उत्तराखंड: फार्मा उद्योग को चीन ने दिया झटका, कच्चे माल की कीमत बढ़ने से दवा उत्पादन 30 फीसद तक गिरा
दवा उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआइ) यानी कच्चे माल की कीमत में चीन ने एकाएक दो से चार गुना तक बढ़ोत्तरी कर दी है। इससे उत्तराखंड की भी 100 से अधिक फार्मा इकाइयों को झटका लगा है।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 15 May 2021 11:05 PM (IST)
अशोक केडियाल, देहरादून। दवा उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआइ) यानी कच्चे माल की कीमत में चीन ने एकाएक दो से चार गुना तक बढ़ोत्तरी कर दी है। इससे उत्तराखंड की भी 100 से अधिक फार्मा इकाइयों को झटका लगा है। इनमें वे दवा भी हैं, जो कोरोना संक्रमण से उबरने में बेहद कारगर साबित हो रही हैं।
चीन ने भारत की दवा उत्पादन करने वाली फार्मा इकाइयों के साथ पूर्व में हुए कच्चे माल के आयात के सालाना एग्रीमेंट को भी रद कर दिया है। अब उसने इन फार्मा इकाइयों से नई दरों पर कच्चा माल खरीदने के लिए कहा है। इससे प्रदेश में दवा का उत्पादन 20 से 30 फीसद तक गिर गया है। भविष्य में इसके और ज्यादा प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में दवा उत्पादन से जुड़े कारोबारियों ने देश में कच्चे माल के उत्पादन को बढ़ावा देने पर बल दिया है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में चीन पर निर्भरता खत्म कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ना होगा।
उत्तराखंड फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने बताया कि देश में दवा उत्पादन के लिए 70 फीसद कच्चा माल चीन से आता है। इसके लिए प्रदेश की कुछ बड़ी फार्मा इकाइयां चीन से कच्चे माल की आपूर्ति दिल्ली व मुंबई के बड़े थोक कारोबारी के माध्यम से करते हैं। फार्मा कंपनी व कारोबारियों के बीच सालाना एग्रीमेंट होता हैं। बड़े थोक कारोबारियों ने इस एग्रीमेंट को रद कर दिया है और पुरानी दरों पर उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को एपीआइ देने से हाथ खड़े कर दिए हैं।
चीन की तरफ से एक अप्रैल को कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी किए जाने के बाद दवा उत्पादन की लागत बढ़ गई है। उदाहरण के लिए एजिथ्रोमाइसिन के निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल की कीमत पहले करीब आठ हजार रुपये प्रति किलो थी, जिसे अब चीन ने बढ़ाकर साढ़े 14 हजार रुपये प्रति किलो कर दिया है। इसी तरह पैरासिटामॉल के निर्माण के लिए कच्चा माल अब 350 रुपये प्रति किलो के बजाय 950 रुपये की दर से मिलेगा।
शर्मा ने बताया कि उत्तराखंड की अधिकतर फार्मा कंपनियों ने कीमत बढ़ने के बाद कच्चे माल की खरीद कम कर दी है। इससे दवा के उत्पादन में 20 से 30 फीसद तक कमी आयी है। कंपनियों के पास दो से तीन महीने के लिए कच्चा माल स्टॉक में रहता है, लेकिन, भविष्य में संकट और गहरा सकता है।
कोरोना की दवा पर भी पड़ा असर उत्तराखंड फार्मासूटिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने बताया कि चीन ने कोविड संक्रमण में प्रयुक्त होने वाली दवा के एपीआइ दरों में तीन से चार गुना व नॉन कोविड के एपीआइ में एक से दो गुना की वृद्धि हुई है। जैसे कोविड रोगी को दी जाने वाली आइवरमेक्टिन दवा से संबंधित कच्चा माल पहले 15 हजार रुपए किलो मिलता था जिसे बढ़ाकर अब 70 हजार रुपये किलो कर दिया गया है।
प्रदेश में 600 से अधिक फार्मा इकाइयांउत्तराखंड में फार्मास्युटिकल की 283 और कॉस्मेटिक की 327 उत्पादन इकाइयां हैं। इनमें हर वर्ष करीब 1800 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इन इकाइयों में हर वर्ष 3200 कुंतल एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट की खपत होती है। इंडियन इंडस्ट्री ऑफ उत्तराखंड के चैयरमेन राकेश भाटिया ने बताया कि दवा उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल का देश में बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू करने की जरूरत है। जब तक कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भरता रहेगी, तब तक यही स्थिति बनी रहेगी। भारत बेशक दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है, लेकिन कच्चे माल की 70 फीसद आपूर्ति के लिए आज भी हम चीन पर निर्भर हैं।
इंडस्ट्री एसोसिशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने कहा कि देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण चीन समेत कई देशों ने अपने यहां की हवाई सेवाओं को भारत के लिए फिलहाल स्थगित कर रखा है। ऐसे में चीन से कच्चे माल की आपूर्ति पिछले एक माह से ठप है। इससे आने वाले दिनों में दवा उत्पादन में कमी आ सकती है।वहीं, सीआइआइ उत्तराखंड के अशोक विंडलास का कहना है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर और कच्चे माल की बढ़ी हुई दरों के कारण चीन से सभी तरह के कच्चे माल का आयात लगभग ठप है। इससे दवा उत्पादन में कुछ कमी आई है, लेकिन भारी किल्लत जैसी बात नहीं है। फिलहाल फार्मा के लिए कच्चा माल मुंबई और गुजरात से प्राप्त हो रहा है। निकट भविष्य में किल्लत बढ़ सकती है।
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