शिरीन की प्रस्तुति ने जीता दर्शकों का दिल, उनकी भाव भंगिमाओं ने बटोरी दर्शकों की तालियां
शास्त्रीय नृत्यांगना शिरीन आनंद की भरतनाट्यम प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और हल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 11 Aug 2019 08:36 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। उभरती शास्त्रीय नृत्यांगना शिरीन आनंद की भरतनाट्यम प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। लय-ताल के बीच उनकी सम्मोहित कर देने वाली भाव-भंगिमाओं को देख दर्शकों से खचाखच भरा हॉल तालियों की गडगड़ाहट से गूंज उठा। शिरीन ने आरंगेत्रम कार्यक्रम के तहत लगभग तीन घंटे भरतनाट्यम प्रस्तुत किया और इस अवधि में दर्शक अपने स्थान से हिले तक नहीं।
दून के वेल्हम गर्ल्स स्कूल में शनिवार को आयोजित आरंगेत्रम कार्यक्रम में शिरीन ने नृत्य का जादू बिखेरा। शिरीन ने आरंगेत्रम की विधा में भारतनाट्यम दस भागों में पूरा किया। उन्होंने गणेश कौत्वम के साथ नृत्य की शुरुआत की। इसमें उन्होंने भगवान गणेश का आशीर्वाद लेते हुए उनकी विभिन्न भंगिमाओं को वर्णन किया। इसके बाद अलारिप्पु, जाथिस्वर्म, शब्द्म, वर्ण्म, कीर्तन्म, पद्म, श्लोक्म और तिल्लाना में भगवान शिव, श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि की लीलाएं प्र्रस्तुत कीं। शिरीन ने मंगलम भाग में दर्शकों का आभार जताकर उनकी दुआएं लेते हुए नृत्य का विराम दिया।
इससे पहले उन्होंने पंचदेव पूजा के तहत गणेश, नटराज, देवी दुर्गा, श्रीकृष्ण और सूर्यदेव की आराधना की। इसके बाद उन्होंने गुरु, रंगमंच, परिधान, गहनों और घुंघरुओं की पूजा की। कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ. शोभना नारायण, पद्मिनी संबाशिवम, शिरीन की गुरु सीके राजलक्ष्मी, शिरीन की मां सोना आनंद आदि मौजूद रहे।
आरंगेत्रम में निपुण हैं शिरीन
वेल्हम गर्ल्स स्कूल की छात्रा रहीं शिरीन देश-विदेश में भरतनाट्यम के मंचों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं। वह छह साल की उम्र से नृत्य कर रही हैं। वर्तमान में वह शास्त्रीय नृत्य में स्नातक के समकक्ष डिग्री लेने जा रही हैं। शास्त्रीय नृत्य की भाषा में इसे 'आरंगेत्रम' कहा जाता है। इसके तहत नर्तक को लगातार ढाई से तीन घंटे तक नृत्य करना होता है। इसी के बाद कलाकार को इस कला में निपुण माना जाता है। इसके लिए नृत्यांगना कम से कम सात वर्ष तक भरतनाट्यम की तालीम लेती है। इसके ठीक एक माह पहले आरंगेत्रम कार्यक्रम की पूजा विधि संपन्न की जाती है। इस विधि का पालन ही शिरीन ने किया।
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