Road Safety With Jagran: सड़कों पर पैराफिट बनें और जंक्शन सुधरें, तो बनेंगी बात
Road Safety With Jagran उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाएं अधिक घातक हो रही हैं। हर साल एक हजार से अधिक हादसे हो रहे हैं। इसमें 700 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। दुर्घटनाओं को रोकने को कदम उठाए जा रहे हैं पर इनकी रफ्तार धीमी है।
By Vikas dhuliaEdited By: Sunil NegiUpdated: Fri, 25 Nov 2022 08:18 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादून: Road Safety With Jagran: उत्तराखंड को भले ही प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है, लेकिन सड़क दुर्घटनाएं यहां अधिक घातक साबित हो रही हैं। हर साल हो रहे एक हजार से अधिक हादसों में सात सौ से अधिक लोग काल का ग्रास बन रहे हैं। सरकारी आंकड़े ही इसकी गवाही दे रहे हैं। यद्यपि, दुर्घटनाओं की रोकथाम को कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन इनकी रफ्तार धीमी है।
पहाड़ी मार्गों पर पैराफिट का अभाव खटकता है, तो मैदानी क्षेत्रों में सड़कों पर जंक्शन की स्थिति अच्छी नहीं है। यदि इन दोनों विषयों पर भी ठीक से ध्यान केंद्रित कर लिया जाए तो स्थिति में काफी हद तक सुधार लाया जा सकता है।दैनिक जागरण के महाभियान के तहत राज्य के राष्ट्रीय व राज्य राजमार्गों, संपर्क मार्गों पर किए गए सर्वे में यह बात मुख्य रूप से उभरकर आई। इसके अलावा सड़कों की खराब हालत, डिजाइन में खामी, वाहनों में ओवरलोडिंग, संकेतकों का अभाव, जांच की पुख्ता व्यवस्था न होने जैसे कारण भी सामने आए हैं। पहाड़ी मार्गों पर उभर रहे नित नए भूस्खलन जोन भी मुसीबत का कारण बन रहे हैं।
उत्तराखंड की दौड़ती-भागती सड़कों की पड़ताल की
यह किसी से छिपा नहीं है कि सड़कें किसी भी क्षेत्र की तरक्की की पहली सीढ़ी होती हैं। सड़क अच्छी होगी तो नागरिक सुविधाएं विकसित होने के साथ ही रोजगार, स्वरोजगार के अवसर भी सृजित होते हैं। इस दृष्टिकोण से देखें तो उत्तराखंड के हालात बहुत बेहतर नहीं कहे जा सकते। 'दैनिक जागरण' ने विशेषज्ञों को साथ लेकर उत्तराखंड की दौड़ती-भागती सड़कों की पड़ताल की तो उसमें यही बात प्रमुखता से उभरकर आई। निश्चित रूप से सड़कों का जाल बिछ रहा है, लेकिन निर्माण, सुविधा और सुरक्षा के मोर्चे पर अभी बहुत काम होना बाकी है।
निर्माणीधीन मार्ग दे रहे हादसों को न्योता
सर्वे में राज्य के दोनों मंडलों, गढ़वाल व कुमाऊं में 1643 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, 1678 किलोमीटर राज्य राजमार्ग और 704 किलोमीटर आंतरिक मार्गों की पड़ताल की गई। राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही 141 से अधिक सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र मिले। खासकर निर्माणीधीन मार्गों पर ये हादसों को न्योता दे रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल पैराफिट और क्रैश बैरियर का भी है। पहाड़ी हिस्से में 400 किमी से अधिक हिस्से में क्रैश बैरियर और पैराफिट का अभाव की जानकारी सामने आई।कहीं सड़क क्षतिग्रस्त, तो कहीं हैं गड्ढे
अब राज्य राजमार्गों को देखें तो इसमें लगभग 600 किमी मार्ग की स्थिति अच्छी नहीं पाई गई। कहीं सड़क क्षतिग्रस्त है, तो कहीं गड्ढे मुसीबत का सबब बने हैं। इसके अलावा मैदानी और पर्वतीय क्षेत्र के लगभग सौ किलोमीटर क्षेत्र में धुंध व पाला भी दिक्कत के रूप में सामने आया है। मैदानी क्षेत्रों में अवैध कट के अलावा आंतरिक सड़कों का संकरा होना, बाटलनेक का सुदृढ़ीकरण न होना भी बड़ी समस्या के रूप में उभरे हैं। विशेषज्ञों ने भी इस बात पर जोर दिया कि सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए यदि इन बिंदुओं पर ठीक से ध्यान केंद्रित कर दिया जाए तो स्थिति में काफी हद तक सुधार हो जाएगा।
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