Uttarakhand: उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे से ''प्लास्टवुड'' बनाने की है तैयारी, पर्यावरण बचाना है उद्देश्य
Uttarakhand पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे से प्लास्टवुड बनाने की सरकारी मुहिम आने वाले दिनों में रंग जमाएगी। शासन ने प्लास्टिक कचरे को प्लांट तक पहुंचाने की प्रक्रिया को सरल बनाने के साथ ही प्लांट को पीपीपी मोड में संचालन पर देने को मंथन प्रारंभ किया है। प्लांट की प्लास्टिक खपत क्षमता तीन टन प्रतिदिन है। ऐसे में अब सरकार इसको लागू करेगी।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे से ''प्लास्टवुड'' बनाने की सरकारी मुहिम आने वाले दिनों में रंग जमाएगी। इसके लिए पंचायती राज विभाग द्वारा केंद्र के सहयोग से हरिद्वार जिले के मुजाहिदपुर सतीवाला में स्थापित प्लास्टिक रिसाइक्लिंग प्लांट को पीपीपी मोड में देने पर गहनता से मंथन चल रहा है।
गांवों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के उद्देश्य से बने इस प्लांट का जिला पंचायत हरिद्वार जैसे-तैसे संचालन कर रही है। प्लांट की प्लास्टिक खपत क्षमता तीन टन प्रतिदिन है।
प्लास्टवुड का ऐसे होगा उपयोग
जानकारों का कहना है कि अपनी क्षमता के अनुसार इस प्लांट के संचालित होने पर प्लास्टिक कचरे से तो निजात मिलेगी ही, इससे तैयार प्लास्टवुड का उपयोग लकड़ी के विकल्प के रूप में होने से पेड़ बचाने में भी मदद मिलेगी।प्लास्टिक कचरे से मुक्त करना थी मुहिम
उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों की भांति गांवों को भी प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के उद्देश्य से पूर्व में पंचायती राज विभाग ने इसकी कार्य योजना का खाका खींचा। इसके तहत गांवों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे का एकत्रीकरण कर इससे प्लास्टवुड तैयार करने के दृष्टिगत रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने पर जोर दिया गया।
केंद्र सरकार ने भी इसे स्वीकारा
केंद्र सरकार ने भी इसे स्वीकारा और गांवों से एकत्रित प्लास्टिक कचरे को कांपेक्ट करने के लिए कांपेक्टर मशीनों की उपलब्धता और रिसाइक्लिंग प्लांट की स्थापना को राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान से वित्तीय सहायता प्रदान की। इसके बाद केंद्र व राज्य के सहयोग से हरिद्वार के मुजाहिदपुर सतीवाला में लगभग साढ़े सात करोड़ की लागत से रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित किया गया।हाईकोर्ट पहुंचा था मामला
पूर्व में यह रिसाइक्लिंग प्लांट संचालन के लिए एक कांट्रेक्टर को दिया गया, तब पीपीपी मोड के अनुरूप न होने के कारण यह कॉन्ट्रैक्ट निरस्त कर दिया गया था। मामला हाईकोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने आर्बिटेटर नियुक्त किया। पिछले वर्ष संबंधित कांट्रेक्टर ने अपना मामला हाईकोर्ट से वापस ले लिया। तत्पश्चात प्लांट के संचालन की जिम्मेदारी जिला पंचायत, हरिद्वार को दे दी गई।
जिला पंचायत ने प्लांट के संचालन को छह कर्मियों की तैनाती की। साथ ही ट्रायल के तौर पर वहां प्लास्टवुड बनाने के साथ ही इससे बेंच आदि उत्पाद भी तैयार किए। बावजूद इसके, यह प्लांट अपनी क्षमता के अनुरूप संचालित नहीं हो रहा है। इसके पीछे एक बड़ा कारण जिलों से प्लास्टिक कचरा न पहुंच पाना भी है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।