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Coronavirus: कोरोना के बढ़ते मामलों को देख उत्तराखंड में शुरू हुई पूल टेस्टिंग

उत्तराखंड में बढ़ते मामलों को देखते हुए अब कोरोना के संदिग्ध मरीजों की पूल टेस्टिंग का निर्णय लिया गया है। दून मेडिकल कॉलेज में पूल टेस्टिंग शुरू कर दी गई।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Updated: Wed, 20 May 2020 07:44 AM (IST)
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Coronavirus: कोरोना के बढ़ते मामलों को देख उत्तराखंड में शुरू हुई पूल टेस्टिंग
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में बढ़ते मामलों को देखते हुए अब कोरोना के संदिग्ध मरीजों की पूल टेस्टिंग का निर्णय लिया गया है। दून मेडिकल कॉलेज में पूल टेस्टिंग शुरू कर दी गई। हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में भी इसे जल्द शुरू करने की तैयारी है। इसके बाद हर दिन तकरीबन डेढ़ हजार सैंपल की जांच मुमकिन होगी। अभी हर दिन औसतन 300 से 350 सैंपल की ही जांच हो पा रही है।

अपर सचिव स्वास्थ्य युगल किशोर पंत ने बताया कि पूल टेस्टिंग में पांच संदिग्ध मरीजों के सैंपल लेकर उसे एक सुपर सैंपल बना दिया जाता है। जिस सुपर सैंपल की जांच रिपोर्ट निगेटिव आती है, उसे अलग कर दिया जाता है। निगेटिव रिपोर्ट का मतलब यही है कि संबंधित मरीजों में कोरोना संक्रमण नहीं है। 

किसी सुपर सैंपल की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर उसमें शामिल सभी पांच नमूनों की दोबारा जांच कर यह देखा जाता है कि सभी कोरोना वायरस से संक्रमित हैं या नहीं। अभी कोरोना के संदिग्ध मरीजों के जो नमूने लैब भेजे जा रहे थे, उन्हें एक-एक कर जांचा जा रहा था। हर जांच में पांच से आठ घंटे लग रहे हैं, जबकि पूल टेस्टिंग से इतने ही समय में एक साथ पांच नमूनों की जांच हो सकेगी।

इनकी भी होगी जांच

-ऐसे लोग जो पिछले 14 दिनों में विदेश से आए हैं और उनमें इंफ्लूएंजा जैसे लक्षण (बुखार-खांसी, सांस लेने में तकलीफ आदि) दिख रहे हैं।

-लैब में मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर उसके संपर्क में आए सभी लोगों की जांच की जाएगी।

-कंटेनमेंट जोन में स्वास्थ्य व अन्य अति आवश्यक कामों में लगे कर्मचारी जिनमें इंफ्लूएंजा जैसे लक्षण दिख रहे हैं।

-ऐसे मरीज जो एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेक्शन की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं।

-मरीज के सीधे संपर्क में आए ऐसे लोग जिनमें लक्षण नहीं भी दिख रहे हैं, उनकी मुलाकात के 5 से 10 दिनों के अंदर जांच होगी।अभी तक ऐसे मामलों में पांच से 14 दिन के बीच जांच होती थी।

-हॉटस्पॉट और कंटेनमेंट जोन में इंफ्लूएंजा जैसे लक्षण वाले लोग।

-इंफ्लूएंजा के सभी मरीज और ऐसे लोग जिनमें इसके लक्षण दिखने शुरू हो रहे हैं।

-इंफ्लूएंजा के लक्षण वाले प्रवासी या बाहर से लौटने वाले मजदूर की जांच तबीयत खराब होने के 7 दिन के अंदर होगी।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने बदली जांच की रणनीति

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने जांच की रणनीति में बदलाव किया है। अपर सचिव युगल किशोर पंत ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अब ऐसे लोगों की भी जांच की जाएगी जो मरीज के सीधे संपर्क में आए हैं, लेकिन उनमें लक्षण नहीं दिख रहे। वह भी पांच से 10 दिन के अंदर। कंटेनमेंट जोन में काम कर रहे कर्मचारियों को भी जांच के दायरे में रखा गया है। उनकी भी जांच की जाएगी, जो तीव्र श्वसन संक्रमण से ग्रसित हैं।

दून अस्पताल में पहले दिन बनाए गए 23 सुपर सैंपल

दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि पहले दिन पांच-पांच सैंपल के 23 सुपर सैंपल बनाए गए। आगे इसका दायरा बढ़ाया जाएगा। रियल टाइम पेरीमिरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) जांच के माध्यम से मरीज के निगेटिव और पॉजिटिव होने का पता चलता है।

दो तरह के हैं कोरोना संक्रमित मरीज

एसिम्पटोमैटिक: ये ऐसे मरीज हैं, जिनकी रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्युनिटी अधिक है और कोविड-19 के लक्षण नहीं दिख रहे हैं।

सिम्पटोमैटिक: जिन लोगों में खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ जैसे कोविड-19 के आम लक्षण दिख रहे हैं, उन्हें सिम्पटोमैटिक कहते हैं।

कोरोना के खिलाफ जंग में चुनौतियों का पहाड़ 

कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग में एकबारगी उत्तराखंड जहां जीत के करीब पहुंचता दिख रहा था, वहीं अब सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया है। अप्रैल प्रथम सप्ताह में जमातियों ने सिस्टम की मुश्किलें बढ़ाईं और अब प्रवासियों की बढ़ती आमद के कारण वही स्थिति दोबारा आ खड़ी हुई है। इससे न सिर्फ सरकारी मशीनरी की बेचैनी बढ़ गई है, बल्कि सांख्यिकी भी गड़बड़ा गई है। मरीजों के ठीक होने का ग्राफ जहां नीचे लुढ़क गया है, वहीं मरीजों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।

प्रदेश में बीती 15 मार्च को कोरोना का पहला मामला सामने आया था। इसके बाद अगले डेढ़ माह तक संक्रमण ग्राफ में उतार-चढ़ाव आता रहा। इस बीच ऐसे भी पल आए, जब प्रदेश कोरोना के खिलाफ छिड़ी इस जंग में जीत के करीब दिखने लगा। लेकिन लॉकडाउन-3 में मिली छूट ने उम्मीद पर पानी फेर दिया। 

कुछ समय पहले तक राज्य जहां राष्ट्रीय औसत की तुलना में बेहतर स्थिति में था, वहीं अब परिस्थितियां बदलने लगी हैं। विभिन्न शहरों में फंसे प्रवासियों की घर वापसी का सिलसिला क्या शुरू हुआ कि मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ने लगी। पिछले दो माह से जिन पर्वतीय जिलों में सकून महसूस किया जा रहा था, वहां भी अब दहशत है। 

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हर रोज किसी न किसी पर्वतीय क्षेत्र से कोरोना के नए मरीज सामने आ रहे हैं। इस बीच सरकार सैंपलिंग का दायरा बढ़ा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जितनी ज्यादा जांच होगी मरीज भी उसी अनुपात में बढ़ेगी।

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