जानें इस गांव की कहानी: पनीर उत्पादन में बनाई खास पहचान, हर महीने कमा लेते हैं इतना; युवा नहीं करते पलायन
रौतू की बेली गांव वर्तमान में पनीर उत्पादन के लिए चर्चाओं में है। पनीर बेचकर गांव का प्रत्येक परिवार प्रतिमाह 15 हजार से लेकर 35 हजार रुपये तक की आय अर्जित कर रहा है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 06 Sep 2020 09:54 PM (IST)
मसूरी(देहरादून), सूरत सिंह रावत। पर्वतीय काश्तकार अब नकदी फसलों के साथ ही दुग्ध निर्मित उत्पादों में भी नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। पहाड़ों की रानी मसूरी से सटा टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक का ऐसा ही एक गांव है रौतू की बेली। मसूरी-उत्तरकाशी मार्ग पर सुवाखोली से मात्र पांच किमी और मसूरी से 17 किमी दूर समुद्रतल से 6283 फीट की ऊंचाई पर बसा रौतू की बेली गांव वर्तमान में पनीर उत्पादन के लिए चर्चाओं में है। पनीर बेचकर गांव का प्रत्येक परिवार प्रतिमाह 15 हजार से लेकर 35 हजार रुपये तक की आय अर्जित कर रहा है।
250 परिवारों वाले इस गांव की आबादी 1500 के आसपास है। गांव के ऊपर बांज, बुरांश, देवदार व चीड़ का घना जंगल है, जो ग्रामीणों को पशुओं के लिए भरपूर चारा उपलब्ध कराता है। यही वजह है कि गांव के 90 फीसद परिवार पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। पनीर उत्पादन से जुड़े रौतू की बेली निवासी पूर्व प्रमुख कुंवर सिंह पंवार बताते हैं कि पहले गांव के 35 से 40 परिवार ही पनीर बनाते थे। लेकिन, अब लगभग सभी परिवार इस व्यवसाय से जुड़ चुके हैं। हर परिवार रोजाना दो से चार किलो तक पनीर तैयार कर लेता है। अब तो गांव के युवा भी रोजगार के लिए शहरों का रुख करने के बजाय पनीर उत्पादन में ही रुचि दिखाने लगे हैं।
रौतू की बेली के प्रधान भाग सिंह भंडारी बताते हैं कि ग्रामीण पहले मसूरी और देहरादून जाकर दूध बेचा करते थे। लेकिन, जब उन्होंने कुछ ग्रामीणों को मसूरी के बाजार में पनीर बेचते देखा तो स्वयं भी इसमें हाथ आजमाना शुरू किया। उनका तैयार किया पनीर मसूरीवासियों को इस कदर भाया कि धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ती चली गई। अब तो ग्रामीणों ने दूध बेचने की जगह पनीर बनाने पर ही अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया है।
भंडारी के अनुसार मसूरी-भवान मोटर मार्ग के नगुन-उत्तरकाशी मोटर मार्ग से जुड़ने के बाद तो रौतू की बेली के पनीर को खासी प्रसिद्धि मिली। इसी का नतीजा है कि रौतू की बेली गांव आज 'उत्तराखंड के पनीर गांव' नाम से जाना जाने लगा है। स्थिति यह है कि आसपास के गांवों में ही एक किलो पनीर के 220 से 240 रुपये तक कीमत मिल जाती है।
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रौतू की बेली निवासी मेहरबान सिंह भंडारी बताते हैं कि ग्रामीण नकदी फसलों, जैसे- गोभी, मूली और आलू के साथ ही पुलम, खुबानी, नाशपाती, सेब आदि फलों का उत्पादन भी करते हैं। गांव के सड़क मार्ग से जुड़े होने के कारण फल-सब्जियों को मसूरी, देहरादून और उत्तरकाशी के बाजार तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।यह भी पढ़ें: कोरोना काल में अटाल के शिक्षकों की नई पहल, विद्यार्थियों के घर जाकर उनकी पढ़ाई में कर रहे मदद
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