राजभवन से लौटे विधेयक पर सरकार के रुख का इंतजार, कुलपति की नियुक्ति में सरकार के हस्तक्षेप से सहमत नहीं राजभवन
आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा जताया जा रहा था। उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक में सरकार के प्रविधानों को राजभवन ने अपने अधिकारों पर अतिक्रमण माना है। राजभवन की ओर से लौटाए गए विधेयक पर अब सरकार क्या रुख लेती इसका इंतजार किया जा रहा है।
By Sumit KumarEdited By: Updated: Mon, 21 Dec 2020 04:37 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादूनः आखिर वही हुआ, जिसका अंदेशा जताया जा रहा था। उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक में सरकार के प्रविधानों को राजभवन ने अपने अधिकारों पर अतिक्रमण माना है। राजभवन की ओर से लौटाए गए विधेयक पर अब सरकार क्या रुख लेती, इसका इंतजार किया जा रहा है। राज्य बनने के 20 वर्ष बाद सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए अंब्रेला एक्ट की कवायद फिलहाल राजभवन की कार्रवाई के बाद खटाई में पड़ गई है। दरअसल सरकार ने बीते 23 सितंबर को एक दिनी विधानसभा सत्र में राज्य विश्वविद्यालय विधेयक पारित किया था। इस विधेयक को मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया था। राजभवन ने इसे लौटा दिया है। उक्त विधेयक में कुलपति के चयन को लेकर सरकार की ओर से जोड़े गए नए प्रविधानों पर राजभवन को आपत्ति है। यह माना जा रहा है कि सरकार ने राजभवन के अधिकारों में कटौती की है। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने लौटाए गए विधेयक के साथ अपने पत्र में यह टिप्पणी की है। उन्होंने विश्वविद्यालयों में सरकार के न्यूनतम हस्तक्षेप की पैरवी की। साथ ही इस पैरवी के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस संबंध में नई शिक्षा नीति को लेकर दिए गए संदेश का भी जिक्र किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी विश्वविद्यालयों में सरकार का हस्तक्षेप कम रखने पर जोर दिया है।
दरअसल राजभवन ने कुलपति के चयन को गठित की जाने वाली सर्च कमेटी में सरकार का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। सर्च कमेटी के तीन सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर पांच किया गया है। अभी तक सर्च कमेटी में राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर उच्च शिक्षा प्रमुख सचिव, एक प्रतिनिधि राजभवन और एक प्रतिनिधि यूजीसी की ओर से नामित किए जाते हैं। उक्त विधेयक में सर्च कमेटी में सरकार के प्रतिनिधियों की संख्या अधिक होने की स्थिति में बहुमत के आधार पर सरकार के फैसले पर मुहर लगने की संभावना रहेगी। हालांकि उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ धन सिंह रावत इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि सर्च कमेटी की सदस्य संख्या बढ़ाने से कुलपति पद के लिए आवेदन करने वालों की छंटनी अच्छे तरीके से हो सकेगी। पिछला अनुभव ये रहा है कि समिति में सदस्य संख्या कम होने से इस कार्य में अपेक्षित परीक्षण नहीं किया जा सका। डॉ रावत ने कहा कि कुलपति की नियुक्ति राज्यपाल ने करनी है। सर्च कमेटी का काम सिर्फ संस्तुति करना है। उन्होंने कहा कि राजभवन की आपत्तियों का परीक्षण करने के बाद सरकार आवश्यक कदम उठाएगी। उक्त विधेयक में अनुदान की व्यवस्था के लिए प्रविधान को शामिल नहीं किए जाने का सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेज विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार सहायताप्राप्त अशासकीय कॉलेजों को अनुदान देने से बचना चाहती है।
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इन कॉलेजों के शिक्षकों ने राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया था। बताया जा रहा है कि राजभवन ने इस बारे में सरकार से विचार करने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल के संदेश के साथ लौटाए गए इस विधेयक पर अब सरकार को फैसला लेना है। सरकार यदि इस विधेयक को दोबारा विधानसभा से पारित कर राज्यपाल को भेजती है तो इसे मंजूरी देना राज्यपाल के लिए बाध्यकारी हो जाएगा। सरकार राजभवन की आपत्तियों के निराकरण को विचार-विमर्श कर रही है।
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