84 सीटों के गणित में दांव पर लगी भाजपा के 57 विधायकों की साख
सूबे में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए निकाय चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं, क्योंकि उस पर अपने पिछले पांच साल के लगभग एकतरफा जनादेश को बरकरार रखने का दबाव है।
By BhanuEdited By: Updated: Wed, 24 Oct 2018 11:29 AM (IST)
देहरादून, [विकास धूलिया]: राज्य के 92 में से 84 नगर निकायों में चुनावी माहौल अब नामांकन समाप्त होने के बाद धीरे-धीरे चरम की ओर अग्रसर है। सूबे में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए ये चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं, क्योंकि उस पर अपने पिछले पांच साल के लगभग एकतरफा जनादेश को बरकरार रखने का दबाव है। यही वजह है कि पार्टी ने शुरुआत से ही चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। यही नहीं, मंत्रिमंडल समेत पार्टी ने अपने सभी 57 विधायकों को अलग-अलग निकायों की जिम्मेदारी सौंप उन्हें मोर्चे पर तैनात कर दिया है। मंत्रियों को नगर निगमों व बड़े निकायों का जिम्मा दिया गया है। प्रदेश पदाधिकारियों के साथ ये समन्वय कायम करने का भी कार्य करेंगे। नगर निकाय चुनाव भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए ही खासी बड़ी चुनौती हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सूबे की पांचों सीटें जीती तो पिछले वर्ष संपन्न विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों पर परचम फहराया। विधानसभा चुनाव के बाद अब निकाय चुनाव जनमत का सामना करने का पहला अवसर हैं।
भाजपा के समक्ष चुनौती यह है कि उसे राज्य में पिछले पांच साल के दौरान बनी मजबूत पकड़ को निकाय चुनाव में भी बरकरार रखना है। कारण साफ है कि निकाय चुनाव के नतीजों की तुलना लोकसभा व विधानसभा चुनाव के नतीजों से की जाएगी। इसके उलट कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। वर्तमान में उसके पास सूबे से कोई लोकसभा सदस्य नहीं है और विधायकों की संख्या महज 11 ही है। कांग्रेस निकाय चुनाव को अपनी खोई सियासी जमीन वापस हासिल करने के अवसर के रूप में ले रही है। भाजपा की प्रदेश सरकार के अब तक के कामकाज को भी निकाय चुनाव में कसौटी पर परखा जाएगा। यही वजह है कि पार्टी ने इस चुनाव के लिए बगैर कोई जोखिम मोल लिए फुलप्रूफ रणनीति तैयार की है।
टिकट बटवारे के बाद उपजे असंतोष को नियंत्रित करने की कवायद में जुटी पार्टी ने मंत्रियों और विधायकों के साथ ही प्रदेश पदाधिकारियों की जिम्मेदारी तय कर दी है। जिन विधानसभा क्षेत्रों में निकाय शामिल हैं, उनकी जिम्मेदारी संबंधित विधायक को दी गई है। जिन विधानसभा क्षेत्रों में कोई निकाय नहीं है, उन क्षेत्रों के भाजपा विधायक नजदीकी निकायों में चुनाव अभियान से जुड़ेंगे। मंत्रियों को नगर निगम व अपेक्षाकृत बडे़ निकायों की जिम्मेदारी दी गई है। मंत्री, प्रदेश पदाधिकारियों के साथ मिलकर संगठन, प्रत्याशी और कार्यकर्ताओं के बीच संवाद कायम करेंगे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के अनुसार विधायकों को अपने-अपने नगर निकायों की जिम्मेदारी दी गई है। जिन विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में कोई निकाय नहीं हैं, उन्हें नजदीक के निकाय का जिम्मा सौंपा गया है। इसकी सूची तैयार कर ली गई है। मंत्रियों को बड़े निकायों के साथ ही प्रदेश पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बनाने का उत्तरदायित्व दिया गया है।
भाजपा: नाम वापसी तक 'वेट एंड वॉच'निकाय चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के बाद तमाम निकायों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी से भले ही भाजपा असहज स्थिति में हो, लेकिन नाम वापसी की तिथि तक वह 'वेट एंड वॉच' के मद्देनजर कोई भी बड़ा कदम उठाने से फिलहाल बच रही है। इसे देखते हुए रूठों को मनाने के लिए कवायद भी तेज कर दी गई है। इसके बाद भी जो पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे अथवा बगावती तेवर अपनाएंगे, उनके खिलाफ नाम वापसी के बाद कार्रवाई के संकेत भी दिए गए हैं।
कुछ निकायों में भाजपा का टिकट न मिलने से नाराज कई पार्टी कार्यकर्ताओं ने नामांकन पत्र दाखिल किए हैं, जबकि कुछ जगह कार्यकर्ताओं के इस्तीफे की भी खबरें हैं। ऐसे में पार्टी नेतृत्व की उलझन भी बढ़ी है। असंतोष के सुर थामने के मद्देनजर रूठों को समझाने के प्रयास भी शुरू कर दिए गए हैं, लेकिन इसमें कितनी सफलता मिलती है ये भविष्य के गर्त में छिपा। हालांकि, पार्टी ने भी फिलहाल इस मामले में सख्त तेवर दिखाने से परहेज किया है। उसका मानना है कि कार्यकर्ताओं की यह नाराजगी स्वाभाविक तात्कालिक प्रतिक्रिया का हिस्सा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने माना कि कुछेक जगह थोड़ी नाराजगी है, लेकिन उम्मीद है कि नाम वापसी तक यह दूर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यदि समझाने-बुझाने के बाद भी कोई नहीं मानता है तो फिर आगे की कार्रवाई भी की जाएगी।
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