Sanskaarshala : छात्रों को डिजिटल माध्यम के प्रति अनुशासित किया जाए
श्री गुरु राम राय पब्लिक स्कूल (बसंत विहार देहरादून) की प्रधानाचार्य डा.सुनीता रावत ने कहा कि पिछले दो दशकों में सभी ने यह अनुभव किया होगा कि टेक्नोलाजी ने हमारे जीवन को अपने नियंत्रण में ले लिया है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 08 Sep 2022 10:27 AM (IST)
देहरादून। Sanskaarshala पिछले दो दशकों में सभी ने यह अनुभव किया होगा कि टेक्नोलाजी ने हमारे जीवन को अपने नियंत्रण में ले लिया है। अभी तक हम अभिभावक के रूप में इस खुशफहमी में थे कि हमारे बच्चों को डिजिटल माध्यम इतना नहीं प्रभावित कर रहा है, पर पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के दौरान यह छात्रों के जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है। या यूं कहें कि बना दिया गया। यह अच्छी बात रही कि उस कठिन समय में आनलाइन पठन-पाठन की वजह से ही शिक्षा की डोर छूट नहीं पाई। बल्कि यह माध्यम और सशक्त होकर सामने आया और अब इसके बिना शिक्षा के प्रसार की अबाध गति की कल्पना कोरी प्रतीत होने लगी है।
अब डिजिटल माध्यम एक ऐसी आवश्यकता बन गया, जिसे न छोड़ते बन रहा है और न ही रखते हुए है। ऐसे में छात्रों को स्क्रीन टाइम के अनुशासन का पालन करना पड़ेगा। यह आज के समय की मांग है कि छात्रों को डिजिटल माध्यम के प्रति संस्कारित और अनुशासित किया जाए, लेकिन प्रश्न यह कि कैसे? आजकल छात्रों में पत्र-पत्रिका, अखबार, लेख, पुस्तक आदि पढ़ने के प्रति अरुचि पैदा हो गई है।इससे उनके लिखने की आदत भी प्रभावित हुई है। छात्रों को चाहिए कि वे पुस्तकें पढ़ें अपनी रुचि के अनुसार लेख पढ़ें व लिखे भी। लाइब्रेरी जाएं और स्वयं वहां बैठकर जरूरी सामग्री एकत्र करें। प्रोजेक्ट बनाएं व रिसर्च करें। निश्चित रूप से स्क्रीन, टाइम घटेगा। छात्र स्वयं ही स्वयं से संकल्प करें कि वे एक नियमित व सीमित समय तक ही स्क्रीन का प्रयोग करेंगे।
व्यायामशाला जाकर छात्र वहां शारीरिक सौष्ठव के आदि के व्यायाम करके समय का सदुपयोग कर सकते हैं। पार्क वगैरह में टहलें। इससे छात्रों में स्वस्थ शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मन मस्तिष्क का भी विकास होगा। शिक्षकों का कर्तव्य है कि वो छात्रों को जागरूक करें। उन्हें बताएं कि स्क्रीन टाइम अनुशासन का पालन न करने में क्या-क्या नुकसान हो सकता है। किस तरह के नकारात्मक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। माता-पिता अपने बच्चों में अच्छे और बुरे की समझ बचपन से ही पैदा करें। ऐसे में बच्चों को स्वयं को अनुशासित करने में कठिनाई नहीं होगी।
स्क्रीन टाइम अनुशासित करने आवश्यकता क्यों है? क्योंकि ये बच्चों के नैसर्गिक विकास में बाधा बन रहा है। कम उम्र में प्रौढ़ अवस्था की ओर धकेल रहा है। पठन-पाठन की सजी-सजायी तैयार सामग्री पा कर छात्रों की रचनात्मकता पर बहुत ही गंभीर प्रभाव पड़ा है। समय की बर्बादी अलग। अत: यह जरूरी है कि विवेक से स्क्रीन के समय को व्यवस्थित करें और देश के स्वस्थ और जागरूक नागरिक बनें।
डा. सुनीता रावत, प्रधानाचार्य, श्री गुरु राम राय पब्लिक स्कूल, बसंत विहार, देहरादून
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