससी-एसटी वर्ग के साथ धोखा है। उन्होंने चेतावनी दी कि उन्हें एससी-एसटी वर्ग की उपेक्षा का खामियाजा उन्हें भविष्य में उठाना होगा।ईमानदारी से कार्य करने का मिला तोहफाएससी-एसटी कार्मिकों ने बैठक आयोजित कर सरकार के निर्णय की निंदा की। उनका कहना है कि अभी तक उन्हें सरकार पर न्याय का भरोसा था, लेकिन उन्हें सरकार से धोखा मिला है। फेडरेशन के अध्यक्ष करमराम ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के कार्मिकों ने हमेशा ईमानदारी से कार्य किया।पिछले कुछ समय से जनरल-ओबीसी वर्ग के कार्मिकों की हड़ताल के दौरान भी उन्होंने पूरी निष्ठा से कार्य किया और सरकार ने उन्हें यह ईनाम दिया। बैठक में फेडरेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रणवीर सिंह तोमर, महासचिव हीरा सिंह, उपाध्यक्ष चंद्रशेखर, कोषाध्यक्ष मटन लाल, शिवलाल, गौतम आदि शामिल थे।सरकार का पुतला फूंकाउत्तराखंड एससी-एसटी इंप्लाइज फेडरेशन ने पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने पर सरकार का पुतला फूंककर विरोध जताया। फेडरेशन के अध्यक्ष करमराम के नेतृत्व में बड़ी संख्या में एससी-एसटी वर्ग के कर्मचारी लैंसडौन चौक पहुंचे। जहां उन्होंने सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए पुतला दहन किया। इसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल एसएसपी कार्यालय पहुंचा। जहां उन्होंने डीआइजी अरुण मोहन जोशी से मुलाकात कर जनरल ओबीसी वर्ग के कर्मचारी नेता दीपक जोशी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उनका आरोप है कि दीपक जोशी ने एससी-एसटी वर्ग के कार्मिकों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। साथ ही उनके खिलाफ अनर्गल बयानबाजी का भी आरोप लगाया।39 दिन के संघर्ष के बाद हुई कार्मिकों की जीतजनरल-ओबीसी वर्ग के कार्मिकों को पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ जीत के लिए 39 दिन तक संघर्ष करना पड़ा। इसमें से 22 दिन तो कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री आवास व और सचिवालय कूच कर सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की, लेकिन जब इससे बात नहीं बनी तो वह दो मार्च से बेमियादी हड़ताल पर चले गए। 17 दिन की कलमबंद हड़ताल के बाद आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और बिना आरक्षण पदोन्नति को बहाल करना पड़ा। इसे लेकर कर्मचारियों की खुशी की कोई सीमा नहीं है। देहरादून से लेकर प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में जनरल ओबीसी कार्मिकों ने होली-दीवाली एक साथ मनाई।पदोन्नति में आरक्षण का सफर- साल 2010 में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने पदोन्नति में लागू आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।- दो साल बाद 10 जुलाई 2012 को विनोद प्रकाश नौटियाल बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में हाईकोर्ट से फैसला आया। जिसमें पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी गई।- पांच सितंबर 2012 को सरकार ने शासनादेश निकाल कर नई व्यवस्था प्रदेश में लागू करते हुए पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर दिया।- मार्च 2019 में एक कर्मचारी ज्ञानचंद्र ने राज्य में लागू नई व्यवस्था के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की।- 31 मार्च 2019 तक पदोन्नति में आरक्षण नहीं मिलने की व्यवस्था लागू रही।- एक अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने सरकार के साल 2012 में लागू शासन आदेश को समाप्त कर दिया।- हाईकोर्ट के शासनादेश को समाप्त करने के बाद प्रदेश में पदोन्नति पर भी रोक लग गई।- मई 2019 में विनोद प्रकाश नौटियाल समेत अन्य कर्मचारी प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट में शासनादेश को समाप्त करने पर रिव्यू लगाई।- 15 नवंबर 2019 को हाईकोर्ट ने अपने ही फैसले में संशोधन करते हुए सरकार से पिछड़े जनों, उनके प्रतिनिधियों समेत अन्य कई विषयों पर पिछड़े वर्गों का क्वांटीफाएबल (मात्रात्मक) डाटा तलब किया। हाईकोर्ट ने सरकार को इसके लिए चार महीने का समय दिया।- विनोद प्रकाश नौटियाल समेत अन्य कर्मचारी प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट के आंशिक फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया।- प्रदेश सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज किया। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पिछड़े वर्ग का क्वांटिफाएबल डाटा सार्वजनिक करना या किसी को उपलब्ध करना केवल सरकार की मर्जी होती है। इसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।- 15 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख दिया।- सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सार्वजनिक करते हुए कहा कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। आरक्षण देना या न देने पर राज्य सरकार को फैसला लेना हो।यह भी पढ़ें: Reservation in promotion: उत्तराखंड में 30 हजार पदों पर भर्ती का रास्ता साफसुप्रीम कोर्ट के फैसले बाद का आंदोलन07 फरवरी : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जनरल ओबीसी कार्मिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। 09 फरवरी : कर्मचारियों को आभास हो गया कि सरकार एससी-एसटी वर्ग के कार्मिकों को नाराज नहीं करना चाहती। 10 फरवरी : राहुल गांधी के बयान पर कर्मचारियों का आक्रोश बढ़ गया और आपात बैठक बुलाई।12 फरवरी : कर्मचारियों ने कांग्रेस मुख्यालय कूच कर राहुल गांधी का पुतला फूंका। 14 फरवरी : प्रदेश भर के करीब डेढ़ लाख जनरल ओबीसी कर्मचारी सामूहिक कार्य बहिष्कार पर रहे।20 फरवरी : कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री आवास कूच कर दो मार्च से हड़ताल की घोषणा कर दी।22 फरवरी : दिल्ली में देश के कई राज्यों के कर्मचारी नेताओं की बैठक हुई, जिसमें आंदोलन को देशव्यापी बनाने की रणनीति तय हुई।27 फरवरी : शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कर्मचारी संगठनों को वार्ता के लिए बुलाया। वार्ता बेनतीजा रही।28 फरवरी : जनरल ओबीसी कर्मचारियों के गैरसैंण सत्र के बहिष्कार की चेतावनी पर हरकत में आया शासन। कर्मचारियों की छुट्टियों पर रोक लगा दी।02 मार्च : बेमियादी हड़ताल शुरू होने से कुछ ही घंटे पहले सरकार ने नो वर्क नो पे का आदेश जारी कर दिया। फिर भी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए।03 मार्च : कार्मिकों ने गैरसैंण विधानसभा का घेराव किया। 200 कर्मचारी गिरफ्तार किए गए।10 मार्च: सरकार के अडिय़ल रुख के विरोध में जनरल ओबीसी कार्मिकों ने होली नहीं मनाई। 15 मार्च : कार्मिकों ने देहरादून समेत पूरे प्रदेश में बाइक रैली निकाली।16 मार्च : परेड ग्राउंड में खेल परिसर में बिना अनुमति धरना देने के मामले में मुकदमा दर्ज17 मार्च : कर्मचारियों पर कोषागार कर्मी से मारपीट और महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया। इसके बाद भी कर्मचारी आंदोलन पर डटे रहे।18 मार्च : परेड ग्राउंड खेल परिसर में पुलिस तैनात कर दी गई। जिस पर कर्मचारी मुख्य ग्राउंड में जुटे और सभा शुरू कर दी।यह भी पढ़ें: Coronavirus: मसूरी के बोर्डिंग स्कूलों के पांच छात्र संदिग्ध, पांचों विदेश से लौटे; अस्पताल में भर्ती
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