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Pitru Paksha 2020: पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है श्राद्ध, यहां पढ़ें किस तारीख कौन सा श्राध

Pitru Paksha 2020 श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है। इस दौरान पितरों के निमित्त ही कार्य होते हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 01 Sep 2020 02:50 PM (IST)
Pitru Paksha 2020: पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है श्राद्ध, यहां पढ़ें किस तारीख कौन सा श्राध
देहरादून, जेएनएन। पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक श्राद्ध पक्ष आज यानी मंगलवार से शुरू हो रहे हैं। इस दौरान पितरों के निमित्त ही कार्य ही होते हैं। किसी भी तरह का शुभ कार्य विवाह, मुंडन, ग्रह प्रवेश आदि वर्जित रहेंगे। भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की सर्वपितृ अमावस्या तक 16 दिन श्राद्ध पक्ष चलता है।

मान्यतानुसार, पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव दिखाने का समय होता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण और पिंडदान का महत्व है। मान्यता है कि श्रद्ध पक्ष में पितृ पितृलोक से किसी न किसी रूप में अपने स्वजनों से मिलने के लिए धरती पर आते हैं और स्वजनों के द्वारा भोजन व भाव ग्रहण करते हैं। पंडित सुभाष जोशी के मुताबिक, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में हमारे पितृ यमराज की आज्ञानुसार सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर आते हैं और हमारी ओर से दिए श्रद्ध, भोजन, तर्पण आदि ग्रहण करते हैं, जिससे उन्हें संतुष्टि प्राप्त होती है। 

उन्होंने बताया कि एक सितंबर सुबह नौ बजकर 50 मिनट पर तिथि प्रारंभ होगी, ऐसे में पूर्णिमा का श्राद्ध एक सितंबर से माना जाएगा, जो अगले दिन दो सितंबर सुबह 10 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। प्रतिपदा का श्राद्ध दो सितंबर 10:53 बजे के बाद से माना जाएगा, जबकि पितृ विसर्जन 17 सितंबर को होगा। 

जानिए कब कौन सा श्राध 

दो सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध

तीन सितंबर- प्रतिपदा 

चार सितंबर- द्वितीया

पांच सितंबर- तृतीया

छह सितंबर- चतुर्थी

सात सितंबर- पंचमी, महा भरणी

आठ सितंबर- षष्ठी

नौ सितंबर- सप्तमी 

10 सितंबर- अष्टमी 

11 सितंबर- नवमी

12 सितंबर- दशमी 

13 सितंबर-एकादशी, द्वादशी

14 सितंबर- त्रयोदशी 

15 सितंबर चतुर्दशी, मघा श्राद्ध

16 सितंबर- सर्वपितृ अमावस्या

17 सितंबर- मातमाह श्राद्ध

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क्या है श्राद्ध 

श्राद्ध पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने और उन्हें याद करने के निमित्त किए जाने वाला कार्य है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज हैं, जिनसे गुण और कौशल हमें विरासत में मिलें हैं उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण है। वो हमारे पूर्वज पूजनीय हैं। माता और पिता दोनों का श्राद्ध उनके देहांत के दिन हिंदू पंचांग के अनुसार किया जाता है। इसके अलावा प्रतिवर्ष श्राद्ध पक्ष (या पितृपक्ष में सभी पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है। 'पितर' का मतलब माता-पिता, नाना-नानी, दादी-दादी, और उनके पहले से सभी पूर्वज हैं।

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