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Road Safety With Jagran: सड़क दुर्घटनाओं में घायलों की मदद में लोग की हिचक हावी

Road Safety With Jagran सड़क दुर्घटना के दौरान घायलों की मदद में अब भी नागरिकों में हिचक हावी है। सरकार ने नागरिकों को गुड समारिटन (अच्छे शहरी) बनाने की दिशा में अब प्रयास शुरू किए हैं। लेकिन अभी इसका असर नहीं दिख रहा।

By Jagran NewsEdited By: Sunil NegiUpdated: Thu, 24 Nov 2022 01:33 PM (IST)
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सड़क दुर्घटना के दौरान घायलों की मदद के लिए एंबुलेंस और पुलिस को पहुंचने में वक्त लग जाता है।
जागरण संवाददाता, देहरादूनः Road Safety With Jagran: सड़क दुर्घटना के दौरान घायलों की मदद के लिए एंबुलेंस और पुलिस को पहुंचने में वक्त लग जाता है। ऐसे में गंभीर रूप से घायल व्यक्तियों की जान बचाने के लिए गोल्डन आवर के बीच उपचार देने की चुनौती बनी रहती है। घायल और अस्पताल के बीच के फासले को कम करने में जो सबसे अधिक मददगार हो सकते हैं, वह हैं आसपास के लोग।

हालांकि, इस दिशा में अब भी नागरिकों में हिचक हावी है। यह हिचक कई दफा सड़कों पर तड़पते व्यक्तियों के प्रति संवेदनहीनता के रूप में भी नजर आती है। इस हिचक को तोड़कर नागरिकों को गुड समारिटन (अच्छे शहरी) बनाने की दिशा में सरकार ने अब प्रयास शुरू किए हैं, लेकिन जिला स्तर पर अभी इसका असर नहीं दिख रहा।

सड़क दुर्घटना के दौरान घायलों की विभिन्न तरीके से मदद के लिए संबंधित व्यक्तियों को पुरस्कृत करने की योजना बनाई गई है, लेकिन इसका अपेक्षित प्रचार-प्रसार जिला स्तर पर नहीं दिख रहा। इसके अभाव में मदद के इच्छुक तमाम लोग भी शंकाओं से घिरे नजर आते हैं।

इसकी प्रमुख वजह यह कि दुर्घटना के कारणों की पड़ताल से अधिक पुलिसकर्मी मददगार से ही पूछताछ करने लगते हैं। आज की भागदौड़ भरी व्यस्त जिंदगी में हर कोई कोर्ट-कचहरी और पुलिस की पूछताछ से बचने की कोशिश करता है। ऐसे में पुलिस व सरकारी तंत्र यदि यह भरोसा कायम कर पाएं कि मददगार से पूछताछ नहीं की जाएगी तो गुड समारिटन हर सड़क पर खड़े दिख जाएंगे।

आठ व्यक्ति ही पुरस्कार के लिए मिले

गुड समारिटन के रूप में मददगार व्यक्तियों को पुरस्कार प्रदान करने के लिए पुलिस को देहरादून जिले से अब तक महज आठ व्यक्तियों के नाम ही मिल सके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सड़क दुर्घटनाओं के मुकाबले यह संख्या कितनी कम है।

ऐसे बना सकते हैं बड़ी संख्या में गुड समारिटन

  • घायल की मदद करने वाले व्यक्ति की इच्छा के बिना उनका नाम-पता न दर्ज किया जाए।
  • मददगार को बिना शर्त जाने दिया जाए।
  • अस्पताल में रुकने के लिए न कहा जाए।
  • मददगारों को किसी भी सिविल या आपराधिक मामले में शामिल न किया जाए। एमवी एक्ट-2019 के सेक्शन 134-ए में भी इन बातों का जिक्र है।
  • मददगारों को प्रोत्साहित किया जाए, उन्हें सम्मानित या पुरस्कृत किया जाए।

सरकारी तंत्र ही तोड़ सकता है हिचक

वरिष्ठ समाजशास्त्री एवं मनोविज्ञानी डा. हिमांशु शेखर का कहना है कि समाज में मददगारों की कमी नहीं है। लेकिन, सड़क दुर्घटनाओं के मुकदमे में पूछताछ व पुलिस के लिए बार-बार समय देने की अड़चन के चलते लोग आगे नहीं आते। इस अड़चन को स्वयं सरकारी तंत्र दूर कर सकता है। यदि नागरिक अपनी जिम्मेदारी ढंग से निभाएंगे तो इससे सरकार को ही मदद मिलेगी।

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