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दून जिला कारागार में कैदी बने डॉक्टर, बीमारी हो रही है छूमंतर

दून की जिला कारागार में कैदी चिकित्सक की भूमिका निभा रहे हैं। वे प्राणिक हीलिंग उपचार पद्धति को अपनाकर खुद के साथ ही अन्य कैदियों का उपचार कर रहे हैं।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 07 Feb 2019 09:01 AM (IST)
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दून जिला कारागार में कैदी बने डॉक्टर, बीमारी हो रही है छूमंतर
देहरादून, गौरव ममगाईं। देहरादून के सुद्धोवाला स्थित जिला कारागार में कैदी न केवल अपने आपराधिक अतीत को कोसों दूर छोड़ चुके हैं, बल्कि अपराध की दुनिया में आने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन रहे हैं। उनमें यह बदलाव संभव हो पाया है  'प्राणिक हीलिंग उपचार पद्धति' के माध्यम से। इस पद्धति को जीवन में अपनाकर कैदी स्वयं तो अपनी काया को निरोगी बना ही रहे हैं, अन्य अस्वस्थ कैदियों को भी आवश्यक उपचार दे रहे हैं। 

रोग कितना ही गंभीर क्यों न हो, ये कैदी प्राणशक्ति (तरंग ऊर्जा) के जरिए हर बीमारी को छूमंतर कर देते हैं। यही वजह है कि आज देहरादून जिला कारागार देश की मॉडल जेल में शुमार हो चुका है। 

उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में स्थित सुद्धोवाला जेल प्रदेश ही नहीं, देश की संवेदनशील जेलों में शामिल की जाती है। यहां राष्ट्रीय स्तर के अपराधियों को भी रखा जाता रहा है, इसलिए जेल के अधिकारी-कर्मचारी खासा तनाव में रहा करते थे। 

पिछले तीन वर्षों से जेल के भीतरी माहौल में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। इसका श्रेय जाता है जिला कारागार अधीक्षक महेंद्र सिंह ग्वाल की ओर से प्राणिक हीलिंग पद्धति के रूप में अपनाए गए अभिनव प्रयोग को। वर्ष 2015 में 'मनुर्भव' संस्था की ओर से कारागार अधीक्षक ग्वाल के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया था। 

अतिसंवेदनशील जेल होने के कारण इसे अनुमति देना बेहद खतरनाक साबित हो सकता था। क्योंकि कैदी प्रशिक्षकों के साथ किसी भी अनहोनी को अंजाम दे सकते थे। प्रशिक्षक डॉ. गिरीबाला जुयाल परिणामों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थीं। उनके विश्वास को देखते हुए कारागार अधीक्षक ने आखिरकार इसे अनुमति दे ही दी। 

जेल में जब प्राणिक हीलिंग की क्लास लगनी शुरू हुई तो पहले-पहल कैदियों ने इसमें खास रुचि नहीं दिखाई। जैसे-जैसे समय बीतता गया कैदी इससे जुड़ते चले गए। कैदी कहते हैं कि इस पद्धति ने उन्हें जीवन की सही राह दिखाई है। इसने उन्हें निरोगी जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। विदित हो कि वर्तमान में जिला कारागार में लगभग 650 कैदी हैं, जिनमें 300 से ज्यादा प्राणिक हीलिंग पद्धति से जुड़ चुके हैं। 

हर कैदी अपने में खास

ऋषि हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है। ऋषि प्राणिक हीलिंग पद्धति के जरिए किसी भी व्यक्ति के सिर दर्द, पेट दर्द समेत अन्य रोगों का उपचार करता है। उसे कक्षा का इंचार्ज भी बनाया गया है। बकौल ऋषि, 'यह पद्धति निरोग जीवन एवं मानसिक शांति के लिए बेहद आवश्यक है। 

कई की दूर की पथरी 

अवनीश नशा व्यापार के अपराध में पकड़ा गया। वह गुजरात से बीटेक की पढ़ाई करने दून आया था। अवनीश तरंग ऊर्जा के माध्यम से कई कैदियों की पथरी की समस्या को दूर कर चुका है।

पानी से इलाज 

सूरज सिंह हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है। वह पेयजल उर्जित (चार्ज) करने के लिए जाना जाता है। उर्जित किए पेयजल से शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि कारागार के अधिकारी भी सूरज से पांच-पांच लीटर के कैन में पानी चार्ज करवाते हैं। 

यहां भी है बाबा रामदेव  

कैदी राकेश सिंह दिखने में हू-ब-हू योगगुरु बाबा रामदेव की तरह नजर आता है, इसलिए अन्य कैदी उसे 'रामदेव' कहकर भी पुकारते हैं। वह कैदियों को योग की क्लास भी देता है। राकेश प्राणशक्ति के जरिए शुगर जैसे रोग दूर करने का दावा करता है। राकेश को हत्या के लिए आजीवन कारावास हुआ है।

प्राणिक हीलिंग उपचार पद्धति : एक परिचय

'मनुर्भव' संस्था की संस्थापक डॉ. गिरीबाला जुयाल बताती हैं कि प्राणिक हीलिंग एक पूरक चिकित्सा पद्धति है, जिसे वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं। यह पद्धति मानव शरीर में विद्यमान 11 चक्रों पर निर्भर है। इसमें इन चक्रों पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है। बताया कि इनमें से किसी भी चक्र का भली-भांति क्रियान्वयन न होने से शरीर में चक्र से संबंधित रोग प्रवेश करते हैं। 

सफल साबित हुआ प्रयोग 

जिला कारागार के अधीक्षक महेंद्र सिंह ग्वाल के अनुसार प्राणिक हीलिंग पद्धति के रूप में एक अभिनव प्रयोग किया गया था, जो सफल साबित हो रहा है। यहां के कैदी अपने आप में विशेष हैं। रोग दूर करने की बात हो या जीवन में अनुशासन की, ये कैदी प्रेरणा के रूप में सामने आ रहे हैं।

बड़े अस्पताल में भी उपयोग में लाई जा रही ये पद्धति 

वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी डॉ. नवीन जोशी के अनुसार प्राणिक हीलिंग प्रामाणिक पद्धति है। इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते हैं। देश के कई बड़े अस्पतालों में इस पद्धति को उपयोग में भी लाया जा रहा है।

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