खुद तो वर्षा जल बचाया, नहीं सिखा पाए दूसरों को
जल संस्थान ने वर्षा जल संरक्षण के जो उपाय किए उसे दूसरों पर लागू कराने में यह महकमा विफल रहा।
By BhanuEdited By: Updated: Fri, 22 Jun 2018 08:50 PM (IST)
देहरादून, [दीपिका नेगी]: दून में बाह्य जल स्रोत्रों के सिमटने और भूजल के अत्यधिक दोहन के चलते भविष्य में पेयजल की भारी किल्लत तय है। आज और अभी हमें जल संरक्षण का हर संभव प्रयास अपनाना होगा। अभी नहीं जागे तो भविष्य बेहद भयावह हो सकता है। जल संस्थान ही नहीं आम जन भी ये बात बखूबी जानता है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके बावजूद आमजन तो छोड़िए, जिम्मेदार महकमे भी इस ओर गंभीर नजर नहीं आते। बात करें जल संरक्षण की तो बारिश के पानी को बचाना बेहद आसान और कारगर तरीका है। ऐसा भी नहीं कि जल संस्थान ने प्रयास नहीं किए। मुख्यालय परिसर में 30 हजार लीटर क्षमता का रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। उससे रोजाना करीब 600 लीटर पानी भी मिल रहा है, लेकिन यह सूक्ष्म प्रयास महज जल संस्थान के व्यक्तिगत उपयोग तक सीमित है। ऐसे में जल संस्थान को इस तरह के और सिस्टम विकसित करने और अन्य विभागों के साथ ही आमजन को जागरूक करने की जरूरत है।
जल संस्थान मुख्यालय में 2008 में लगाया गया वाटर हार्वेस्टिंग जल संचय की दिशा में एक अच्छा प्रयास साबित तो हो रहा है, लेकिन यह नाकाफी है। ऐसे और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। जल संस्थान टैंक में वर्षा जल जमा कर शुद्धीकरण के बाद इसका उपयोग कई कार्यों के लिए करता है।
संस्थान में काम करने वाले करीब 55 कर्मचारी रोजाना इस पानी का उपयोग कर रहे हैं। अब बात करें जिम्मेदारी की तो जल संस्थान को ही अन्य विभागों को आम जन में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति जागरूकता पैदा करनी होगी।
खराब पड़ा सिस्टम
दिलाराम चौक स्थित वाटर वर्कस में भी एक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है, लेकिन यह ठप पड़ा है। दरअसल, एडीबी के निर्माण कार्य के दौरान पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हुई तो सिस्टम ठप हो गया। अब यहां बारिश का पानी यूं ही बर्बाद हो रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि जल संस्थान ने इसे ठीक कराने की जहमत ही नहीं उठाई। एडीबी का कार्य कई माह पूर्व पूरा हो चुका है, लेकिन क्षतिग्रस्त पाइप लाइन जस की तस है। ऐसे में विभाग की गंभीरता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
इसलिए जरूरी है वर्षा जल संचयदून में इस समय 200 से अधिक नलकूपों से भूजल का दोहन किया जा रहा है। पक्के भवनों के निर्माण के चलते लगातार भूजल पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इसके लिए वर्षा जल संचय बहुत जरूरी है। राज्य में सालभर में होने वाली वर्षा का जल नालों और नदियों में चला जाता है। जिससे भूजल रिचार्ज नहीं हो पाता। बेतरतीब निर्माण कार्यों के चलते शहरों में बारिश का पानी भू-गर्भ में जाने की बजाय नदियों और नालों के जरिये बाहर निकल जाता है।
वर्षा जल संरक्षण का तरीका-छत का चयन कर उसे साफ करें और इसका उपयोग वर्षा जल के संग्रह में करें
-एकत्र जल को पतनाली या निकासी पाइप के जरिये भूमि पर लाएं-प्रथम वर्षा के जल को बहा दें, ताकि धूल-मिट्टी निकल जाए
-दूसरी बारिश के बाद से संग्रहित जल का भूमि में बने जलाशय में भंडारण करें-जलाशय में एकत्र जल को विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग में लाएं
-जलाशय की क्षमता से अतिरिक्ति वर्षा जल को ओवर फ्लो पाइप से रिसाव द्वारा पुनर्भरण गड्ढे, कुएं या बोर वेल में संचित करें।जल संचयन और उपयोग
-दून में औसत वर्षा, 2077.99 मिमी-छत का क्षेत्रफल, 500 वर्गमीटर-वर्षा जल का संभव संचयन, 831 किलोलीटर-छनन टैंक, 1.25 घन मीटर-जलाशय की क्षमता, 30 किलोलीटर-वर्षा जल उपयोग, 600 लीटर-पुनर्भरण पिट, 2 मीटर व्यास, 4 मीटर गहरालोगों को होना पड़ेगा जागरुक जल संस्थान के महाप्रबंधक एसके शर्मा के मुताबिक आम जनता को भी वर्षा जल संचय के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। सभी को अपने-अपने स्तर से इसकी शुरुआत करनी चाहिए। क्योंकि दून में पक्के निर्माण के जलते भू जल लगातार घट रहा है। विभाग की ओर से भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।यह भी पढ़ें: इस मानसून से सरकारी भवन सहेजने लगेंगे वर्षा जलयह भी पढ़ें: उत्तराखंड में इस संस्था की पहल से चहक उठे 52 सूखे जल धारेयह भी पढ़ें: इस गांव का हर शख्स बना मांझी, पहाड़ का सीना चीर खुद लिखी तकदीर
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