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सड़कों को यातायात के लिए छोड़ दो, जुलूस-प्रदर्शन की होनी चाहिए पाबंदी

देहरादून की सड़कें इतनी चौड़ी नहीं हैं कि वर्तमान में यातायात के दबाव को भी ढंग से झेल सके। ऐसे में सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन की पाबंदी होनी चाहिए।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 16 Aug 2019 09:08 AM (IST)
सड़कों को यातायात के लिए छोड़ दो, जुलूस-प्रदर्शन की होनी चाहिए पाबंदी
देहरादून, जेएनएन। देहरादून की सड़कें इतनी चौड़ी नहीं हैं कि वर्तमान में यातायात के दबाव को भी ढंग से झेल सके। ऐसे में जब इन्हीं सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन होते हैं या शोभायात्राएं निकाली जाती हैं तो जाम की स्थिति विकट हो जाती है। स्थिति यह रहती है कि पैदल यात्री तक ढंग से नहीं गुजर पाते। इस तरह के आयोजनों में पुलिस के हाथ-पांव फूल जाते हैं और जहां-तहां यातायात को डायवर्ट करना पड़ जाता है। इससे लोगों की दिक्कतें दुगनी हो जाती है। 

दून के बुद्धिजीवी इस बात का न सिर्फ पुरजोर विरोध कर कह रहे हैं कि सड़कों पर जुलूस आदि की पाबंदी होनी चाहिए, बल्कि संविधान के अनुच्छेद-25 का हवाला देकर भी कह रहे हैं कि लोक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर) में व्यवधान पैदा करने वाले आयोजनों को व्यस्त सड़कों पर अनुमति देने की मनाही है।  बुद्धिजीवी एक स्वर में यह उद्गार भी व्यक्त करते हैं कि सड़कों को यातायात के लिए छोड़ दिया जाए, न कि उन पर वाहनों की रेलमपेल के बीच तरह-तरह के आयोजन कर आमजन की समस्या को और बढ़ाया जाए।

धर्म की स्वतंत्रता भी नियमों के दायरे में

रिटायर्ड आइएएस अधिकारी चंद्र सिंह कहते हैं कि अनुच्छेद-25 में धर्म की स्वतंत्रता को लेकर स्पष्ट नियम बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि लोक व्यवस्था, स्वास्थ्य व सदाचार को प्रभावित करने धार्मिक आयोजनों को भी अनुमति नहीं दी जा सकती। इससे स्पष्ट है कि कम से कम मुख्य सड़कों पर किसी भी धार्मिक संगठन के आयोजन को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

मानवाधिकार आयोग का सदस्य रहते दिए आदेश, अनुपालन नहीं

इसी तरह उत्तराखंड विधि आयोग के अध्यक्ष राजेश टंडन ने बताया कि जब वह मानवाधिकार आयोग में सदस्य थे तो उन्होंने घंटाघर के करीब पांच किलोमीटर के दायरे में किसी भी तरह के आयोजन को अनुमति न देने के निर्देश पुलिस-प्रशासन को दिए थे। फिर भी इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए। 

विकसित देशों में होता है सड़क के नियमों का पालन

रूलक के संस्थापक अध्यक्ष पद्मश्री अवधेश कौशल की मानें तो विकसित देशों में सड़कों पर आयोजन को अनुमति नहीं दी जाती है। इस बात से सीख लेकर देहरादून शहर में भी पुलिस-प्रशासन को सख्ती से नियमों का पालन कराना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की असफलता भी है।

नियत प्रतिष्ठानों में ही मिले आयोजन की अनुमति

गति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि सड़कें वाहनों के संचालन के लिए होती हैं, न कि जुलूस-प्रदर्शन और शोभायात्राओं के लिए। किसी कर्मचारी संगठन को रैली निकालनी है तो वह संबंधित कार्यालय पर एकत्रित होकर विरोध जाता सकते हैं। इसी तरह धार्मिक आयोजनों के लिए भी संबंधित प्रतिष्ठानों पर ही अनुमति दिए जाने की व्यवस्था हो।

यहां साझा करें सड़कों की मुक्ति के विचार

यदि आप भी शहर की सड़कों पर आए दिन हो रहे तरह-तरह आयोजनों से आजिज आ चुके हैं और चाहते हैं कि सड़कों को परेशानी बढ़ाने वाले क्रिया-क्लापों से मुक्ति मिले तो अपने विचार हमसे जरूर साझा करें। हमें बताएं कि शहर की सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन होने चाहिए या नहीं, शोभायात्राएं सड़कों पर निकाली जानी चाहिए या नहीं। आपके उद्गार या अभिव्यक्ति को हम उचित स्थान देंगे। अपने विचार सुझाव के रूप में ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से हम तक पहुंचाए जा सकते हैं।

ईमेल

  • dehradun@drn.jagran.com 
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व्हाट्सएप नंबर

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