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उत्‍तराखंड की भाजपा सरकार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन याद दिलाया

राजभवन की नसीहत काम कर गई। सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए लाए गए राज्य विश्वविद्यालय विधेयक में कुलपति की नियुक्ति को लेकर कुछ प्रविधानों पर राजभवन को आपत्ति थी। विधेयक में ये प्रविधान था कि राज्यपाल सरकार की सहमति से कुलपति की नियुक्ति करेंगे। राज्यपाल ने अपने अधिकारों पर हमला माना।

By Sunil Singh NegiEdited By: Updated: Thu, 31 Dec 2020 02:05 PM (IST)
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राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति में अब सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा।

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। राजभवन की नसीहत काम कर गई। सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए लाए गए राज्य विश्वविद्यालय विधेयक में कुलपति की नियुक्ति को लेकर कुछ प्रविधानों पर राजभवन को आपत्ति थी। विधेयक में ये प्रविधान था कि राज्यपाल सरकार की सहमति से कुलपति की नियुक्ति करेंगे। राज्यपाल ने इसे अपने अधिकारों पर हमला माना। आपत्ति के साथ विधेयक लौटाया गया। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने वापस किए गए विधेयक के साथ पत्र भेज कर प्रदेश की भाजपा सरकार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन याद दिलाया। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता की पुरजोर पैरवी कर चुके हैं। अब भला प्रधानमंत्री की सीख को दरकिनार करने का जोखिम कौन उठाता। सरकार ने उक्त प्रविधान पर कदम पीछे खींच लिए। विधेयक में संशोधन कर राज्य सरकार की सहमति को हटा दिया गया है। उम्मीद की जा रही है कि संशोधित विधेयक पर राजभवन की मुहर लग सकेगी। 

तबादलों में काउंसिलिंग की फरमाइश

शिक्षकों के बीच लंबे समय से छिड़ी बहस निदेशालय से होते हुए शिक्षा मंत्रालय तक पहुंची है। शिक्षक चाहते हैं कि तबादले और पदोन्नति में काउंसिलिंग को अनिवार्य किया जाए। हालांकि तबादला एक्ट और विभागीय नियमावली में ये प्रविधान नहीं हैं। हाईकोर्ट का आदेश और फिर कोराना संकट ने एलटी से प्रवक्ता पदों पर पदोन्नत शिक्षकों की तैनाती में अड़ंगा लगा दिया था। इसमें एक पेच अतिथि शिक्षकों को रिक्त पदों पर नियुक्ति देने की वजह से भी फंस गया था। लंबी जिद्दोजहद के बाद आखिरकार ये सहमति बनी कि पदोन्नत शिक्षकों को काउंसिलिंग के जरिये तैनाती दी जाएगी। अतिथि शिक्षकों का मसला सुलझने से पदोन्नत शिक्षकों ने भी राहत की सांस ली। उनकी तैनाती की समस्या का समाधान ढूंढ निकाला गया। कोरोना महामारी देखते हुए जो राह तैयार की गई, शिक्षकों को रास आ रही है। इस व्यवस्था को जारी रखने में तबादला एक्ट में संशोधन की दरकार होगी। 

फिर खफा हो गए निशंक

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक फिर खफा हैं। उनके संसदीय क्षेत्र हरिद्वार के जगजीतपुर में मेडिकल कॉलेज का निर्माण अब तक शुरू नहीं हो सका है। वह भूमि का मुआयना नहीं कर सके। मेडिकल कॉलेज प्राचार्य और जिलाधिकारी के साथ बैठक में उन्हें बताया गया कि कॉलेज संबंधी कार्यादेश अभी तक नहीं हुआ। कार्मिकों की नियुक्तियों में  अड़ंगा लगा है। केंद्र से मेडिकल कॉलेज निर्माण को धनराशि जारी होने और भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद ये लेटलतीफी उन्हें रास नहीं आ रही। केंद्रीय मंत्री और क्षेत्रीय सांसद के तेवरों से जिला प्रशासन और शासन में हड़कंप है। इससे पहले एनआइटी श्रीनगर के निर्माण कार्यों में हीलाहवाली देखकर डॉ निशंक नाराज हो गए थे। उन्होंने कार्यदायी संस्था को बदलने की चेतावनी दे डाली थी। साथ ही निर्माण कार्यों की नियमित रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। इसके बाद निर्माण कार्य में कुछ प्रगति दिखाई देने लगी है।

कुलसचिव की तैनाती से बखेड़ा

राज्य विश्वविद्यालयों में कुलसचिवों को लेकर गाहे-बगाहे बखेड़ा खड़ा हो जाता है। इस समस्या का तोड़ नहीं ढूंढा जा सका है। जिन कुलसचिवों की तैनाती विश्वविद्यालयों में की जा रही है, कुलपतियों के साथ उनका तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। शासन ने श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर सुधीर बुड़ाकोटी की तैनाती की। कुलपति प्रो पीपी ध्यानी को उनकी कार्यप्रणाली रास नहीं आई। खासतौर पर बगैर बताए कार्यालय से नदारद रहना। उन्होंने शासन और राजभवन से कुलसचिव की शिकायत कर दी। राजभवन ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए सरकार को हिदायत दी कि इस मामले में तेजी से कार्रवाई की जाए। इसकी सूचना राजभवन को भी दी जाए। आखिरकार दबाव बढ़ा तो सरकार को बुड़ाकोटी को हटाना पड़ा। उन्हें सचिवालय से अटैच किया गया है। अब वह शासन में तमाम विधिक मामलों का कामकाज देखेंगे, यानी कोर्ट-कचहरी से संबंधित पेचीदा कामकाज उनके सुपुर्द किए गए हैं। 

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