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उत्तराखंड की शिक्षण संस्थाओं में मोबाइल फोन पर सियासत

उत्तराखंड में मंत्री धन सिंह जी की मासूम जिद यही है कि सूरत बदलनी चाहिए। इसीलिए कह दिया मोबाइल फोन पर पाबंदी लगनी चाहिए। इससे छात्रों में बवाल हो गया।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 16 Jan 2020 01:14 PM (IST)
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उत्तराखंड की शिक्षण संस्थाओं में मोबाइल फोन पर सियासत
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। पूरे देश में विश्वविद्यालयों में हो-हल्ला मचा है। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विश्वविद्यालय जंग का मैदान बने हैं। सूबे में हालात ऐसे नहीं हैं। सेमेस्टर रहे या न रहे, विश्वविद्यालयों के केंद्र में यही सात्विक चर्चा है। 

सवाल उच्च शिक्षा की गुणवत्ता है। मंत्री धन सिंह जी मासूम, जिद यही है कि सूरत बदलनी चाहिए। इसीलिए कह दिया, मोबाइल फोन पर पाबंदी लगनी चाहिए। फूस में आग। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शक-सुबह का माहौल पहले ही कुछ कम नहीं है। रही सही कसर मासूमियत भरे अंदाज ने पूरी कर दी। अब आग बुझाए नहीं बुझ रही। 

मंत्री जी फिर कह रहे हैं, मोबाइल फोन बैन करने को कहा, लेकिन साथ में ये भी कहा कि कैंपस में नहीं, कक्षाओं में होना चाहिए। खामख्वाह, फैला दिया। आखिर पूरी बात तो सुननी चाहिए। याद आ गया महाभारत, अश्वत्थामा हतो हत:.। समझ में नहीं आया तो यही कि शंख किसने फूंका।

भक्तों पर बरसी कृपा

भक्ति की जाए और वह भी पूरी शक्ति से तो कृपा बरसेगी ही। सूबे के सबसे बड़े महकमे में इन दिनों खूब कृपा बरस रही है। विभाग के मुखिया हों या प्रदेश के मुखिया, सब भक्ति की शक्ति के अधीन हैं। सूबे की सियासत के सबसे चर्चित जिले और धर्म की नगरी में तैनाती चाहिए तो भक्त होना जरूरी है। साहब में यही गुण भरपूर हैं। चर्चा में रहने का पुराना शौक, गाहे-बगाहे ढिलाई के आरोप में निलंबन और भी न जाने क्या-क्या प्रोफाइल में शामिल हैं। 

किस्मत का फेर देखिए, विभाग के मुखिया के बड़े भक्त ने दांव मारा, ब्रहमपाल सैनी चारों खाने चित। रिटायरमेंट से थोड़ी दूर खड़ी नौकरी लेकर जिले से बाहर। पेशे पर टूट पड़ा मुसीबतों का पहाड़। पेशा भले ही सरकारी हो, लेकिन सवाल तो धंधा मंदा होने का है। लिहाजा कुछ दिन भक्ति में पूरे लीन, फिर संघं शरणम गच्छामि। यकीन मानिए साहब तर गए।

गठरी में लागा चोर

आखिरकार उच्च शिक्षा में लंबे समय से पसरा सूनापन अब नई उम्मीदों से भर उठा है। स्कूली शिक्षा में उत्कृष्ट यानी राष्ट्रपति और राज्य पुरस्कारों से लैस उत्कृष्ट शिक्षकों की बड़ी फौज है। वहीं उच्च शिक्षा में अब तक ढूंढे नहीं मिल रहे थे उत्कृष्ट शिक्षक। अब सिर्फ देखने की जरूरत होगी और पुरस्कार आकांक्षी कतार में लगे दिखाई देंगे। 

जितनी ऊंची शिक्षा, उतनी ही ऊंची सियासत। कमाल देखिए, पुरस्कार के लिए ऐसी विभूति तलाश की कि सामने वाली पार्टी तब से मुंह तके जा रही है। पहले ही आरोप लगे थे, पटेल चुरा लिए, शास्त्री चुरा लिए और भी न जाने क्या-क्या। चुराने वाले प्रचंड बहुमत की अलमस्ती में पुरानी पार्टी की बड़ी पोटली खंगालकर नेहरू, शास्त्री और इंदिरा की केंद्रीय सरकारों की विभूति और स्वतंत्रता सेनानी रहे भक्तदर्शन के नाम को ले उड़े। अब उच्च शिक्षा गौरव पुरस्कार उनके नाम पर सुशोभित है। तेरी गठरी में लागा चोर....।

स्मार्ट वीसी की दरकार

सरकार की मेहरबानी से अब राज्य में विश्वविद्यालयों की भरमार है। अब तो सरकारी विश्वविद्यालय भी जगह-जगह हैं। कमी खलती है तो यही, इनमें एक भी स्मार्ट नहीं है। कुलाधिपति चाहती हैं कि विश्वविद्यालय स्मार्ट बनें। देश-दुनिया में नाम कमाएं। फरमान थमा दिया कि हर विश्वविद्यालय एक-एक स्मार्ट गांव विकसित करे।

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विश्वविद्यालय जिन स्मार्ट गांवों को तैयार करेंगे, कुलाधिपति खुद उनका मुआयना भी करेंगी। स्मार्ट बनने-बनाने की इस चुनौती से जूझने को स्मार्ट कुलपति चाहिए। गौर फरमाएंगे तो राज्य में एक भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं, जिसमें डिग्री या योग्यता या कार्यप्रणाली को लेकर कुलपति निशाने पर न हो। सर्च कमेटियां सिर जोड़कर जिन योग्यताधारियों को तलाश कर रही हैं, उनके काम संभालने से पहले ही विवाद दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। अब तक सरकार बनाम विश्वविद्यालय, कुलपति बनाम कुलसचिव की जंग में कई कुलपति कुर्बान हो चुके हैं। कुलसचिव सरकार की शह पर ताव खा और खिला रहे हैं।

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