तीर्थ पुरोहितों और पंडा समाज ने ब्रह्म मुहूर्त में घरों में की भगवान बदरीनाथ की पूजा
वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के ब्रह्म मुहूर्त में तीर्थ पुरोहितों और पंडा समाज ने घरों में ही भगवान की पूजा की।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 01 May 2020 03:13 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के ब्रह्म मुहूर्त में तीर्थ पुरोहितों और पंडा समाज ने घरों में ही भगवान की पूजा की। कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन के चलते बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने का सयम परिवर्तित हो गया। लेकिन, तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज ने परंपराओं के अनुसार सप्तमी तिथि को ही घरों में भगवान बदरीनाथ की पूजना-अर्चना की और हवन किया।
देवभूमि तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत के प्रवक्ता डॉ. बृजेश सती ने फोन पर बताया कि हिंदुओं की आस्था के केंद्र भगवान बदरीनाथ के कपाट हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सर्वार्थ सिद्धि योग एवं अमृत सिद्धि योग ब्रह्म मुहूर्त में खोले जाते हैं। लेकिन इस वर्ष कपाट की तिथि में बदलाव कर दिया गया। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को बनाए रखने के लिए देवभूमि तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत ने निर्णय लिया था कि पूर्व मुहूर्त के अनुसार ही सभी तीर्थ पुरोहित, हक-हकूकधारी व पंडा समाज के लोग भगवान नारायण का पूजन, हवन एवं विष्णु सहस्रनाम पाठ अपने-अपने घरों में करेंगे। इस अवसर पर भगवान नारायण से क्षमा याचना भी की गई और देश के सभी नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए मंगल कामना की गई। महा पंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल के दिशा-निर्देशन में महापंचायत से जुड़ी हुई डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत, ब्रह्म कपाल तीर्थ पुरोहित पंचायत, बदरीश पंडा पंचायत देवप्रयाग एवं बदरीनाथ धाम से जुड़ी परंपरा के लोग इसमें शामिल हुए।
16 मई तक चलेगा भगवान गोपीनाथ का चंदन लेप
अक्षय तृतीया से शुरू हुई चंदन यात्रा के तहत डीएल रोड स्थित चैतन्य गौड़ीय मठ में हर दिन दोपहर को भगवान गोपीनाथ का चंदन से लेप किया जा रहा है। मठ रक्षक त्रिदंडी त्यागी प्रसन्न महाराज ने बताया कि भगवान गोपीनाथ की सेवाभाव के साथ पूजा की जाती है। धूप में दोपहर के समय उनका लेप किया जाता है। मान्यता है कि 21 दिन तक लेप करने से तपिश दूर होती है। बताया कि हर साल झांकियां निकाली जाती थीं, लेकिन लॉकडाउन के चलते इस बार मठ में ही सादगी के साथ पूजा की जा रही है। 21 दिनों तक चलने वाली पूजा 16 मई तक चलेगी।
तेल कलश यात्रा संग पहुंच सकते हैं रावल
नई तिथि 15 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इन दिनों मजदूर यात्री पथ की मरम्मत में जुटे हुए हैं। पांच मई को टिहरी के नरेंद्रनगर राजमहल से गाडू घड़ा (तेल कलश) यात्रा ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करेगी। ऋषिकेश में होम क्वारंटाइन में मौजूद बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी के भी यात्रा के साथ 12 मई को जोशीमठ आने की उम्मीद है। यात्रा में चुनिंदा लोग ही शामिल होंगे।
धाम में यात्रा व्यवस्थाएं बनाने में देवस्थानम बोर्ड के कर्मचारी जुटे हुए हैं। बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ बताते हैं कि छह मई को तेल कलश चमोली जिले के डिम्मर गांव स्थित लक्ष्मी-नारायण मंदिर पहुंचेगा। यहां से 12 मई को उसे जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर ले जाया जाएगा। 13 मई को नृसिंह मंदिर से कलश यात्रा के साथ आदि शंकराचार्य की गद्दी भी योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर के लिए रवाना होगी। 14 मई गद्दी व तेल कलश यात्रा भगवान नारायण के बालसखा उद्धवजी व देवताओं के खजांची कुबेरजी की डोली के साथ बदरीनाथ धाम पहुंचेगी। डॉ. गौड़ ने बताया कि बीते वर्षों में यात्रा पूजा-अर्चना के बाद आगे बढ़ती थी। लेकिन, इस बार बेहद सादगी से यात्रा निकलेगी।
कपाट खोलने की तिथि परिवर्तित करना परंपराओं का उल्लंघन ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अभिमुक्तेश्वरानंद ने बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि परिवर्तित किए जाने को परंपराओं का उल्लंघन बताया है। कहा कि परंपरा के अनुसार गुरुवार को मंदिर के कपाट खुल गए हैं, ऐसा मानकर सभी सनातनी भगवान बदरी नारायण की मानसिक पूजा कर रहे हैं। स्वामी अभिमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि सनातनी परंपरा में हरि और हर (भगवान विष्णु और भगवान शिव) में कोई भेद नहीं माना गया है।
यह भी पढ़ें: बदरीनाथ धाम में ऑनलाइन हो रही पूजाओं की बुकिंग, अब तक हो चुकी 10 लाख रुपये की बुकिंगइसलिए हम शिव के दर्शन करते हैं तो विष्णु और विष्णु के दर्शन करते हैं शिव के दर्शन स्वाभाविक रूप से हो जाते हैं। जब कोई भक्त भगवान बदरी विशाल के दर्शनों को जाता है तो पहले बाबा केदार के दर्शन करता है। इसलिए बदरी-केदार में कोई भेद नहीं है और न उन्हें एक-दूसरे से अलग किया जा सकता है। शंकराचार्य के शिष्य ने कहा कि वसंत पंचमी को ही तय हो गया था कि बैसाख शुक्ल सप्तमी को ब्रह्ममुहूर्त में बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे। लेकिन, सरकार ने इस तिथि में बदलाव कर परंपरा को खंडित किया है। जबकि, हर रूप में श्रीहरि केदारनाथ में विराजमान हो गए हैं।
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