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हौसलों ने भरी उड़ान तो छोटा पड़ गया आसमान, उत्‍तराखंड की सविता कंसवाल ने विपरीत परिस्थितियों से लड़कर बनाया रास्ता

हौसला अगर पहाड़ से भी ऊंचा तो विपरीत परिस्थितियां भी आखिरकार घुटने टेक ही देती है। इसी हौसले की मिसाल हैं उत्तरकाशी जिले के लौंथरू गांव निवासी सविता कंसवाल। सविता का चयन इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) के माउंट एवरेस्ट मैसिव एक्सपिडीशन के लिए हो चुका है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 17 Oct 2020 10:45 PM (IST)
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जम्मू-कश्मीर की माउंट तुलियान का सफल आरोहण के दौरान तिरंगा लहराते हुए सविता कंसवाल।
उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। हौसला अगर पहाड़ से भी ऊंचा तो विपरीत परिस्थितियां भी आखिरकार घुटने टेक ही देती है। इसी हौसले की मिसाल हैं उत्तरकाशी जिले के लौंथरू गांव निवासी सविता कंसवाल। सविता का चयन इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) के माउंट एवरेस्ट मैसिव एक्सपिडीशन के लिए हो चुका है। यह अभियान अप्रैल 2020 में होना था, लेकिन कोविड-19 के कारण इसे स्थगित कर दिया गया है। अब वर्ष 2021 में यह आरोहण होने की उम्मीद है। प्री एवरेस्ट अभियान के तहत सविता त्रिशूल समेत देशभर की पांच चोटियों का सफल आरोहण कर चुकी हैं।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 15 किमी दूर भटवाड़ी ब्लॉक के लौंथरू गांव निवासी 24 वर्षीय सविता कंसवाल का बचपन कठिनाइयों में गुजरा। पिता राधेश्याम कंसवाल और मां कमलेश्वरी देवी ने खेती से आर्थिकी जुटाकर किसी तरह चार बेटियों का पालन-पोषण किया। चार बहनों में सविता सबसे छोटी थी। वर्ष 2011 में राइंका मनेरी से सविता का चयन दस दिवसीय एडवेंचर कोर्स के लिए हुआ। इस दौरान जब सविता ने भारत की प्रथम एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल, वरिष्ठ पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल समेत कई पर्वतारोही महिलाओं के नाम सुने तो आंखों में सपने तैर गए। तय किया अब तो एवरेस्ट ही मंजिल है।

किसी तरह पैसे जुटाकर सविता ने वर्ष 2013 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग में बेसिक कोर्स किया। एडवांस कोर्स की फीस के लिए पैसे न होने और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण 2014 से लेकर 2016 तक देहरादून में नौकरी की। वहां से लौट सविता ने एडवांस, सर्च एंड रेस्क्यू के साथ पर्वतारोहण प्रशिक्षक का कोर्स किया। सविता कंसवाल की काबिलियत देखकर निम ने उन्हें गेस्ट प्रशिक्षक के तौर पर नियुक्त किया है।

इन चोटियों का किया आरोहण

  • त्रिशूल पर्वत (7120 मीटर): उत्तराखंड
  • हनुमान टिब्बा (5930 मीटर): हिमाचल प्रदेश
  • कोलाहाई (5400 मीटर): जम्मू-कश्मीर
  • द्रौपदी का डांडा (डीकेडी): (5680 मीटर), उत्तराखंड
  • तुलियान चोटी (5500 मीटर): जम्मू-कश्मीर 
किसी से कमजोर नहीं हैं महिलाएं

सविता कंसवाल कहती हैं, निम में गेस्ट प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति मिलने के बाद उनकी परिवार की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया। उन्होंने बहन की शादी के लिए 70 वर्षीय पिता की आर्थिक मदद की। साथ ही मिट्टी के पुराने घर की मरम्मत कर शौचालय भी बनवाया। सविता कहती हैं, महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं। मैंने हमेशा अपने कार्यक्षेत्र में मेहनत के बल पर मुकाम हासिल किया है। बचपन में आर्थिक तंगी भी देखी है और भाई न होने के कारण पुरुष प्रधान समाज का दंश भी ङोला है। ऐसे में मैं अपने माता-पिता को महसूस नहीं होने देती कि उनके कोई बेटा नहीं है। 

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कर्नल अमित बिष्ट (प्रधानाचार्य, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी) का कहना है कि एवरेस्ट मैसिव एक्सपिडीशन के लिए पूरे देश से एक हजार युवक-युवतियों ने इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) में आवेदन किया था। इसमें सविता कंसवाल का नंबर 12वां आया है, जो उत्तराखंड के लिए एक बड़ी उपलब्धि हैं। अभियान को पहले 2020 में होना था, लेकिन अब उम्मीद है कि यह 2021 में होगा।

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