उत्तराखंड बजट के पिटारे में पांचों सीटें साधने की जुगत
अब आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के समक्ष अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने का भारी दबाव है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पेश बजट में सरकार की यह चिंता साफ तौर पर झलकी है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 19 Feb 2019 09:21 AM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड यूं तो महज पांच लोकसभा सीटों वाला छोटा सा राज्य है मगर भाजपा के लिए इसकी अहमियत कितनी ज्यादा है, यह त्रिवेंद्र सरकार द्वारा सोमवार को विधानसभा में पेश वर्ष 2019-20 के बजट से साफ हो गया। पिछले पांच सालों से पार्टी उत्तराखंड में एकतरफा वर्चस्व कायम किए हुए है। लोकसभा की पांचों और विधानसभा की 70 में से 57 सीटों पर भाजपा काबिज है। अब आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के समक्ष अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने का भारी दबाव है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पेश बजट में सरकार की यह चिंता साफ तौर पर झलकी है। यही वजह है कि वित्त मंत्री प्रकाश पंत की बजट की पोटली से राज्य के सभी हिस्सों और समाज के हर तबके के लिए कुछ न कुछ निकला। खेती-किसानी पर फोकस तो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को खास तवज्जो, साथ ही युवावर्ग और महिलाओं के लिए सौगात, यानी वोटर को फील गुड अहसास कराने की भरपूर कोशिश।
लोक लुभावन बनाने की रही चुनौतीउत्तराखंड सरकार के लिए यह तीसरा बजट है लेकिन लोकसभा चुनाव की बेला होने के कारण इसे लोक लुभावन बनाने की बड़ी चुनौती सामने थी। कम से कम इस पैमाने पर तो वित्त मंत्री प्रकाश पंत खरे उतरे। केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार ने बजट में जनता को सीधे प्रभावित करने के लिए प्रावधान तो किए ही, साथ ही इसका स्वरूप दूरगामी परिणाम देने वाला भी रखा गया। राज्य में किसी भी तरह के नए कर लगाने की बजाए राजस्व स्रोतों से आय बढ़ाने पर फोकस किया गया। ढांचागत विकास के साथ ही खेती-किसानी को खास तवज्जो दी गई है, ठीक उसी तरह, जिस तरह केंद्र ने अपने अंतरिम बजट में इस सेक्टर को तरजीह दी। दरअसल, पिछले दिनों तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में जिस तरह खेती और किसानों को लेकर भाजपा को कांग्रेस के हाथों मात खानी पड़ी, उसने उत्तराखंड सरकार को समय रहते सतर्क कर दिया।
बड़े वोट बैंक पर सीधी नजरवित्त मंत्री प्रकाश पंत द्वारा पेश बजट में कृषि और किसानों को खासी तरजीह दी गई है। लगभग सवा करोड़ की आबादी वाले उत्तराखंड में आठ लाख से ज्यादा किसान हैं। अगर एक किसान परिवार में चार सदस्य भी माने जाएं तो सीधे-सीधे 25 फीसद आबादी बजट प्रावधानों से प्रभावित हो रही है। सूबे की आधी आबादी, यानी महिलाओं के लिए भी बजट में कई तोहफे हैं। मसलन, महिला उद्यमियों के लिए विशेष प्रोत्साहन योजना, किशोरियों के लिए योजना, नंदा-गौरा योजना, महिला कौशल विकास की संकल्प योजना बजट पोटली से निकली हैं। बोरोजगारी दूर करने और युवा वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए बजट में मनरेगा और वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना का सहारा लिया गया है। इसके अलावा महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास के लिए भारी भरकम बजट प्रावधान, अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्र-छात्राओं और दिव्यांगों के लिए छात्रवृत्ति बजट का हिस्सा हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के लिए किए गए प्रावधानों को भी सरकार की इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।
क्षेत्रीय आधार भी साधा संतुलनमहत्वपूर्ण बात यह है कि समाज के सभी वर्गों के साथ ही क्षेत्रीय आधार पर भी बजट में संतुलन साधने की कवायद की गई है। कृषि क्षेत्र और किसानों के लिए बजट पिटारे से जो कुछ निकला, वह सीधे तौर पर राज्य के दो मैदानी लोकसभा क्षेत्रों हरिद्वार और नैनीताल को प्रभावित करेगा। राष्ट्रीय उद्यान मिशन, जायका परियोजना, पर्यटन विकास की होम स्टे योजना पहाड़ी भूगोल के तीन लोकसभा क्षेत्रों अल्मोड़ा, पौड़ी व टिहरी गढ़वाल में सरकार के लिए संबल का काम करेंगी। इसी तरह शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में सभी जिलों का ध्यान रखा गया है। साफ है कि त्रिवेंद्र सरकार के इस बजट में सूबे की पांचों लोकसभा सीटों को साधने के लिए वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने खासी मशक्कत की है। अब यह मतदाता के पैमाने पर कितनी खरी उतर पाती है, यह तो चुनाव के नतीजों के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।
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