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प्रदीप टम्टा के दांव से हरीश रावत ने साधे कई निशाने

राज्यसभा की सीट के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के प्रदीप टम्टा के नाम पर हाईकमान की मुहर लगाकर सीएम हरीश रावत साबित कर दिया कि सियासत पर उनकी मजबूत पकड़ है।

By sunil negiEdited By: Updated: Sun, 29 May 2016 10:55 AM (IST)
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रविंद्र बड़थ्वाल, [देहरादून]: राज्यसभा की सीट के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर प्रदीप टम्टा के नाम पर हाईकमान की मुहर लगाकर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने फिर साबित कर दिखाया कि सूबे में कांग्रेस की सियासत पर उनकी मजबूत पकड़ तो है ही, उसके केंद्र में भी वही हैं। दो माह के सियासी झंझावात के बाद कांग्रेस सरकार को बहाल कराने में कामयाब रहे हरदा ने अपने खास करीबियों में शुमार प्रदीप टम्टा को राज्यसभा के लिए आगे कर एक तीर से कई निशाने भी साधे हैं। दलित चेहरे के साथ ही सूझबूझ और मुखर वक्ता की पहचान रखने वाले टम्टा के जरिए सूबे के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी हरीश रावत की आवाज को अनसुना करना अब आसान नहीं होगा। खासतौर पर सीबीआइ जांच के चलते तेजी से बदल रही राजनीतिक परिस्थितियों में बेहद सधे और सावधानी के अंदाज में खेले गए इस दांव के सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।

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राज्यसभा सांसद तरुण विजय का कार्यकाल पूरा होने से आगामी चार जुलाई को ये सीट खाली हो रही है। इस सीट पर चुनाव के लिए बीती 24 मई को अधिसूचना जारी हो चुकी है। इस सीट पर अपने प्रत्याशी को लेकर पार्टी ने अपने पत्ते खोलने से गुरेज किया। हालांकि, प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को राज्यसभा भेजने की मांग की गई थी, लेकिन खुद किशोर की पहल के बाद प्रदेश संगठन ने यह प्रस्ताव वापस ले लिया। प्रस्ताव वापस लेने के दो दिन बाद ही पार्टी हाईकमान के स्तर से राज्यसभा की सीट पर प्रदीप टम्टा को प्रत्याशी घोषित कर स्थिति साफ कर दी गई।
पार्टी सूत्रों की मानें तो राज्य में रिक्त हो रही राज्यसभा की सीट पर कांग्रेस के कई दिग्गज केंद्रीय नेताओं की नजरें भी टिकी हुई थीं। प्रदेश कांग्रेस के भीतर भी बाहरी प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर असंतोष की सुगबुगाहट रही तो कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय, उक्रांद और बसपा विधायकों के संयुक्त मोर्चे पीडीएफ ने तो बाहरी प्रत्याशी की आशंका पर सुर तल्ख किए हुए थे। सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी के तौर पर हरदा इन सभी परिस्थितियों को एक बार फिर अपने पक्ष में मोडऩे में कामयाब हुए। पार्टी सूत्रों की मानें तो टम्टा को प्रत्याशी बनाने को लेकर नई दिल्ली स्थित आवास पर मुख्यमंत्री हरीश रावत और राज्यसभा सांसद महेंद्र सिंह माहरा के बीच कई दफा लंबी गुफ्तगू हुई। आखिरकार हरदा की मजबूत लॉबिंग ने दिग्गजों को दरकिनार कर टम्टा के प्रत्याशी बनने की राह आसान कर दी।

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मुख्यमंत्री के नजदीकी समझे जाने वाले टम्टा सूबे में दलित राजनीति का चेहरा तो हैं ही, संघर्षशील और अच्छे वक्ता की छवि भी उनकी है। प्रदीप टम्टा पिछले लोकसभा चुनाव में अल्मोड़ा संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। बीते दिनों हरीश रावत सरकार पर संकट के दौरान पर वह विधायकों की सेंधमारी रोकने की कवायद में खूब सक्रिय रहे। टम्टा को आगे कर हरदा ने सूबे में कांग्रेस की राजनीति पर पकड़ के साथ ही हाईकमान पर भी अपना दबदबा साबित किया है। प्रदेश में दस विधायकों की बगावत के बाद कांग्रेस की फजीहत होने के बाद भी हरदा ने अपनी पकड़ ढीली नहीं पडऩे दी है। इससे पहले बीते विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में पिछड़ने के बावजूद हरदा ने विजय बहुगुणा मंत्रिमंडल में अपना दबदबा रखा ही, साथ ही विधानसभा अध्यक्ष और राज्यसभा की रिक्त सीट अपने खेमे में लाने में कामयाब रहे थे।

गढ़वाल में कांग्रेस के बड़े नेताओं के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने के बाद हरदा के टम्टा के लिए खेले गए दांव को कुमाऊं की सियासत के नजरिए से अहम माना जा रहा है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में हरदा सीटों के गणित और समीकरण दोनों को अपने पक्ष में मोडऩे में शिद्दत से जुटे नजर आ रहे हैं। सीबीआइ जांच शुरू होने के बाद बढ़ती मुश्किलों से जूझने में राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में प्रदीप टम्टा के रूप में मुखर चेहरा आगे दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए।

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