ज्ञान गंगा : कोरोना काल में आहत बचपन की सुध नहीं
कोरोना से मिले जख्म कब तक भरेंगे भरेंगे भी या नहीं इससे न विभाग और न ही शिक्षकों का सरोकार लगता है। नौनिहालों खासतौर पर सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से पांचवीं तक पढ़ने वाले बच्चों पर भारी गुजर रही है। पिछले पूरे सत्र के दौरान प्राइमरी स्कूल नहीं खुले।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 27 May 2021 07:58 AM (IST)
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। कोरोना से मिले जख्म कब तक भरेंगे, भरेंगे भी या नहीं, इससे न विभाग और न ही शिक्षकों का सरोकार लगता है। नौनिहालों खासतौर पर सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से पांचवीं तक पढ़ने वाले बच्चों पर भारी गुजर रही है। पिछले पूरे सत्र के दौरान प्राइमरी स्कूल नहीं खुले। बाद में इन बच्चों को अगली कक्षाओं में प्रोन्नत कर दिया गया। बड़ी कक्षाओं में तो आनलाइन पढ़ाई प्रयास हुए, लेकिन प्राइमरी कक्षाओं की बिल्कुल सुध नहीं ली जा सकी। आश्चर्यजनक ढंग से व्यवस्था ने इन बच्चों को उनके हाल पर ही छोड़ दिया। स्वैच्छिक संस्थाओं से लेकर विभाग की हेल्प डेस्क जमीन पर नहीं दिखीं। सर्वे बड़ी कक्षाओं तक सीमित रहा। वह भी आधा-अधूरा। करीब तीन लाख बच्चों को कक्षोन्नत करने की खानापूरी की जा चुकी है। तबादलों-पोस्टिंग से लेकर सुविधाएं हासिल करने को गरजने-बरसने वाले शिक्षक संगठन भी आहत बचपन और उसके मासूम सवालों का सामना नहीं करना चाहते।
बेसुध पड़ा शिक्षा सूचना तंत्रप्रदेश में 20 वर्ष से प्राथमिक से माध्यमिक तक विद्यालयवार शिक्षकों के डेटा एकत्रीकरण का काम चल रहा है। सर्व शिक्षा अभियान के साथ तेज हुई ये कसरत अब दो साल से समग्र शिक्षा अभियान लागू होने पर भी चल रही है। हर जिल में मैनेजमेंट इनफोरमेशन सिस्टम है। शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही संपर्क फाउंडेशन ने इसी सिस्टम की मदद से कोविड-19 से जूझ रहे शिक्षकों को राहत देने का फार्मूला तलाश लिया। ई-कंसल्टेशन से शिक्षकों और उनके स्वजनों को कोरोना संक्रमण होने पर डाक्टर की सलाह से लेकर सरकारी अस्पतालों में बेड, आक्सीजन व जरूरी उपचार सुविधा मुहैया कराई जा रही है। 70 हजार शिक्षकों वाले राज्य के सबसे बड़े विभाग को खुद ये सुध नहीं आई। कोरोना ड्यूटी के दौरान कई शिक्षक और उनके स्वजन जान गवां चुके हैं। सूचना का ये तंत्र क्या सिर्फ केंद्र सरकार से मदद हासिल करने तक ही सीमित रहना चाहिए।
फिर लुटे तबादलों के अरमानउत्तराखंड की सियासत के केंद्र में तबादला बड़ा मुद्दा रहा है। इसी की कोख से स्थानांतरण एक्ट-2017 ने जन्म लिया। एक्ट बनने के बाद से ज्यादातर साल या सत्र तबादलों के लिहाज से शून्य गुजर रहे हैं। कोई भी शिक्षक दुर्गम में रहना नहीं चाहता। एक बार नौकरी हाथ लगते ही, दुर्गम से सुगम में जाने की होड़ लग जाती है। इसलिए हर साल सबसे ज्यादा मारामारी तबादलों को लेकर रहती है। सुगम में तैनाती की हालत ये है कि एक अनार सौ बीमार। मगर पीछे कोई नहीं रहना चाहता। तबादला सत्र शून्य घोषित होते ही सैकड़ों अरमानों की हालत आंसुओं में बहने सरीखी हो चली है। पिछले सत्र में भी शिक्षकों को मन मसोस के रहना पड़ा था। बीमार और तकदीर के हाथों लाचार शिक्षकों को पिछले साल तबादलों में ही राहत देने का भरोसा बंधाया गया था। इसलिए शिक्षक संगठनों ने भौंहें तानकर बांहें चढ़ा ली हैं।
सुस्त पड़ी गेमचेंजर योजनाचुनावी साल और सरकार की महत्वाकांक्षी अटल उत्कृष्ट विद्यालय योजना की धीमी रफ्तार। सरकार के माथे पर बल पड़े हैं। हर ब्लाक में दो उत्कृष्ट विद्यालयों के रूप में सरकार ने नया प्रयोग किया है। सरकार ने अपने ही बोर्ड के चयनित 189 विद्यालयों को सीबीएसई से संबद्ध कराने की कवायद की। इनमें सिर्फ 18 ही ऐसे हैं, जिन्हें अभी सीबीएसई की मान्यता नहीं मिली। कुछ खामियां रहने की वजह से सरकार ने इन्हें पूरा करने के लिए समय मांगा है। विभाग को भरोसा है कि मामला सुलट जाएगा। सभी विद्यालयों में शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के लिए आवेदन मांगे गए हैं। कोरोना की वजह से आवेदन की तिथि एक दफा बढ़ाई जा चुकी है। तंत्र का पूरा जोर इस पर है कि गर्मियों की छुट्टियां खत्म होते ही विद्यालयों का संचालन शुरू हो। प्रयोग कामयाब रहा तो शिक्षा की सूरत में बड़ा बदलाव दिखाई दे सकता है।
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