रुद्रेश्वर महादेव मंदिर की है ये खास मान्यता, जानिए
राजधानी देहरादून के नालापानी स्थित रुद्रेश्वर महादेव मंदिर का अपना अलग ही महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से शिव की आराधना करने पर मनोकामना पूरी होती है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 12 Aug 2018 06:51 PM (IST)
देहरादून, [जेएनएन]: नालापानी स्थित ऐतिहासिक रुद्रेश्वर महादेव मंदिर में दूर-दराज से लोग शिव के अभिषेक को पहुंचते हैं। विशेष रूप से सावन के महीने में यहां श्रद्धालु गंगाजल और दूध-दही से शिव का अभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से शिव की आराधना करने पर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर परिसर में चार रुद्राक्ष के पेड़ हैं। यहां हाथी, मोर, बंदर और कई तरह के वन्यजीव भी देखने को मिलते हैं।
दून का प्राचीन नाम द्रोणनगरी था। गुरु द्रोणाचार्य की तपस्थली और शिक्षा-दीक्षा से यहां का इतिहास जुड़ा हुआ है। रुद्रेश्वर महादेव मंदिर का नाम भी गुरु द्रोणाचार्य के नाम से जुड़ा है, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है। मान्यता है कि यहां गुरु द्रोणाचार्य ने पांडव और कौरवों को शास्त्रार्थ की शिक्षा दी थी। उन्होंने यहां एकादश शिवलिंग स्थापित किए थे, जो उत्तराखंड के अन्य किसी मंदिर में देखने को नहीं मिलते। तैयारियां
मंदिर समिति की ओर से सावन में पूजा-अर्चना के लिए विशेष व्यवस्था की गई है।उनके लिए भी भंडारे वगैरह का आयोजन किया जाएगा। रात्रि को ग्रामीणों की ओर से भव्य रुद्राभिषेक और जागरण किया जाएगा।
मंदिर के 102 वर्षीय महंत पूर्णानंद गिरी: महंत करीब 40 साल पहले सहारनपुर से आए थे। उनका कहना है कि रुद्रेश्वर महादेव में सच्ची श्रद्धा से शिव का चिंतन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां साक्षात शिव का वास है और कई भक्तों को इसकी अनुभूति भी होती है।
जगत सृष्टा परमात्मा का नाम शिव
जगत सृष्टा परमात्मा का नाम शिव है, जिसका अर्थ है कल्याण करने वाला। जब कल्याण करने वाले दो पदार्थों का विचार करते हैं, तब वह शिवतर हो जाता है। सारे ब्रह्मांड में यही सुख-शांति देने वाला है। इस कारण ऋषियों ने इसे शिवतम कहा है। शिव पापियों को आध्यात्मिक, आदि दैविक और आदि भौतिक शूल से मुक्त करते हैं, इसलिए उन्हें त्रिशूलधारी कहते हैं। शिव प्रलयकाल के देवता हैं, इसलिए उन्हें श्मशानवासी कहते हैं। वह संसार के विषों को पीने वाले हैं, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहते हैं। पाणिनी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने तांडव से 14 नाद और 14 सूत्र प्रदान किए। जिससे पाणिनी ने अष्टाध्यायी की रचना की, जो व्याकरण की श्रेष्ठतम रचना है। शिव का एक रूप शिवलिंग के रूप में भी है। पंडित बंशीधर नटियाल ने बताया कि 'आकाश लिंगमित्याहु पृथ्वी तस्य पीठिका। आलय: सर्व देवानां तस्मात लिंग मुच्यते'। अर्थात लिंग के प्रादुर्भाव के समय आकाश लिंग था और पृथ्वी पीठ तब आदि और कहीं भी नहीं था। बताया कि श्रावण में शिव पूजन का विशेष महत्व है, क्योंकि श्रावण कर्क राशि से होता है। कर्क का स्वामी चंद्र है। चंद्रमा शिव जटा में है। इसलिए श्रावण मास शिव पूजन को विशिष्ट माना गया है। इन दिनों सच्चे मन से की गई साधना सफल होती है।
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