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Rishikesh-Karnprayag Rail Project : यहां बन रही देश की सबसे लंबी डबल ट्यूब रेल सुरंग, जर्मनी से आई मशीन

Rishikesh-Karnprayag Rail Project देश की सबसे लंबी डबल ट्यूब रेल सुरंग के निर्माण में टनल बोरिंग मशीन की मदद ली जा रही है। यह मशीन जर्मनी से लाई गई है। यह रेल सुरंग डबल ट्यूब (आने-जाने के लिए अलग-अलग सुरंग) होगी।

By Nirmala BohraEdited By: Updated: Fri, 05 Aug 2022 09:21 AM (IST)
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Rishikesh-Karnprayag Rail Project : डबल ट्यूब होगी रेल सुरंग। जागरण

दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश: Rishikesh-Karnprayag Rail Project : महत्वाकांक्षी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना पर बनने वाली देश की सबसे लंबी डबल ट्यूब रेल सुरंग (14.08 किमी) के निर्माण में टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) की मदद ली जा रही है।

इसके लिए जर्मनी में तैयार दो टीबीएम भारत पहुंच चुकी हैं। शीघ्र ही इन्हें निर्माण स्थल पर पहुंचाकर रि-असेंबल किया जाएगा। दो माह की इस प्रक्रिया के बाद दिसंबर से यह मशीन टनलिंग का काम शुरू कर देंगी।

16216 करोड़ की लागत से तैयार हो रही 125 किमी लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना (Rishikesh-Karnprayag Rail Project) की 105 किमी रेल लाइन 17 सुरंगों के भीतर से गुजरेगी। देश में अब तक की सबसे लंबी (14.08 किमी) रेल सुरंग भी इसी परियोजना पर तैयार हो रही है।

डबल ट्यूब होगी रेल सुरंग (Train Tunnel)

देवप्रयाग (सौड़) से जनासू तक यह रेल सुरंग डबल ट्यूब (आने-जाने के लिए अलग-अलग सुरंग) होगी। इन दोनों टनल की खोदाई के लिए अत्याधुनिक तकनीकी से निर्मित टीबीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है। 14.8 किमी लंबी इन टनल का 11 किमी हिस्सा टीबीएम और शेष हिस्सा ड्रिल व ब्लास्ट तकनीकी से तैयार होगा।

परियोजना पैकेज-4 के इस कार्य को देश की प्रतिष्ठित कंपनी एलएंडटी कर रही है। एलएंडटी ने करीब एक वर्ष पूर्व जर्मनी की कंपनी हेरान कनेक्ट से दो मशीन तैयार करने का करार किया था। अब दोनों टीबीएम तैयार होकर समुद्री मार्ग से भारत पहुंच चुकी हैं। भू-संरचना और टनल के आकार के हिसाब से इन मशीनों को डिजाइन किया गया है।

रेल विकास निगम (Rishikesh-Karnprayag Rail Project) के वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश मालगुड़ी ने बताया कि दोनों मशीन अलग-अलग हिस्सों में भारत पहुंची हैं। इन्हें अब निर्माण स्थल तक पहुंचाया जाना है, जहां इन्हें दोबारा रि-असेंबल किया जाएगा। इस कार्य में करीब दो माह का समय लगेगा। दिसंबर 2022 में इन टीबीएम मशीनों से टनलिंग का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।

स्लेटी चट्टान होने के कारण करना पड़ रहा टीबीएम का इस्तेमाल

हिमालयी क्षेत्र में प्रत्येक जगह अलग-अलग भू-संरचना है। देवप्रयाग से जनासू तक जहां सबसे लंबी डबल ट्यूब रेल सुरंग का निर्माण होना है, वहां भूगर्भ में स्लेटी चट्टान हैं। इन्हें फिलाइट राक के नाम से जाना जाता है।

यह स्लेटी चट्टान पानी आने की स्थिति में फिसलने लगती हैं, जिससे ड्रिल व ब्लास्ट तकनीकी से यहां टनल निर्माण करना चुनौतीपूर्ण होता है।

इसलिए यहां टीबीएम के जरिये टनल तैयार करने का निर्णय लिया गया। वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश मालगुड़ी बताते हैं कि टीबीएम तकनीकी से छह से दस मीटर सुरंग रोजाना तैयार की जा सकती है।

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