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निजी डॉक्टरों की हड़ताल खत्म, सीएम से वार्ता के बाद लिया फैसला

निजी चिकित्सकों की हड़ताल खत्म हो गर्इ है। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से वार्ता के सकारात्मक रहने पर ये फैसला लिया गया।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 24 Feb 2019 08:57 AM (IST)
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निजी डॉक्टरों की हड़ताल खत्म, सीएम से वार्ता के बाद लिया फैसला
देहरादून, जेएनएन। पिछले नौ दिन से प्रदेशव्यापी हड़ताल पर चल रहे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) से जुड़े निजी चिकित्सकों ने शनिवार रात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ वार्ता के बाद हड़ताल समाप्त कर दी। मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों की मांगों का परीक्षण करने को वित्त मंत्री प्रकाश पंत की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है। मुख्यमंत्री आवास में हुई वार्ता के बाद चिकित्सक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के साथ उनके यमुना कालोनी आवास पहुंचे और हड़ताल खत्म करने की जानकारी दी।

दूसरी ओर, सचिव स्वास्थ्य नितेश झा ने बताया कि कमेटी की रिपोर्ट आने तक चिकित्सकों के प्रतिष्ठानों के विरुद्ध चल रही सीलिंग की कार्रवाई पर रोक लगा दी गई है। रविवार से चिकित्सक पूर्व की तरह अस्पताल व क्लीनिक खोलेंगे व मरीजों को उपचार देंगे।चिकित्सक 15 फरवरी से क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में संशोधन करने या उत्तराखंड हेल्थकेयर एस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू करने की मांग को लेकर हड़ताल पर थे। जिससे मरीजों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से सरकारी अस्पतालों में वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गई थीं, मगर यह नाकाफी साबित हो रही थी। इसके बावजूद सरकार ने झुकने से इन्कार कर दिया और चिकित्सकों के प्रतिष्ठानों पर सीलिंग की कार्रवाई शुरू कर दी।

इस दोतरफा कार्रवाई से दबाव में आए चिकित्सकों ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट से शुक्रवार को मुलाकात कर मुख्यमंत्री से वार्ता का समय मांगा था। जिस पर शनिवार रात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आवास पर हड़ताली चिकित्सकों को बुलाया गया।

रात लगभग सात बजे प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और पूर्व विधायक शैलेंद्र मोहन सिंघल के साथ मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डा. बीएस बीएस जज, सचिव डा. डीडी चौधरी समेत जिलाध्यक्ष डा. संजय गोयल, सचिव डा. विजय त्यागी आदि मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। चिकित्सकों ने कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थिति व यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति के लिहाज से एक्ट में संशोधन की सख्त जरूरत है। मुख्यमंत्री ने वित्त मंत्री प्रकाश पंत की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर चिकित्सकों की मांगों के परीक्षण के आदेश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट का हर हाल में पालन कराया जाएगा। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद देखा जाएगा कि इसमें संशोधन किया जा सकता है या नहीं। 

दो तरफा कार्रवाई से दबाव में आए निजी चिकित्सक

निजी चिकित्सकों की हड़ताल स्थगित होने के पीछे एमडीडीए व स्वास्थ्य विभाग के दो तरफा दबाव का भी बड़ा हाथ रहा। क्योंकि एक तरफ क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत जिले में अब तक पांच चिकित्सा प्रतिष्ठानों को सील कर 65 से अधिक नोटिस जारी किए जा चुके हैं, तो दूसरी तरफ एमडीडीए ने भी अवैध निर्माण के दायरे में आए प्रतिष्ठानों को सील करने की कार्रवाई शुरू कर दी थी। हालांकि, वित्त मंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट आने तक चिकित्सा प्रतिष्ठानों को सील न करने के निर्णय से थोड़ी राहत जरूर मिल गई है।

गौर करने वाली बात यह भी कि 49 चिकित्सा प्रतिष्ठानों को सीलिंग के नोटिस जारी कर दो प्रतिष्ठानों को सील करने की एमडीडीए की तैयारी भी तभी सामने आई, जब चिकित्सकों के हड़ताल पर लगातार अडिग रहने की बात ने जोर पकड़ा। इस कार्रवाई को सरकार की प्रेशर टैक्टिस के रूप में ही देखा जा रहा है और यह रणनीति कारगर भी रही। हालांकि एमडीडीए की कार्रवाई से चिकित्सा प्रतिष्ठानों को सिर्फ कुछ दिनों की ही मोहलत मिल पाई है, क्योंकि इनके अवैध निर्माण को वैध करने में अभी बड़ा तकनीकी पेंच फंसा है। जिसे सुलझाना उतना आसान भी नहीं है।

नौ मीटर से कम छूट देना आसान नहीं

गली-मोहल्लों में चल रहे चिकित्सा प्रतिष्ठानों को वन टाइम सेटेलमेंट में नियमों को शिथिल कर पहले ही मार्ग की नौ मीटर चौड़ाई की छूट दी गई है। वहीं, चिकित्सक इस छूट की सीमा को और बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। वन टाइम सेटेलमेंट के तहत छोटे से छोटे आवासीय निर्माण के लिए छह मीटर मार्ग की बाध्यता जरूर रखी गई है, मगर इसकी पूर्ति के लिए भी मार्ग की चौड़ाई को नौ मीटर किया जाना जरूरी है। 

जिसका मतलब यह हुआ कि सड़क के दोनों तरफ के लोगों को डेढ़-डेढ़ मीटर भूखंड का भाग सड़क के लिए छोड़ना होगा। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब छोटे स्तर के आवासीय निर्माण के लिए भी नौ मीटर मार्ग की बाध्यता है तो चिकित्सा प्रतिष्ठानों के लिए किस तरह नियमों में ढील दी जा सकी है। यदि ऐसा किया भी जाता है तो इसके दायरे में तमाम अन्य निर्माण भी आ जाएंगे। सरकार के निर्देशों के क्रम में ही चिकित्सा प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई की जाएगी। हालांकि जिन प्रतिष्ठानों को वन टाइम सेटेलमेंट योजना का लाभ लेना है, उन्हें कंपाउंडिंग के लिए आवेदन कर देना चाहिए।

एएनएम की डिग्री पर चल रहा क्लीनिक किया सील

क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में पंजीकरण न कराने वाले चिकित्सा प्रतिष्ठानों के प्रति सरकार सरकार नरमी दिखाने के मूड में नहीं है। ऐसे प्रतिष्ठानों के खिलाफ अभियान निरंतर जारी है और इस कड़ी में शनिवार को चौंकाने वाले खुलासे में पता चला कि कुसुम विहार में एक क्लीनिक एएनएम की डिग्री पर चल रहा है, जिसे तत्काल प्रभाव से सील कर दिया गया।

शनिवार को एसीएमओ डॉ. केके सिंह, जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. सुधीर पांडे व अपर तहसीलदार भगवती प्रसाद जगूड़ी की टीम ने शहर में अभियान चलाया। इसी दौरान पता चला कि सिंघल मंडी स्थित कुसुम विहार में संजू मलिक अपनी पत्नी की एएनएम की डिग्री पर क्लीनिक चला रहे हैं। इस प्रतिष्ठान को सील करने के साथ ही मानकों का अनुपालन न करने पर ईसी रोड पर दो डेंटल क्लीनिक व दो लैब को नोटिस जारी किया गया। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने बताया कि अभियान सोमवार को भी जारी रहेगा। जिले में अब तक पांच चिकित्सा प्रतिष्ठानों को सील किया जा चुका है, जबकि 65 से अधिक नोटिस जारी किए गए हैं। जल्द सभी के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

प्रतिष्ठा बनी दून मेडिकल कॉलेज की ओपीडी

दून मेडिकल कॉलेज के नए ओपीडी ब्लॉक के निर्माण को सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। यही वजह है कि शुक्रवार को महापौर सुनील उनियाल गामा निर्माणाधीन भवन के निरीक्षण को पहुंचे थे, जबकि शनिवार को चिकित्सा शिक्षा निदेशक युगल किशोर पंत ने कायरें का जायजा लिया। ओपीडी के एक ब्लॉक का निर्माण हर हाल में 28 फरवरी तक पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि आचार संहिता से पहले इसे जनता को समर्पित कर दिया जाए।शनिवार शाम को निरीक्षण के दौरान चिकित्सा शिक्षा निदेशक ने पाया कि ए ब्लॉक का निर्माण पूरी तेजी से किया जा रहा है और उन्होंने इस पर संतुष्टि भी व्यक्त की। 

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