धरती के 'भगवान', डेंगू का खौफ दिखा हो रहे धनवान; पढ़िए पूरी खबर
डेंगू से पीड़ित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। चिंताजनक यह कि दून में डेंगू से कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Mon, 09 Sep 2019 04:49 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। राजधानी दून में डेंगू से हाहाकार मचा हुआ है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। चिंताजनक यह कि दून में डेंगू से कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है। ऐसे में सामान्य बुखार होने पर भी आम लोगों में डेंगू की दहशत है। जिसका फायदा उठाते हुए कई निजी अस्पताल व लैब डेंगू का खौफ दिखा अपनी जेब भर रहे हैं।
धरती के कुछ 'भगवान' मरीजों के डर को भांप कर उनसे मोटी रकम वसूल रहे हैं। उदाहरण ऐसे भी हैं जहां निजी लैब में मरीज की डेंगू की रिपोर्ट पॉजीटिव, जबकि सरकारी लैब में निगेटिव आई है। उस पर जांच के नाम पर निजी लैब मनमाना शुल्क वसूल रहे हैं। पर सरकार का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है। वर्ष 2016 में डेंगू विकराल हुआ तो इस ओर पहल की गई थी। प्रशासन की सख्ती के बाद डेंगू जांच का शुल्क निर्धारित किया गया और सभी पैथोलॉजी लैब ने अपने यहां रेट लिस्ट चस्पा कर दी। पर इस बार न अधिकारी चेत रहे हैं और न सरकार ने ही सुध ली। डेंगू के डर को बनाया कमाई का जरिया
शहर के कुछ निजी अस्पतालों ने डेंगू के डर को कमाई का जरिया बना लिया है। वर्तमान समय में डॉक्टरों के पास पहुंचने वाला हर दूसरा मरीज बुखार से पीडि़त आ रहा है। ऐसे में अस्पताल सबसे पहले उसकी डेंगू की जांच करा रहे हैं। जिस कारण इलाज शुरू होने से पहले ही सीबीसी और डेंगू जांच के नाम पर मरीज का अच्छा खासा खर्चा हो जाता है। यही नहीं जांच में प्लेटलेट्स कम होते ही डेंगू की आशंका जताकर मरीज भर्ती किए जा रहे हैं। जबकि, सामान्य वायरल बुखार में भी यह स्थिति हो सकती है। कई अस्पताल रैपिड टेस्ट के आधार पर मरीजों को डेंगू पीडि़त बता रहे हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार मरीजों को चाहिए कि बिना एलाइजा टेस्ट करवाए, किसी भी भ्रम का शिकार न बनें।
कई निजी अस्पताल नहीं दे रहे डेंगू की रिपोर्ट
शहरी क्षेत्र में डेंगू की स्थिति कई ज्यादा भयावह है। कई निजी अस्पताल व नर्सिंग होम अभी भी डेंगू की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को नहीं दे रहे हैं। जबकि विभिन्न छोटे-बड़े अस्पतालों में डेंगू से पीड़ित कई मरीज भर्ती बताए जा रहे हैं। बता दें, डेंगू की बीमारी को अधिसूचित श्रेणी में रखा गया है। किसी भी मरीज के भर्ती होने पर तुरंत इसकी जानकारी मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय को देना आवश्यक है। अधिकारी भी मान रहे हैं कि शहर के विभिन्न निजी अस्पतालों में डेंगू के मरीज भर्ती हैं। जबकि कई निजी लैब में भी मरीजों की जांच की जा रही है। पर डेंगू की पुष्टि होने पर रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को नहीं भेजी जाती।
रैपिड के नाम पर खेल कर रहे निजी लैब
डेंगू की जांच के नाम पर कई निजी लैब भी खेल कर रहे हैं। वे जांच के लिए रैपिड डायग्नोस्टिक किट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी न तो कोई मान्यता है और न इसके आधार पर डेंगू की पुष्टि संभव है। इस किट का इस्तेमाल केवल पैसा बनाने के लिए किया जा रहा है। इस टेस्ट के भी वह मनमानी फीस ले रहे हैं।
सरकारी से लेकर प्राइवेट अस्पताल तक फुल
दून में डेंगू विकराल रूप धारण कर चुका है। सरकारी आंकड़ों में ही अकेले देहरादून जिले में अब तक 769 मरीजों में डेंगू की पुष्टि हो चुकी है। बड़े प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम यहां तक की छोटे-छोटे क्लीनिक में भी मरीजों की लंबी कतार लगी है। जहां मरीज को भर्ती तक करने की जगह नहीं बची है। सरकारी अस्पतालों की भी कमोबेश यही स्थिति है। कहीं स्ट्रेचर पर इलाज चल रहा है तो कहीं मरीज बेंच पर पड़ा है। पर आला अधिकारी अब भी यह दुहाई दे रहे हैं कि सब ठीक-ठाक है।
प्लेटलेट्स का रहे ध्यान केवल डेंगू में ही खून में प्लेटलेट्स कम नहीं होती, बल्कि आम वायरल होने पर भी इनमें कमी आ जाती है। वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. केपी जोशी का कहना है कि प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम समय में बढ़ती और घटती है, इसलिए न तो इसे नजर अंदाज करना चाहिए और न ही बहुत परेशान होना चाहिए। एक तंदुरुस्त आदमी के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। प्लेटलेट्स शरीर की ब्लीडिंग रोकने का काम करती हैं। प्लेटलेट्स कम होने की वजह डेंगू हो सकता है। अगर प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। बच्चों का रखें ख्याल बच्चों का इम्युन सिस्टम कमजोर होता है और वे खुले में ज्यादा रहते हैं, इसलिए उनके प्रति सचेत होने की ज्यादा जरूरत है। अभिभावक ध्यान दें कि बच्चे घर से बाहर पूरे कपड़े पहनकर जाएं। बहुत छोटे बच्चे खुलकर बीमारी के बारे में बता भी नहीं पाते। इसलिए अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उल्टी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। अपने आप न आजमाएं दवा अपनी मर्जी से एंटी-बायोटिक या कोई और दवा न लें। गांधी नेत्र चिकित्सालय के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार के अनुसार, अगर बुखार ज्यादा है तो डॉक्टर के पास जाएं और उसकी सलाह से ही दवाई लें। इन दिनों के बुखार में सिर्फ पैरासिटामोल ले सकते हैं। एस्प्रिन बिल्कुल न लें क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं। मामूली खांसी आदि होने पर भी अपने आप कोई दवाई न लें। झोलाछाप डॉक्टरों के पास कतई न जाएं। अक्सर ऐसे डॉक्टर बिना सोचे-समझे कोई भी दवाई दे देते हैं। 20 का फॉर्मूला डेंगू में कुछ एक्सपर्ट 20 के फॉर्मूला की बात करते हैं। अगर धड़कन यानी पल्स रेट 20 बढ़ जाए, ऊपर का ब्लड प्रेशर 20 कम हो जाए, ऊपर और नीचे के ब्लड प्रेशर का फर्क 20 से कम हो जाए, प्लेटलेट्स 20 हजार से कम रह जाएं, शरीर के एक इंच एरिया में 20 से ज्यादा दाने पड़ जाएं, तो मरीज को अस्पताल में जरूर भर्ती करना चाहिए। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने बताया कि अलग-अलग लैब में जांच के अलग रेट लिए जाने की शिकायत मिली है। पर शुल्क निर्धारण मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इस विषय में स्वास्थ्य महानिदेशालय से दिशा-निर्देश मांगे गए हैं। जहां तक गलत रिपोर्ट की बात है, कोई लिखित शिकायत मिलेगी तो उस पर निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी। यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में डेंगू हुआ विकराल, मरीजों का आंकड़ा एक हजार पार आइएमए के अध्यक्ष डॉ. संजय गोयल ने बताया कि इस तरह दोषारोपण सही नहीं है। गाहे बगाहे कोई मामला आता है और सभी को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। जबकि निजी क्षेत्र में भी चिकित्सक और पैथोलॉजिस्ट पूरी जिम्मेदारी के साथ दिन रात अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। यह ऐसा समय है जब आपसी सहयोग व सहभागिता से ही डेंगू की रोकथाम करनी होगी। यह भी पढ़ें: डेंगू में खुद न बनें डॉक्टर, भय और भ्रम से भी बचें Dehradun News
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