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उत्तराखंड में शिक्षा पर सियासत, दांव पर लगाई गुणवत्ता

एक ही साल में 200 अशासकीय स्कूलों को सरकारी अनुदान के दायरे में ले लिया गया। इस दांव से शिक्षा की गुणवत्ता और सरकारी खजाना दोनों चित हैं।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Updated: Thu, 19 Mar 2020 02:01 PM (IST)
उत्तराखंड में शिक्षा पर सियासत, दांव पर लगाई गुणवत्ता
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। छोटा सूबा और इस पर हावी सबकी अपनी अलग-अलग हसरतें। हसरतें भी ऐसी कि हर एक पर दम निकल जाए। हर जिले में विधायकों और रसूखदारों ने दम लगाया। नतीजा आया और एक ही साल में 200 अशासकीय स्कूलों को सरकारी अनुदान के दायरे में ले लिया गया। वर्ष 2014 में अनुदान पाने वाले इन स्कूलों की बांछें खिल गईं।

बताया गया कि जगह-जगह खोले गए ये अशासकीय स्कूल सियासतदां के चुनाव क्षेत्रों में हैं। शिक्षा पर सियासत का नायाब नमूना। कदम यहीं नहीं रुके। दो साल बाद ही एक नया साल आ गया और दनादन 182 सरकारी स्कूलों का हो गया उच्चीकरण। 

गांवों और पंचायतों की सियासत के बीच माननीयों में होड़ ऐसी मची कि आव देखा न ताव, जगह देखी न जमीन, और न ही देखी जरूरत। सत्ता ने लगाया दांव। सियासी जमीन पर खेले गए इस दांव से शिक्षा की गुणवत्ता और सरकारी खजाना दोनों चित हैं। 

ये कैसी पारदर्शिता

तकनीकी विश्वविद्यालय सरकारी है तो जाहिर है कि इसके प्रति सरकार उदार होगी ही। उदारता का आलम ये है कि विश्वविद्यालय में मनमाफिक अंदाज में नियम किनारे किए गए और धड़ल्ले से कर दीं नियुक्तियां। परीक्षा नियंत्रक और उपकुलसचिव जैसे अहम पदों पर आउटसोर्सिंग से चहेतों को टिकाया गया। बाद में जमकर किरकिरी के बाद इन्हें हटाया जा सका।

राजभवन और शिक्षाविदों ने जोर दिया कि विश्वविद्यालयों में शोध और गुणवत्ता को तरजीह दो। तंत्र की ईमानदारी देखिए, विश्वविद्यालय ने पीएचडी करने और कराने के नाम पर कई गुल खिला दिए। राजभवन खफा। रिमाइंडर भेजे तो शासन फजीहत के साथ जांच को तैयार हुआ। 

पहले एसआइटी जांच की बात हुई। फिर चुपके से विजिलेंस जांच की फाइल चली। फाइल इतने गुपचुप तरीके से आगे बढ़ी कि राजभवन भी हैरान है। जब फाइल के ये हाल है तो जांच का क्या होगा, तंत्र की ये पारदर्शिता कायल किए दे रही है। 

इशारे की बात

शिक्षा महकमे में अदालती मामलों का अंबार लगा है। हालत ये है कि महकमे से लेकर शासन के आला अधिकारियों को अदालतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। अदालतों में ऐसे-ऐसे मामले हैं, जिन्हें देखकर सिर चकरा जाए। सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षकों को भी बकाया भुगतान के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ रही है। 

विभागीय अधिकारियों की सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं दिखता। ऊधमसिंहनगर जिले के एक सेवानिवृत्त शिक्षक का सेवानिवृत्ति की बकाया धनराशि देने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए। मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी आर्य इसका पालन करना भूल गए। हाईकोर्ट ने इसे अवमानना माना, शिक्षा सचिव को तलब कर सख्त टिप्पणी की। 

खफा सचिव ने मुख्य शिक्षाधिकारी को निलंबित करने के आदेश जारी किए। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के गृह जनपद का मामला। मंत्री ने इशारा किया तो निलंबन पर फिलहाल रोक लग गई। अधिकारी अब हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने को दौड़-भाग कर रहे हैं। 

स्कूलों की हनक

देहरादून की पहचान बासमती और लीची से तो है ही, साथ में दून स्कूल और वेल्हम गल्र्स स्कूल जैसे नामचीन स्कूलों की बदौलत भी एक विशिष्ट पहचान है। उक्त स्कूलों के साथ ही दून और उसके आंचल में पसरे अन्य अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की भी पूरी हनक है। विभिन्न राज्यों के बच्चों की अच्छी तादाद है जो दून में शिक्षा के लिए इन स्कूलों के शरणागत हैं।

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राजनेताओं से लेकर नौकरशाहों की लंबी फौज स्कूलों में बच्चों के दाखिले को लेकर हर साल कतार में दिखती है। आश्चर्य तब होता है जब ये स्कूल अपनी ठनक में सरकार के फरमान को ताक पर रख देते हैं। कोरोना के कहर से डरी-सहमी राज्य सरकार ने फरमान सुनाया कि 31 मार्च तक सभी स्कूल बंद रहेंगे। कक्षा एक से आठवीं तक बच्चों की परीक्षाएं नहीं होंगी। स्कूलों ने पहले ये फरमान नहीं माना। माने तब ही, जब डीएम साहब ने चाबी घुमाई। 

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