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यातायात अभियान: संविधान में व्यवस्था, पुलिस-प्रशासन की आंखें बंद Dehradun News

दून शहर की मुख्य सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं पर अंकुश लगाने की जागरण की मुहिम से हर वर्ग के व्यक्ति जुड़ने लगे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 21 Aug 2019 09:32 PM (IST)
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यातायात अभियान: संविधान में व्यवस्था, पुलिस-प्रशासन की आंखें बंद Dehradun News
देहरादून, जेएनएन। शहर की मुख्य सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं पर अंकुश लगाने की जागरण की मुहिम से हर वर्ग के व्यक्ति जुड़ने लगे हैं। लोग खुलकर आगे आ रहे हैं और एक स्वर में कह रहे हैं कि समय आग गया है कि शहर को बचाने के लिए कदम बढ़ाए जाएं। लोग निरंतर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं और सरकार, शासन व पुलिस-प्रशासन से शहर के हित में उचित निर्णय करने लेने की मांग कर रहे हैं।

सड़कों पर किस तरह के आयोजन प्रतिबंधित किए जाने चाहिए, इसकी पूरी व्यवस्था भारत के संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में दी गई है। इसके बाद भी संविधान की अनदेखी करते हुए पुलिस-प्रशासन के अधिकारी मुख्य सड़कों पर राजनीतिक, कार्मिक संगठनों के जुलूस-प्रदर्शन व धार्मिक आयोजनों को को आंख मूंदकर अनुमति दे रहे हैं।

चंद्र सिंह (सेवानिवृत्त आइएएस) का कहना है कि अनुच्छेद-25, 26, 27 व 28 पर ही गौर करें तो इसमें धर्म के अधिकार को स्पष्ट किया गया है। इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि लोक व्यवस्था, सदाचार व स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले आयोजनों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। स्पष्ट है कि मुख्य सड़कों पर धार्मिक आयोजन लोक व्यवस्था में खलल डालने के साथ ही स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर डालते हैं। ऐसे में लोक व्यवस्था को बिगाडऩे का किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है। चाहे वह धार्मिक आयोजन हो या सामाजिक व राजनीतिक आदि का। यह सब विषय लोक व्यवस्था, सदाचार व स्वास्थ्य से जुड़े हैं। दूसरी तरफ आइपीसी व पुलिस एक्ट में भी इसको लेकर प्रावधान किए गए हैं। नागरिकों को किस प्रकार से अपने धार्मिक व सामाजिक अधिकारों का प्रयोग करना है और उनके क्या मूल कर्तव्य हैं, अनुच्छेद-51क में इसका उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि हर नागरिक को संविधान का पालन करना है और उसके अदर्शों व संस्थाओं आदि का भी आदर करने को कहा गया है। अनुच्छेद के अगले बिंदुओं में सामाजिक, सांस्कृतिक गौरवशाली परंपरा के असली महत्व को समझने, उसका परीक्षण करने, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने, मानववाद, ज्ञानार्जन करने, सुधार की भावना विकसित करने, सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने आदि का भी सभी को पालन करना है। इसके बाद भी पुलिस-प्रशासन जानबूझकर चंद लोगों के आयोजनों को अनुमति देकर लाखों लोगों की सुविधा को बाधित कर देते हैं। क्योंकि जो नागरिक संविधान के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, उन पर नियंत्रण की जगह उसे बढ़ावा देने का ही काम किया जा रहा है।

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दूनवासियों के बोल

  • अमित गर्ग (देहरादून निवासी) का कहना है कि जुलूस-प्रदर्शन व शोभायात्राओं के लिए स्थान निर्धारित किए जाने चाहिए। क्योंकि जिन सड़कों पर बेतहाशा ट्रैफिक रहता है, उसी के बीच दूसरे आयोजनों की अनुमति देना या यातायात को डायवर्ट करना कोई समझदारी का काम नहीं है। क्योंकि इससे जाम की समस्या बढ़ती है, साथ ही ध्वनि व वायु प्रदूषण का ग्राफ भी बढ़ जाता है। 
  • मनीष गुप्ता (देहरादून निवासी) का कहना है कि जागरण की यह मुहिम शहर के अधिकतर लोगों के हित में है। बेहतर होगा कि जागरण के प्रयास से सीख लेकर पुलिस-प्रशासन अपने अधिकारों व जिम्मेदारी को समझे और उसी के अनुरूप आयोजनों को अनुमति प्रदान करे। यह सही समय है शहर के हित में सख्त कदम उठाने का।
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