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रेडियोलॉजिस्ट का पंजीकरण तीन माह के लिए निलंबित, एक माह प्रशिक्षण की हिदायत; जानिए पूरा मामला

गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में कमी न देख पाने को एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों ने रेडियोलॉजिस्ट की चूक माना है। अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2डी में किसी तरह का संदेह होने पर रेडियोलॉजिस्ट को 3डी अल्‍ट्रासाउंड की सलाह देनी चाहिए थी।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Mon, 19 Oct 2020 10:55 PM (IST)
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रेडियोलॉजिस्ट का पंजीकरण तीन माह के लिए निलंबित।
देहरादून, जेएनएन। गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में कमी न देख पाने को एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों ने रेडियोलॉजिस्ट की चूक माना है। अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2डी में किसी तरह का संदेह होने पर रेडियोलॉजिस्ट को 3डी अल्‍ट्रासाउंड की सलाह देनी चाहिए थी। न कि इसे सामान्य रिपोर्ट कहना था। उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल की अनुशासनात्मक समिति ने इस आधार पर आहूजा पैथोलॉजी एंड इमेजिंग सेंटर में कार्यरत रेडियोलॉजिस्ट डॉ. (ले कर्नल) मलय जोशी 

को चिकित्सीय लापरवाही का दोषी माना है। चिकित्सक का पंजीकरण तीन माह के लिए निलंबित कर दिया है। उन्हें हिदायत दी है कि निलंबन अवधि में अपनी इच्छा अनुरूप किसी सक्षम केंद्र से एक माह के लिए पुन: रेडियोलॉजी का प्रशिक्षण प्राप्त करें। साथ ही आहूजा पैथोलॉजी एंड इमेजिंग सेंटर को चेतावनी दी गई है कि वह भविष्य में अपने संस्थान में कुशल रेडियोलॉजिस्ट को ही नियुक्त करें। 

दरअसल, 28 जनवरी 2019 को बबीता पाठक पत्नी प्रमोद पाठक ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी के यहां मामले की शिकायत की थी, जिसमें कहा गया था कि वह 19 सप्ताह की गर्भवती थी तब आहूजा पैथोलॉजी एंड इमेजिंग सेंटर पर अल्ट्रासाउंड कराया था। इस जांच के बाद इमेजिंग सेंटर ने रिपोर्ट दी थी कि बच्चा पूर्णतया स्वस्थ है। इसके बाद 29 अक्टूबर 2018 को उन्होंने पुत्र को जन्म दिया तो उसके होंठ और तालु कटे हुए थे। यही नहीं उसका हृदय भी निर्धारित स्थान से अलग (दाईं तरफ) था और अस्वस्थ था। ऐसे में जब उन्होंने इसकी शिकायत इमेजिंग सेंटर में की तो उन्होंने भी इसकी गलती मानी, लेकिन बाद में सेंटर संचालक अपनी बात से पलट गए। 

मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय ने भी दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के विशेषज्ञों से मामले की जांच कराई थी। उन्होंने माना था कि रेडियोलॉजिस्ट के स्तर पर चूक हुई है। इधर, उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल ने एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों से इस मामले में राय ली। उन्होंने भी कहा है कि भ्रूण में इस कमी न देख पाना रेडियोलॉजिस्ट की चूक है। अगर रेडियोलॉजिस्ट चाहता तो महिला को एडवांस जांच के लिए कह सकता था। महिला के पति प्रमोद पाठक का कहना है कि इस मामले में आहूजा पैथोलॉजी एंड इमेजिंग सेंटर पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि लोग उसी के नाम पर टेस्ट कराने जाते हैं न कि किसी डॉक्टर या स्टाफ के नाम पर।

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वहीं, डॉ. (ले कर्नल) मलय जोशी का कहना है कि अल्ट्रासाउंड में गर्भस्थ शिशु के कटे होंठ और तालु देखने की संभावना 93 फीसद तक रहती है। जब इस जांच की विश्वसनीयता ही सौ प्रतिशत नहीं है, तो फिर रेडियोलॉजिस्ट द्वारा किसी केस में उसे न देख पाना लापरवाही कैसे हुई। चिकित्सा विज्ञान की निहित सीमाओं के चलते किसी दुर्घटना के कारण एक चिकित्सक को दंडित करना वैधानिक, वैज्ञानिक और मानवीय तौर पर गलत है। मैं इस निर्णय को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में चुनौती दूंगा और मुझे विश्वास है कि सत्य की विजय होगी। 

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