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राजाजी टाइगर रिजर्व में क्षमता से ज्यादा हाथी तो बाघ आधे से कम, पढ़िए पूरी खबर

अप्रैल 2015 में अस्तित्व में आए राजाजी टाइगर रिजर्व में धारण क्षमता से अधिक हाथी हैं जबकि बाघ आधे से भी कम। वन विभाग द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान से कराए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 24 Nov 2020 04:49 PM (IST)
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राजाजी टाइगर रिजर्व में धारण क्षमता से अधिक हाथी हैं, जबकि बाघ आधे से भी कम।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। अप्रैल 2015 में अस्तित्व में आए राजाजी टाइगर रिजर्व में धारण क्षमता से अधिक हाथी हैं, जबकि बाघ आधे से भी कम। वन विभाग द्वारा भारतीय वन्यजीव संस्थान से कराए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक रिजर्व के 820 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों का मुख्य बसेरा है और इसकी धारण क्षमता 225 हाथी है। इसके विपरीत वहां वर्तमान में इनकी संख्या 311 है। बाघों को लें तो रिजर्व के पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र में इनकी मौजूदगी है। 557 वर्ग किमी के इस इलाके में 83 बाघ रह सकते हैं, लेकिन वर्तमान में वहां इनकी तादाद तीन दर्जन के करीब ही है।

असल में राजाजी टाइगर रिजर्व के पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र की चीला, रवासन, गौहरी रेंज और इनसे सटे क्षेत्रों में ही बाघों की मौजूदगी है। पार्क के दक्षिणी हिस्से में पडऩे वाले मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र इस लिहाज से सूना-सूना ही है। इसे देखते हुए वहां कार्बेट टाइगर रिजर्व से बाघ शिफ्ट करने की कसरत चल रही है। इसके अलावा एशियाई हाथियों के लिए प्रसिद्ध इस रिजर्व से लगे क्षेत्रों में हाथियों का उत्पात परेशाानी का सबब बना है।

इस सबको देखते हुए राज्य वन्यजीव बोर्ड की 29 जून को हुई बैठक में राजाजी में बाघ व हाथियों की धारण क्षमता का अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया था। इसके बाद वन महकमे ने भारतीय वन्यजीव संस्थान से यह अध्ययन कराया। इसकी रिपोर्ट विभाग को मिल चुकी है। इसके मुताबिक रिजर्व के पूर्वी-पश्चिमी क्षेत्र में करीब सात वर्ग किमी इलाके में एक बाघ रह सकता है। इसी प्रकार हाथियों की धारण क्षमता का निर्धारण भी किया गया है।

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राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार राजाजी में बाघ व हाथियों के धारण करने की क्षमता का पता चलने के बाद अब वासस्थल विकास पर खास फोकस किया जाएगा। रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने को कार्बेट से पांच बाघ यहां शिफ्ट करने की कवायद जल्द परवान चढ़ेगी। इसके साथ ही हाथियों की आवाजाही के परंपरागत गलियारे खोलने की दिशा में भी कसरत चल रही है।

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