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Uttarakhand News: कौन हैं प्रो. डीआर पुरोहित? जिन्‍होंने उत्‍तराखंड की लोक कला और संस्कृति को दिलाई अलग पहचान

पौड़ी जनपद के श्रीनगर गढ़वाल स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में कला निष्पादन केंद्र के संस्थापक प्रो. डीआर पुरोहित को लोक रंगमंच लोक संगीत के क्षेत्र में राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है।

By Jagran NewsEdited By: Sunil NegiUpdated: Fri, 25 Nov 2022 10:33 PM (IST)
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प्रो. डीआर पुरोहित को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है।
जागरण संवाददाता, देहरादून : उत्तराखंड की लोक कला व संस्कृति को बड़ा सम्मान मिला है। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में कला निष्पादन केंद्र के संस्थापक प्रो. डीआर पुरोहित को लोक रंगमंच लोक संगीत के क्षेत्र में राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है।

गढ़वाल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहते हुए उन्होंने कला संस्कृति, रंगमंच व पहाड़ के परंपरागत वाद्य यंत्र ढोल सहित लोक कला जैसे विषयों पर निरंतर शोध किया और उसे पहचान दिलाई।

मूलरूप से उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के हैं रहने वाले

मूलरूप से उत्तराखंड के जनपद रुद्रप्रयाग के क्वीली गांव निवासी प्रो. डीआर पुरोहित वर्तमान में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र में एडर्जेट प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2006 में उन्होंने ही इस विभाग की स्थापना की थी और वर्ष 2007 से लेकर 2010 तक इस विभाग के निदेशक भी रहे।वर्ष 2018 में वह गढ़वाल विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए।

12 वर्ष की आयु में ही अपने गांव में ही गठित किया ड्रामा क्लब

बचपन से ही रंगमंच से जुड़े डीआर पुरोहित ने 12 वर्ष की आयु में ही अपने गांव में ड्रामा क्लब भी गठित किया। उनके निर्देशन व मार्गदर्शन में चक्रव्यू, पांच भै कठैत, बुढ़देवा, नंदादेवी राजजात 36 नाटक प्रस्तुत हुए हैं। इसके अलावा देश-विदेश में लोक संस्कृति को लेकर उन्होंने तकरीबन दौ सौ लेक्चर भी दिए हैं। लोक संस्कृति को लेकर किए गए उनके शोध भावी पीढ़ी को मार्गदर्शन भी दे रहे हैं।

प्रो. डीआर पुरोहित कहते हैं कि उत्तराखंड की लोक कला व रंगमंच को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिलना लोक कला व रंगमंच का सम्मान है। इससे रंगकर्मी व लोककर्मी भी उत्साहित होंगे। उन्होंने सिर्फ लोक कला, लोक संस्कृति को पहचान दिलाने का प्रयास किया है।

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